बीकानेर जिले की किसान राजनीति को लेकर यक्ष प्रश्न है ये, यदि विरासत को नहीं संभाला तो खमियाजा किसान को उठाना पड़ेगा
नेताओं और कार्यकर्ताओं की बड़ी टीम को नेतृत्त्व की जरूरत
कांग्रेस भी नहीं संभली तो कमजोर होगी संभाग में
मधु आचार्य ' आशावादी '
RNE Special.
बीकानेर की ग्रामीण राजनीति के अनिवार्यता रहे किसान केसरी रामेश्वर डूडी अब नहीं रहे। कांग्रेस से चुनाव लड़कर वो सांसद रहे, विधायक व नेता प्रतिपक्ष रहे, दो बार जिला प्रमुख रहे, नोखा के प्रधान रहे और प्रदेश एग्रो बिजनेस मेनेजनेन्ट बोर्ड के अध्यक्ष केबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ रहे। तीन दशक से बीकानेर की ग्रामीण राजनीति की पूरी कमान उनके हाथ में रही थी। उनकी ईच्छा के बिना एक पत्ता भी पंचायत राज चुनाव में नहीं हिलता था। शहर की दो विधानसभा सीटों को छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्र की सभी 5 सीटों का राजनीतिक गणित डूडी के इर्द गिर्द ही घूमता था। इससे ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीकानेर की ग्रामीण राजनीति के लिए अपरिहार्य थे।
नोखा संभाला डूडी के परिवार ने:
विधानसभा चुनाव के समय ही डूडी गम्भीर बीमार थे। कांग्रेस को इस बात का अहसास था कि डूडी या उनके परिवार के बिना इस सीट को जीतना टेढ़ी खीर है। क्योंकि नोखा के किसानों की पूरी सहानुभूति डूडी के साथ थी।
डूडी की धर्मपत्नी सुशीला डूडी, भतीजे अतुल डूडी व उनकी पुत्री के नामों पर विचार हुआ। परिवार में कोई होड़ नहीं थी। वे तो स्थिति देखकर चुनाव लड़ने से भी बच रहे थे। उस हालत में नोखा के समाज के लोगों ने, किसानों ने, कांग्रेस ने परिवार पर चुनाव लड़ने के लिए दबाव बनाया। ये परिवार को तय करना था कि किसे चुनाव लड़ाया जाये।
परिवार ने ही रामेश्वर डूडी की धर्मपत्नी सुशीला डूडी का नाम तय किया। जो पढ़ी लिखी थी। कष्टदायक समय मे भी परिवार ने डूडी की कर्मस्थली नोखा के लोगों की भावना की कद्र की और सुशीला जी को मैदान में उतारा। पूरा परिवार उनके साथ खड़ा था। नोखा भी उनके साथ था। वे चुनाव जीत गई। डूडी की विरासत एकबारगी संरक्षित हो गयी।
अब भी शेष है यक्ष प्रश्न:
लेकिन अब भी यह यक्ष प्रश्न शेष है कि जिले की किसान राजनीति को कौन डूडी की तरह एकजुट रख मजबूत करेगा। डूडी ने किसान की लड़ाई ताउम्र लड़ी। वैसा जज्बा लेकर कौन किसान के लिए लड़ेगा। किसान केसरी के लिए कौन अपने को होम करेगा। इस बड़े सवाल का जवाब बीकानेर का किसान भी चाहता है। यदि कोई इन पद चिन्हों पर नहीं चला तो सबसे बड़ा नुकसान किसान कौम का होगा। उसके हकों की रक्षा कैसे होगी।
स्पष्टता, दबंगता, सर्वमान्यता जरूरी:
किसान केसरी रामेश्वर डूडी की सबसे बड़ी खासियत थी उनकी स्पष्टवादिता, दबंगता और सर्वमान्यता। इन तीन गुणों को लेकर कौन सामने आएगा, ये देखने को सभी उत्सुक है। डूडी केवल जाट समाज के नेता नहीं थे। वे जाट समाज के अलावा 36 कौम के नेता थे। उनके लिए दबंगता से लड़ते थे और स्पष्ट रूप से अपनी बात कहते थे। कई बार तो वे अपनी ही सरकार से किसान हित के लिए भीड़ जाते थे। वैसा भरोसा किसान व 36 कौम को कौन दिलायेगा, ये भी बड़ा सवाल है।
बड़ी टीम को कौन देगा नेतृत्त्व:
स्व रामेश्वर डूडी ने ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में नेताओं व कार्यकर्ताओं की एक बड़ी या यूं कहें कि जिले की सबसे बड़ी टीम तैयार की थी। उस टीम में हर जाति, समाज व धर्म के लोग है। उस टीम को अब नेतृत्त्व कौन देगा, ये भी एक जरुरी सवाल है। यदि सही नेतृत्त्व नहीं मिला तो ये सुगठित राजनीतिक टीम बिखर जायेगी।
कांग्रेस को भी संभलना होगा:
डूडी की टीम को यदि कांग्रेस ने नहीं संभाला तो वो भी बीकानेर जिले सहित पूरे संभाग में कमजोर हो जाएगी। पार्टी को डूडी के सही उत्तराधिकारी को पूरी शक्ति व सहयोग देना होगा, तभी टीम सम्भलेगी और संभाग में कांग्रेस बुरी हालत में पहुंचने से बचेगी।