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राजस्थानी साहित्यकार पद्मश्री अर्जुनसिंह शेखावत का निधन, राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता की अधूरी ही रह गई उनकी ईच्छा

 

RNE Special.

राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिले, यह ईच्छा मन मे ही लेकर चले गए पाली के साहित्यकार पद्मश्री अर्जुनसिंह शेखावत। कल उनका निधन हो गया। 
 

शेखावत ताउम्र साहित्य व विशेषकर मायड़ भाषा के प्रति समर्पित रहे। राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता की आवाज वे अंतिम सांस तक उठाते रहे। उनको जब पद्मश्री मिला तब उन्होंने अपने साक्षात्कार में कहा था कि मेरी यही ईच्छा है कि मृत्यु से पहले मेरी मायड़ भाषा को संवैधानिक मान्यता मिल जाये। कवि, आलोचक, नाटककार व साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक डॉ अर्जुन देव चारण ने कहा कि शेखावत ने जीवन भर मायड़ भाषा की मान्यता की लड़ाई लड़ी। सरकार ने उनको पद्मश्री दी, उनकी भाषा को भी संवैधानिक मान्यता देनी चाहिए।
 

उनके निधन पर जयनारायण विवि, जोधपुर के राजस्थानी विभाग के अध्यक्ष, साहित्यकार गजेसिंह राजपुरोहित ने कहा कि यह राजस्थानी साहित्य की बड़ी क्षति है।  राजस्थानी साहित्यकार मधु आचार्य ' आशावादी ', मंगत बादल, कृष्ण कुमार आशु, राजेन्द्र बारहठ, गीता सामोर, डॉ राजेश व्यास, अजय जोशी, नगेन्द्र नारायण किराड़ू, संजय पुरोहित, राजेन्द्र जोशी, हरीश बी शर्मा, सीमा पारीक, अमित गोस्वामी, प्रमोद चमोली, नदीम अहमद नदीम आदि ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।