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बढ़ती बेरोजगारी का मूल कारण असंगठित क्षेत्रों का लोप होना, डॉ छगन मोहता व्याख्यानमाला में बेरोजगारी पर हुआ गंभीर मंथन

 

RNE Bikaner.

देश में बढ़ती बेरोजगारी का मूल कारण है असंगठित क्षेत्रों का लोप होते जाना, ये उद्बोधन प्रख्यात अर्थशास्त्री एवं विचारक प्रो. अरूण कुमार ने मुख्य वक्ता के रूप में बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति द्वारा आयोजित डाॅ. छगन मोहता स्मृति व्याख्यान माला के तहत आज दिनांक 07 नवम्बर को स्थानीय प्रौढ़ शिक्षा भवन सभागार में अभिव्यक्त किए।

प्रो. अरूण कुमार ने कहा कि देश में महिलाओं और शिक्षित युवा वर्ग में सबसे अधिक बेरोजगारी का प्रतिशत है। देश में तीन प्रकार की बेरोजगारी है- काम ढुंढ़ना, काम बंद करना और एक व्यक्ति की आय पर पूरा परिवार द्वारा काम करना। देश की आर्थिक नीतियों का पूरा ध्यान संगठित क्षेत्रों के विकास की ओर अधिक रहता है इस कारण देश के असंगठित क्षेत्रों की स्थिति बहुत कमजोर हो रही है जबकि बहुत से आंकड़ों का अध्ययन करने पर स्पष्ट रूप से यह सिद्ध होता है कि देश की जनसंख्या की अनुपात में सबसे अधिक रोजगार असंगठित क्षेत्र ही उपलब्ध करवाते है। इसलिए आर्थिक नीतियों का प्रमुख उदेश्य असंगठित क्षेत्रों को मजबूत करना होना चाहिए। इसी क्रम में उन्होंनें बढ़ते तकनीकीवाद पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि तकनीकी साधन मानवीय श्रम एवं सृजन को समाप्त कर रहे हे। इससे संगठित एवम् और असंगठित क्षेत्रों में गैर बराबरी बढ़ती ही जा रही है। आर्थिक नीतियों में वर्कर को लीविंग वेज मिलनी चाहिए। इससे मांग और उत्पादन दोनों बढ़ेंगे जिस से लघु एवं कुटिर उद्योंगो जैसे असंगठित क्षेत्रों को भी बल मिलेगा। अपने व्याख्यान के तहत उन्होंने वल्र्ड बैंक की नीतियों, विभिन्न घटना क्रमों, ए.आई., काला धन, संसाधनों के सदुपयोग, बाजारीकरण, कमजोर शिक्षा व्यवस्था, इक्वोलिटी, कंज्यूमर सोवरिटी आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि पूंजीवादिता पहले रियायती रूप धारण करती है फिर अधिनायक बनकर बाजार एवं उत्पादन पर सत्ता काबिज कर लेती है। जिसे वह केवल और केवल अपने लाभ के लिए ही उपयोग करती है।

अध्यक्षीय उद्बोधन के तहत कवि चिंतक डाॅ. नन्दकिशोर आचार्य ने कहा कि अर्थव्यवस्था के मूल आधार प्रयोजन, प्रक्रिया और परिणाम होते है।  प्रयोजन   के तहत सभी व्यक्तियों की जरूरतें पूरी होना और उन्हें रोजगार मिलना प्रमुख लक्ष्य होता है। इसलिए जब आर्थिक नीतियां बनायी जाए तब हमें यह विचार करना जरूरी है कि हमारी प्रक्रिया से कितने लोगांे को प्रयोजन का लाभ मिल पाएगा। काम का असल भी यही होता है कि लाभ किसे और कितना मिल रहा है। पूंजीवादी हमेशा यही चाहेंगे कि बेरोजगारी बनी ही रहनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि तकनीकी हमारी इन्द्रियों का विस्तार है। हर कार्य में बढ़ते तकनीकी साधनों के उपयोग को सामाजिक एवं मानवीय भविष्य के लिए हानिकारक है। उन्होंने गांधी जी, लोहिया जी के विचारों के तहत अहिंसक अर्थव्यवस्था पर भी विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि गरीबी, रोजगार और अमीरी-गरीबी के अंतर का आंकलन ही विकास का मूल आधार है। इसलिए जीडीपी की वृद्धि को ही विकास मान लेने की धारणा को भी मानवीय मूल्यों के आधार पर पुनः परिष्कृत करने की बात भी कही।

कार्यक्रम के प्रारंभ में समिति के अध्यक्ष डाॅ. ओम कुवेरा ने डाॅ. छगन मोहता व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डाॅ. मोहता अपने चिंतन, मनन से बहुत विशिष्ट व्यक्ति थे। फड़दी की तरह उनकी जोड़ का कोई दूसरा व्यक्तित्व मैंने तो नहीं देखा। उनकी विचार दृष्टि में व्यक्ति की गरीमा सर्वश्रेष्ठ उदेश्य था। आंगतुको का स्वागत करते हुए संस्था के संयुक्त सचिव डाॅ. ब्रजरतन जोशी ने मुख्य वक्ता के परिचत एवं व्याख्यानमाला की यात्रा पर प्रकाश डाला। संस्था के कोषाध्यक्ष एडवोकेट गिरीराज मोहता ने आंगतुको के प्रति आभार व्यक्त किया।