शहर में कैसे चल रहे हैं कृषि वाहन ? जिम्मेवार क्यों मूंदे हुए है आंखें ??
शहर की तंग गलियों में रास्ते करते है अवरुद्ध
न रोड टैक्स लगता है, न कोई चालान
सरकार को दोनों तरफ से लगा रहे है चूना
रोज करते छोटे - मोटे एक्सीडेंट
जिम्मेवार बैठे है आंखें मूंदे हुए, उसकी वजह क्या है
रितेश जोशी
RNE Special.
दृश्य :: एक
मोहता चौक से आचार्यो के चौक की तरफ जाता एक छोटा ट्रेक्टर। जिसे स्थानीय भाषा में ' गटुड़ा ' कहते है। जिसमें बजरी भरी हुई है। वो जैसे ही मरुनायक जी मंदिर के पास पहुंचा तो सामने से आ रही टैक्सी को वहीं रुकना पड़ा।
धीरे धीरे हर आने वाला वाहन रुकता गया, क्योंकि रास्ता नहीं था। बड़ा जाम लगते देर नहीं लगी। मोहल्ले वाले उस बजरी के छोटे ट्रेक्टर वाले को खरी खोटी सुना रहे थे, वो केवल मुस्करा रहा था। 30 मिनट बाद जैसे तैसे कर जाम हटा तब तक 4 बच्चों की स्कूल लेट हो गई। बाकी लोगों के काम अटके सो अलग।
किनारे खड़े एक सरकारी कर्मचारी ने वहीं जाम से निकलकर आये युवक से पूछा-
--- शहर में ये छोटा ट्रेक्टर कैसे चल सकता है। ये तो कृषि कार्य के लिए ही है।
-- ये मुझे क्यों कह रहे है आप। मोहता चौक में खड़े उस ट्रैफिक सिपाही से कहिए ना, जिसने इसे अपनी आंखों से इधर आते हुए देखा भी है।
फिर हो गया मौन। एक सन्नाटा।
दृश्य 2 :: बड़ा बाजार से गोगा गेट की तरफ जा रहा एक छोटा ट्रेक्टर। जिसमें कचरा भरा है। सुबह के 10 बजे। रामदेव जी के मंदिर के आगे से निकल रहा है। अचानक एक मोपेड पर 65 साल का बुजुर्ग आता है अपनी मोपेड पर।
लहराते हुए उस छोटे ट्रेक्टर की लहर की चपेट में वह मोपेड आती है। बुजुर्ग गिर पड़ता है। चोट लगकर खून बहने लगता है। भीड़ एकत्रित हो जाती है। रास्ता जाम। दूर खड़ा ट्रैफिक का सिपाही आता है। भीड़ अलग कर ट्रेक्टर को पहले निकालता है और पास की सिटी डिस्पेंसरी तक बुजुर्ग को भेजता है। 40 मिनट भीड़ को छंटने में लग जाते है।
एक युवक ट्रैफिक सिपाही से कहता है-
-- उस ट्रेक्टर वाले को जाने क्यों दिया।
-- रास्ता खुलवाना था।
-- ये कृषि के काम का ट्रेक्टर बाजार में चल रहा था। उस पर कार्यवाही करनी चाहिए थी।
-- पहले बुजुर्ग को अस्पताल भेजना जरूरी था। कार्यवाई हम क्यों करें, परिवहन विभाग को करनी चाहिये।
ये तो केवल बानगी है:
इस तरह के दृश्य हमें बीकानेर के हर इलाके में देखने को मिल जाएंगे। जहां कृषि के काम के लिए बने छोटे ट्रेक्टर सामान ले जाते, कचरा लेकर दौड़ते और लोगों को चोटिल करते दिख जाएंगे। रास्ते जाम कर देना तो इनका स्थायी काम है।
ये खेती के काम आने चाहिए:
इन छोटे ट्रैक्टरों को मूल रूप से खेतों में काम के लिए बनाया गया है। किसान के काम में आता है इस कारण कई तरह की छूट है। रोड टैक्स नहीं लगता। मगर ये खेतों में तो चलते नहीं और बिना रोड टैक्स दिए शहर में दौड़ते है और यहां के यातायात को खराब करते है।
जिम्मेवार लोग मौन है:
परिवहन विभाग ने आज तक इन कृषि उपकरणों के शहर की सड़कों पर दौड़ने पर इनके खिलाफ कार्यवाही नहीं की। ट्रैफिक पुलिस भी नहीं बोलती। मार जनता को खानी पड़ रही है।
जरा देखो तो सही माननीयों!
शहर के जन प्रतिनिधियों, जिले के प्रशासन को इस समस्या की तरफ झांकना चाहिए। ये कृषि यंत्र सरकार को चुना लगा रहे है और लोगों को नुकसान पहुंचा रहे है।
रुद्रा सवाल ये है....
सबकी आंखों के सामने ये अवैध वाहन शहर में चलते है, लोगों को तकलीफ देते है। फिर इनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं। वाजिब सवाल है ना ???