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शंकरदान सामौर की 201वीं जयंती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी प्रारंभ

 

RNE Bikaner.

 क्रांतिकारी शंकरदान सामौर किसी राजा के नहीं बल्कि प्रजा के कवि थे, जिन्होंने अपना काव्य सृजन शास्त्र पढ़कर नहीं बल्कि मानवीय संवेदना से किया था । देश की आजादी के आन्दोलन में महात्मा गांधी ने रामराज एवं सुभाष चंद्र बोस ने जिस आजाद हिन्द का संकल्प लिया था उसकी कल्पना असल में शंकरदान सामौर ने की थी । अठारह सौ सत्तावन की क्रांति में शंकरदान सामौर का सीधा संबंध है इसलिए उनके सिरजण से ज्यादा उनका जीवण संघर्ष ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह विचार ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ. ) अर्जुनदेव चारण ने साहित्य अकादेमी एवं लोक भारती संस्थान द्वारा होटल राजमहल में आयोजित दो दिवसीय ' शंकरदान सामौर : स्मृति समारोह ' में अपने अध्यक्षीय उदबोधन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शंकरदान सामौर लोक को आजादी का असली अर्थ बताने वाले एक युग कवि थे।  

 राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक डाॅ.भंवरसिंह सामौर ने बताया कि इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित इतिहासकार प्रोफेसर एस.पी. व्यास ने कहा कि शंकरदान सामौर को देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का जनक कह दिया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है । उन्होंने कहा कि सामौर के काव्य पक्ष पर तो आलोचनात्मक दृष्टि से काम हुआ है मगर उनके जीवन के ऐतिहासिक संघर्ष पर शोध की महत्ती दरकार है। विशिष्ट अतिथि डाॅ.दीपिका विजयवर्गीय ने शंकरदान सामौर के बहुआयामी व्यक्तित्व को उजागर करते हुए कहा कि वो राष्ट्रीय चेतना के प्रखर कवि थे जिन्होंने 1857 की क्रांति के समय क्रांतिकारियों को हदभांत सकारात्मक सहयोग किया। साहित्य अकादेमी के सचिव डाॅ. के. श्रीनिवास राव ने अपने स्वागत उदबोधन के साथ ही उनके सामाजिक पक्ष को उजागर करते हुए कहा कि उन्होंने लोक में व्याप्त अंग्रेजी सत्ता के भय एवं डर को समाप्त कर आत्म सम्मान का भाव जाग्रत किया । समारोह का संयोजन प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने किया।  
दो तकनीकी सत्र सम्पन्न :
प्रतिष्ठित रचनाकार पृथ्वीराज रतनू एवं व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित दो अलग-अलग साहित्यिक सत्रों में सुश्री निकिता शेखावत एवं हेमेंद्रसिंह ने शंकरदान सामौर के व्यक्तित्व तथा नगेंद्र नारायण किराड़ू एवं डाॅ.संजू श्रीमाली ने शंकरदान सामौर के कृतित्व पर आलोचनात्मक शोध-आलेख प्रस्तुत किए।  

ये रहे मौजूद :
राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन प्रतिष्ठित रचनाकार डाॅ.भंवरसिंह सामौर, मधु आचार्य आशावादी, राजेन्द्र जोशी, धीरेंद्र कुमार आचार्य, प्रथ्वीसिंह, डाॅ.किशनलाल बिश्नोई, कमल रंगा, बुलाकी शर्मा, अजय जोशी, फारुक चौहान, राजाराम स्वर्णकार, मंजूला बारहठ, किशनदान बिठ्ठू, मुकेश व्यास, नगेन्द्र नारायण किराड़ू, हरिश शर्मा, संजय पुरोहित, गीता सामौर, गौरीशंकर प्रजापत, रेणुका व्यास नीलम, सीमा भाटी, संजू श्रीमाली, गोविंद गौरवसिंह, प्रशान्त कुमार जैन सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, मायड़ भाषा प्रेमी एवं राजस्थानी शोध-छात्र मौजूद रहे।  

19 अगस्त ने समापन समारोह :
प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित एवं डाॅ. मजूला बारहठ की अध्यक्षता में साहित्यिक सत्रों के पश्चात सांय 4 बजे समापन सत्र होगा। प्रतिष्ठित कवि-कथाकार एवं साहित्य अकादेमी के राजस्थानी भाषा के पूर्व संयोजक मधु आचार्य आशावादी की अध्यक्षता एवं प्रतिष्ठित विद्वान प्रोफेसर भंवरसिंह सामौर के मुख्य अतिथि होंगे। इस अवसर पर जैन विश्व भारती राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ. लक्ष्मीकांत व्यास विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे।