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“अदबी कानाफूसी : जहाँ वाहवाही बिकती है और सच तिलांजलि पाता है”

 

RNE,BIKANER .


आमतौर पर साहित्य में खेमेबंदी रहती ही है। हर शहर में दो से तीन खेमे होते है और अपनी अपनी गैंग के लोगों को प्रोत्साहित कर महान बताते रहते है। आयोजन करते है और एक दूसरे को थापित भी करते रहते है। मगर बीकानेर उन सब शहरों से अलग है, आलिजा है, अजीब भी है।


 

यहां खेमे नहीं साहित्यकारों के खोमचे है। हर कोई एक खोमचा लेकर बैठ जाता है, कुछ मिलता दिखता है तो अपना खोमचा हटाकर माल फायदा देने वाले के खोमचे में डाल देता है ताकि उसका खोमचा बड़ा हो जाये, उसे बड़ा सम्मान मिल जाये। इन दिनों शहर में अदब के खोमचे ज्यादा ही हो गए है। जिनको राष्ट्रीय पुरस्कार मिला हुआ है, उनको देश हजम नहीं हो रहा, वे अपने गली वाले खोमचे से प्रसन्न है। क्योंकि छपास व वाह वाही की भूख तो गली के खोमचे से ही पूरी होती है। कुछ तो ऐसा माल अपने खोमचे के लिए बनाते है कि आज यहां तो कल वहां के खोमचे में माल पहुंचाने में झिझक न रहे। लगे वे सब खोमचो के हिस्सेदार है। सबसे लाभ जो लेना है।
पिछड़े लोगों के लिए अवसर। अभी अदबी खोमचे का बोलबाला है। बाजार तेजी पर है। उनको अपना, बेटे का ब्याह करना हो, कहीं अच्छा दिखना हो, नेताओं को प्रभावित करना हो, अखबारों में रोज छपना हो, अपने कुत्सित इरादों को परवान चढ़ाना हो, आदि आदि करना हो तो आप भी अदबी खोमचा लगा लीजिए। किसी दूसरे के खोमचे में शामिल होने की गलती न करें, अपना खोमचा लगाएं। पोर्टल खोमचा ,जब चाहें किसी मे विलय व जब चाहें वापस अपना खोमचा। जल्दी कीजिये, अदबी खोमचा लगाइए। देरी की तो पछताते रह जाएंगे। अदब नाम की लूट है, लूट सके तो लूट, बोलना केवल झूठ ही झूठ।

 

के पैसा बोलता है, अदबी सच...
 

एक जमाना था, बहुत पुराना, बेहद पुराना, जब अदब का धन से कोई सरोकार नहीं था। अदबी लोग सरस्वती के उपासक होते है, लक्ष्मी से गहरा जुड़ाव नहीं रखते। मगर अब हालात बदल गए है। लक्ष्मी उपासक ही अब अदबी दुनिया मे मठाधीश बनने लग गये है। ये कड़वा सच हर शहर में सही साबित हो रहा है, बीकानेर में कुछ ज्यादा ही सही साबित हो रहा है।
 

अदब का खून जब अदबी के शरीर मे जोर मारता है तो वो बेअदबी साहित्यकार का खुलकर विरोध शुरू करते हुए उसके साथ न बैठने की नीति अपनाते है। गर्व से सबको बताते है। कुछ दिन उस पर अमल भी करते है। मगर कुछ दिन बाद वे ही अपना नियम तोड़ उस तिलांजलि दिए अदबी के साथ खड़े दिखाई दे जाते है। एक ऐसे ही अदबी से जब उसकी वजह पूछी तो उसने ढीठता से गाना सुना दिया.. "के पैसा बोलता है।"
- विदुर...