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संघ की पहल, समाज के हर वर्ग को जोड़ने की कवायद

 

RNE Network.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( आरएसएस ) ने समाज से संवाद की अपनी पुरानी शैली में बड़ा बदलाव किया है। अब  संघ की ओर से ' प्रबुद्धजन ' की जगह ' प्रमुखजन ' से संवाद होगा। इनमें मुख्य रूप से संगोष्ठियां होती है।
 

संघ का मानना है कि अब तक संगोष्ठी में मुख्य रूप से बुद्धिजीवी वर्ग जैसे लेखक, प्रोफेसर और चिंतक ही आमंत्रित होते थे। समय के साथ साथ अब छोटे छोटे सामाजिक, व्यावसायिक और स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि भी अपने क्षेत्रों में बड़ा योगदान देकर समाज को दिशा देने का कार्य कर रहे है। 
 

इसी सोच के साथ अब कार्यक्रमों में ' इंटलेक्चुअल ' नहीं बल्कि विभिन्न संगठनों के प्रमुख लोग भी शामिल होंगे। संवाद कार्यक्रम जिला और नगर स्तर तक ले जाने की योजना है। नये कार्यक्रमों में बौद्धिक विमर्श के साथ सक्रिय कार्यकर्ताओ और संगठनों की सहभागिता को भी प्राथमिकता दी जायेगी। 
 

वे सभी लोग शामिल होंगे जो अपने अपने कार्यक्षेत्रों में नेतृत्त्व कर रहे है। चाहे वे स्वयंसेवी संस्थाओं से हो, शहरी गरीबों के बीच काम कर रहे हों, किसान संगठनों से जुड़े हों या फिर युवा - महिला समूहों का प्रतिनिधित्व कर रहे हों। क्षेत्र संघचालक राजस्थान, आरएसएस डॉ रमेश अग्रवाल जी के अनुसार समाज के हर वर्ग की भागीदारी आज समय की आवश्यकता है। प्रमुखजन के माध्यम से हम जमीनी कार्यकर्ताओ और संगठनों से सीधे संवाद स्थापित करेंगे।