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डूंगरपुर में साहित्य अकादमी के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल का राष्ट्रीय परिसंवाद

 

RNE Network.

राजस्थानी भक्ति परम्परा अपने आप में अद्भुत है । यह मन एवं चित्त में भेंद करती है। मन का संबंध संकल्प से और चित्त का संबंध चेतना से जुड़ा हुआ है। मनुष्य जब अहंकार शुन्य हो जाता है तब उसका मन निर्मल हो जाता है और मन की निर्मलता ही भक्ति है यह विचार  कवि,आलोचक, नाटककार डॉ अर्जुनदेव चारण ने साहित्य अकादेमी एवं राजस्थान बाल कल्याण समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ' राजस्थानी भक्ति परम्परा एवं वांगड अंचल ' विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद में शनिवार को  साॅई पैलेस होटल, डूंगरपुर के सभागार में व्यक्त किए। इस अवसर पर उन्होंने भारतीय एवं राजस्थानी भक्ति परम्परा की विशद विवेचना करते हुए महर्षि नारद को सबसे बड़ा भक्त बताकर उनकी भक्ति-साधना को उजागर किया।  

राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद के  संयोजक हर्षवर्द्धन सिंह राव ने बताया कि इस अवसर पर मुख्य अथिति उपेंद्र अणू ने कहा कि राजस्थान में वागड़ अंचल की भक्ति परम्परा बहुत प्राचीन एवं गौरवशाली रही है जिसमें मावजी महाराज, गोविन्द गुरु एवं गवरी बाई का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विशिष्ट अतिथि राजस्थान बाल कल्याण समिति के निदेशक मनोज गौड़ ने कहा कि हमें हमारी मातृभाषा राजस्थानी एवं इस भाषा में रचे गये साहित्य को उजागर करना हमारा कर्तव्य है। क्योंकि हमारी मातृभाषा एवं साहित्य हमारी अस्मिता से जुड़ा हुआ है। उदघाटन समारोह के आरम्भ में साहित्य अकादेमी के उप सचिव डाॅ.देवेन्द्र कुमार देवेश ने स्वागत उद्बोधन के साथ ही साहित्य अकादेमी द्वारा देश के ग्रामीण क्षेत्र एवं अचल विशेष में किए जाने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों की विस्तार से जानकारी दी। सत्र का संचालन दिनेश कुमार प्रजापति ने किया।  

पाटीदार का अभिनंदन :  वागड़ के प्रतिष्ठित लेखक भोगीलाल पाटीदार को हाॅल में साहित्य अकादेमी का बाल साहित्य पुरस्कार की घोषणा होने पर साहित्य अकादेमी में राजस्थानी संयोजक डाॅ.अर्जुनदेव चारण के सानिध्य में भव्य अभिनन्दन किया गया । 

साहित्यिक सत्र : मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.सुरेश कुमार सालवी की अध्यक्षता में आयोजित दो साहित्यिक सत्रो में राजेंद्र पांचल ने कृष्ण भक्ति परम्परा एवं वागड़ अंचल, सतीश आचार्य ने राम भक्ति परम्परा एवं वागड़ अंचल, घनश्याम सिंह भाटी ने राजस्थानी भक्ति परम्परा एवं कल्लाजी महाराज एवं डाॅ.रेखा खराडी ने राजस्थानी आदिवासी भक्ति साहित्य विषय पर अपना आलोचनात्मक आलेख प्रस्तुत किया। सत्र संचालन सूर्यकरण सोनी ने किया।  

समापन समारोह :  कवि-कथाकार दिनेश पांचाल ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि वागड़ की भक्ति परम्परा प्रेम एवं समर्पण की है जिसमें भक्त ध्येय स्व के बजाय लोक कल्याण है। मुख्य अतिथि वागड़ अंचल के वयोवृद्ध रचनाकार ज्योतिपुंज ने कहा कि वागड़ की भक्ति परम्परा भारतीय सनातन भक्ति परम्परा से जुड़ी हुई जो मानवता का पर्याय है । यह प्रत्येक मानव के मन में प्रकृति संरक्षण, जीवदया एवं लोक कल्याण का भाव जाग्रत करती है। समारोह संयोजक हर्षवर्द्धन सिंह राव ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया । सत्र संचालन रामचन्द्र भारती ने किया।  
समारोह के प्रारम्भ में मां सरस्वती के चित्र पर अतिथियों द्वारा माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। इस अवसर पर डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित, डाॅ.सुनिल पण्डया, डाॅ.प्रवीण पण्डया, डाॅ. मनोहरसिंह राव, डाॅ. जयन्त यादव, भारती जोशी, महेश देव नन्दोड़, जेठानंद पंवार, जगदीश गुर्जर, राजेन्द्र सिंह चौहान,  हिमांशु चौबीसा, गिरीश पानेरी,  वीरेंद्र सिंह वेडसा, विपुल विद्रोही, डाॅ.प्रियंका चौबीसा, अनिता पांचाल, राधेश्याम पाटीदार, अनिल लौहार, तुलसी कोटेड़, हेमन्त शर्मा, लोकेश जोशी, राजकुमार कसारा, मंजुला पण्डया,  ममता पांचाल, बलवीर सिंह राव, नारायण लालरोत, करणसिंह राव एवं वासुदेव सूत्रधार सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, भाषा-साहित्य प्रेमी एवं शोध-छात्र मौजूद रहे।