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Gopal Ganesh Agarkar : कुछ खास बात थी गोपाल गणेश अगरकर में तभी तो तिलक के साथी, 'केसरी' के पहले संपादक को याद कर रहा देश!

 

रिंकू हर्ष 

RNE Special.

साल 1956 में आज ही के दिन  यानी 14 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के तेम्मू गांव के ब्राह्मण परिवार में जन्मे महाराष्ट्र के प्रमुख समाज सुधारक गोपाल गणेश अगरकर जो लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सहपाठी एवं सहयोगी रहे। जिसने शिक्षा के प्रसार को अपना धर्म और सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ना अपना कर्म माना।

 महिला अधिकारों के पक्षधर, वैज्ञानिक सोच के चिंतक, सामाजिक रूढ़ियों के आलोचक : 

अगरकर के विचारों में महिलाओं से जुड़े अधिकारों की खनक सुनाई देती थी वे महिला मुक्ति, अंधविश्वास उन्मूलन, जातिगत भेदभाव को दूर कर समाज में एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण लाना चाहते थे। उनका मानना था कि यदि आप बाहरी जीवन में गुलामी नहीं चाहते हैं, तो आपको घर के भीतर की गुलामी को मिटाना होगा। बचपन से ही उन्होंने अपनी दो विधवा मौसियों के कष्ट ने उन्हें झकझोर दिया था इसका असर उनके विचारों में पनपने लगा। उन्होंने रूढ़िवादी समाज में विधवा विवाह के साथ महिलाओं के अधिकारों  की आवाज उठानी शुरू की।

तिलक से मतभेद, 'केसरी' से इस्तीफा, 'सुधारक' की शुरुआत :

गोपाल गणेश अगरकर तिलक के अच्छे मित्र एवं उनके मराठी अखबार केसरी के पहले संपादक थे। अगरकर को भारतीय समाज में ब्रिटिश सुधारों के पक्षधर थे और रूढ़ियों को समाप्त करने की ओर अग्रसर थे। इसी क्रम में उन्होंने एक बार 'केसरी' में हिन्दू धर्म की रूढ़ियों पर कटाक्ष लिखा यही लेख तिलक को नागंवार लगा और दोनों के बीच मतभेद हो गया। मतभेद के बाद अगरकर ने केसरी से इस्तीफा दे दिया और 1887 'सुधारक' नामक नए अखबार की शुरूआत की। 'सुधारक' का तर्क था अगर भारतीय समानता की मांग करते है तो उन्हें समाज में फैली दमनकारी जाति व्यवस्था को हटाकर महिलाओं के साथ गुलामों जैसा व्यवहार छोड़ना चाहिए। वहीं तिलक कहते थे कि ये सुधार विदेशी सरकार द्वारा नहीं थोपा जाना चाहिए बल्कि भीतर से ही होने चाहिए।

शिक्षा पर जोर, फ़र्ग्युसन कॉलेज के प्रिंसिपल, साम्प्रदायिक एकता के समर्थक

अगरकर मानते थे कि शिक्षा के द्वारा ही समाज की उन्नति संभव है । वे 1892 में  फ़र्ग्युसन कॉलेज के प्रिंसिपल नियुक्त  हुए और आजीवन रहे। उन्होंने डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अगरकर विधवा विवाह के पक्षधर होने के साथ हो छुआछूत और जाति प्रथा के घोर विरोधी थे । इतना ही नहीं वे सभी के लिए शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य मानते थे साथ ही वे लड़कों के लिए विवाह की उम्र 20-22 साल और लड़कियों की विवाह की उम्र 15-16 रखने के पक्षधर थे।  अगरकर अंग्रेजों को फूट डालो राज करो की नीति के घोर विरोधी थे उनका मानना था कि किसी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए सांप्रदायिक एकता जरूरी है वे कहते थे एकता में ही तरक्की खिलती है।

अल्पायु में निधन, लेकिन विचार आज भी प्रासंगिक:

महान समाज सुधारक अगरकर जिसे  शायद इतिहास ने सही ढंग से पिरोया नहीं लेकिन उनके विचार आज भी हमारे समाज में एक गहरी छाप छोड़े है। इस महान आत्मा का निधन मात्र 39 वर्ष की अल्प आयु में 17 जून 1895 को हो गया था।