निगम प्रशासन को इल्म ही नहीं होगा इनका, कई पट्ट क्षतिग्रस्त है, ये तो अपमान है विभूतियों का
नगर निगम की ये बेरुखी अक्षम्य अपराध है
शहर के बुद्धिजीवी इस लापरवाही से आक्रोश में है
रितेश जोशी
RNE Special.
बीकानेर के पहले निर्वाचित महापौर भवानी शंकर शर्मा ने अपने कार्यकाल में बीकानेर की जनता की भावना के अनुरूप एक ऐतिहासिक कार्य किया। उस कार्य में इतनी पवित्रता व ईमानदारी थी कि केवल सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष ने भी उनका पूरा साथ सक्रिय होकर दिया। उस समय की नगर निगम की बॉडी ने इतिहास रचा।
तत्कालीन महापौर भवानी भाई ने बीकानेर के स्वतंत्रता सेनानियों, साहित्यकारों, जन नेताओं, संस्कृतिकर्मियों के नाम से कई मार्ग विधिवत रुप से बनाये। ये उनके प्रति कृतज्ञता थी। जिसे निभाना ही तो निगम का कर्त्तव्य है। भवानी भाई व उनके समय के पार्षदों, निगम अधिकारियों व कार्मिकों ने ये कर्त्तव्य निभाया। मगर उसके बाद तो स्थिति दयनीय हो गई। किसी ने भी इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। जिसमें अधिक दोष निगम अधिकारियों व कार्मिकों का है।
निगम को महत्त्व का इल्म ही नहीं:
नगर निगम के वर्तमान प्रशासन को शायद इन मार्गों व जिनके नाम से मार्ग है, उनके महत्त्व का इल्म ही नहीं है। यदि इल्म होता तो इस तरह की उपेक्षा नहीं होती। उनकी सार सम्भाल होती और उनको विकसित कर कृतज्ञता का निर्वाह किया जाता।
कई पट्ट क्षतिग्रस्त, ये अपमान है:
जिन महापुरुषों के नाम से मार्ग है, उनकी पट्टिकाएं भी वहां लगाई गई थी। कुछ पट्टिकाओं पर लिखे नाम उड़ गए है तो कुछ टूटकर क्षतिग्रस्त हो गई है। उनकी सुध कोई नहीं ले रहा। जबकि उन इलाकों में नगर निगम के सफाई कर्मी, जमादार, इंस्पेक्टर, सर्वेयर का आना जाना रोज होता है। ये तो शर्म की बात है कि इन पट्टिकाओं की तरफ उनका ध्यान भी नहीं जाता। कल्पना कीजिये इनमें रघुवर दयाल गोयल जी, गंगादास कौशिक जी, यादवेंद्र शर्मा चन्द्र जी , मोहम्मद उस्मान आरिफ साब आदि के नाम की पट्टिकाएं भी शामिल है।
पट्टिकाओं के पास पसरी है गंदगी:
इन पट्टिकाओं के पास अच्छी सफाई होनी चाहिए, मगर है उलट बात। वहां गंदगी पसरी है। कोई देखने वाला शहर की क्या इमेज बनायेगा, ये भी निगम प्रशासन नहीं सोचता है। शेम। दुखद है ये।
निगम का ये अक्षम्य अपराध है:
नगर निगम का ये नैतिक रूप से अक्षम्य अपराध है। क्योंकि इसका जुड़ाव नैतिकता व संस्कार से ही है। इस कारण निगम को अभयदान भी नहीं दिया जा सकता।
बुद्धिजीवी है इससे नाराज:
शहर के बुद्धिजीवी निगम की इस लापरवाही से बहुत नाराज है। वे आक्रोशित है। उनका कहना है कि निगम यदि अपने शहर की विभूतियों के नामों की रक्षा नहीं कर सकता, उनका सम्मान नहीं कर सकता, कृतज्ञता नहीं निभा सकता तो उसे एक जिम्मेदार संस्था मानना ही नहीं चाहिए। साहित्यकार नगेन्द्र किराड़ू, मधु आचार्य ' आशावादी ', नदीम अहमद, अरमान नदीम, राजेन्द्र जोशी, राजाराम स्वर्णकार, अजय जोशी, अब्दुल शकूर बीकाणवी, कासिम बीकानेरी आदि ने निगम की बेरुखी पर नाराजगी जताई है।