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पूरा जीवन इस रंगकर्मी ने किया था रंगमंच को समर्पित, बेहतर अभिनेता के साथ यारों के यार भी थे वे

रवींद्र रंगमंच ओम सोनी के त्याग, तपस्या की कहानी कहता है
हर रंगकर्मी के दिल में जगह बनाई थी इस जिंदादिल रंगकर्मी ने
बेबाकी जिनका गुण और प्यार जिनका प्रसाद
 

अभिषेक आचार्य

RNE Special.
 

( RNE  रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस ने अपने पाठकों से वादा किया हुआ है कि वो बीकानेर की उन हस्तियों से लगातार रु ब रु करायेगा, जिन्होंने अपने समर्पित कर्म से बीकानेर को देश में पहचान दी। बीकानेर रंगमंच को एक समय में देश की नाट्य राजधानी कहा जाता था। ये खिताब यहां के रंगकर्मियों की मेहनत का प्रतिफल है। ऐसे ही रंगकर्मी थे ओम सोनी। आज उनके निधन को एक साल हो गया। उनको आरएनई परिवार की तरफ से श्रद्धा सुमन। आज उनके कर्म से हम अपने पाठकों को रु ब रु करा रहे है। -- संपादक )
 

बीकानेर रंगमंच का नाम पूरे देश और खासकर हिंदी रंगमंच में बहुत आदर के साथ के साथ लिया जाता है। क्योंकि यहां के रंगकर्मियों ने सामंती परिवेश के बावजूद यहां रंगमंच की प्रतिस्थापना की। सीमित साधन के बावजूद बड़े बड़े काम किये। देश का हर रंगकर्मी बीकानेर के रंगकर्म को सेल्यूट करता है। इसका श्रेय कई रंगकर्मियों को जाता है। बीकानेर रंगकर्म की यह कहानी ओम सोनी के उल्लेख के बिना अधूरी है। उनके जिक्र के बिना ये कहानी शुरू ही नहीं होती।

रंगमंच को समर्पित:
 

ओम सोनी ने अपना पूरा जीवन रंगमंच को समर्पित किया था। इस भौतिक व आर्थिक युग में भी उन्होंने सुविधा या साधनों की चाह नहीं रखी, रंगमंच की चाह रखी। नाटक के लिए वे कोई भी बड़े से बड़ा त्याग करने को तैयार थे। करते भी थे।

उनके सांस में रंगमंच ही बसा था। यही उनका परिवार था, यही मंदिर था और यही आराधना थी। ओमजी जैसे रंगकर्मी मिलना बहुत मुश्किल है। बीकानेर रंगमंच उन पर सदा गर्व करता रहेगा।
 

यारों के यार थे वे:

ओम सोनी बीकानेर रंगमंच के वरिष्ठ अभिनेता थे। उन्होंने अनेक यादगार पात्रों को अभिनीत किया। मंच पर उनकी उपस्थिति भर से सभी कलाकारों व दर्शकों के चेहरे खिल उठते थे। इसकी वजह ये थी कि वे यारों के यार थे। उनका विनोदी स्वभाव दूसरों से उनकी दूरी को पूरी तरह से मिटा देता था। हँसमुख ओम सोनी रंगकर्मियों के बेहद चहेते थे। 
 

हरेक के दिल में बसते थे:
 

ओम सोनी ऐसे रंगकर्मी थे जो यहां के हर रंगकर्मी के दिल में बसते थे। इसका अंदाजा भी एक उदाहरण से मिल सकता है। रंगकर्मी, संगीतकार लक्ष्मीनारायण जी सोनी ओम जी के मामाजी थे। इस कारण बीकानेर का हर रंगकर्मी उनको मामाजी कहता था। छोटा हो या बड़ा, उनको मामाजी कहता। ये इस बात का प्रमाण है कि वे सभी रंगकर्मियों के चहेते थे और उनके दिल में बसते थे।

रवींद्र रंगमंच उनके त्याग की कहानी:
 

बीकानेर ने तीन दशक तक संघर्ष किया तब जाकर बीकानेर को रवींद्र रंगमंच मिला। इसके लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। सरकार व प्रशासन से यह लंबा संघर्ष चला। आज जो भव्य रवींद्र रंगमंच दिख रहा है, वो मूल रूप से ओम सोनी के त्याग और समर्पण का परिचायक है।

ओम सोनी के नेतृत्त्व में इस रंगमंच की लड़ाई लड़ी गयी। उन्होंने व्यक्तिशः इस संघर्ष के दौरान राज और प्रशासन की ज्यादती सही। तकलीफ सही। प्रताड़ना सही। पर झुके नहीं, संघर्ष करते रहे। उसका ही प्रतिफल रवींद्र रंगमंच है।