Alasinga Perumal: जिसने विश्व धर्म संसद में विवेकानंद को भेजने का सपना देखा, खुद को झोंककर पूरा किया
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हम बात कर रहे है इतिहास के पन्नो के उस मोती की जिसको इतिहासकारों ने ढंग से पिरोया नहीं,हम बात कर रहे है एक साधारण शिक्षक आलासिंगा पेरुमल की जिसने स्वामी विवेकानंद के नाम को अमर करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आलासिंगा पेरुमल का जन्म तमिलनाडु के एक छोटे से कस्बे चेंगलपट्टू में साधारण परिवार में हुआ । आलासिंगा पेशे से एक शिक्षक थे लेकिन उच्च विचारक एवं राष्ट्रभक्त थे शायद इन्हीं गुणों के कारण स्वामी जी को पहचाना और उनके नेक कार्यों में जुट गए।
1892 में स्वामी जी से मुलाकात ने मोड़ा पेरुमल का जीवन :
वर्ष 1892 में पेरुमल की मुलाकात स्वामी जी से हुई तो आलासिंगा की तलाश खत्म हुई और उन्हें विश्व धर्म सम्मेलन में जाने के लिए उपयुक्त व्यक्ति मिल गया। आलासिंगा ने पहले स्वामी को भाषण देते हुए मद्रास में सुना था और वे उनसे बहुत अभिभूत हुए और उनसे धर्म सम्मेलन में जाने का आग्रह किया। स्वामी ने आग्रह स्वीकार किया लेकिन आलासिंगा के सामने इसके लिए धन एकत्र करना एक चुनौती थी लेकिन आलासिंगा हार नहीं मानी और जुट गए।
सूट, बूट से लेकर टिकट तक की व्यवस्था के लिए पत्नी के गहने बेचे :
आलासिंगा ने विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी जी को भेजने के लिए धन एकत्र करना शुरू कर दिया और 'इंडियन चेरिटेबल सोसाइटी' नामक संस्था का गठन किया। इन सभी प्रयत्नों के बावजूद भी पूरी राशि इकट्ठा नहीं हो सकी तो आलासिंगा की पत्नी 'रंगम्मा' जो कि एक धर्मपरायण महिला थी उन्होंने अपने गहने बेचने की पेशकश की और आलासिंगा ने उसे स्वीकार कर धन जुटाया इतना ही नहीं धन जुटाने के अभियान में एक वृद्ध महिला ने मात्र एक मुट्ठी चावल दान में दिए तो आलासिंगा ने महिला से कहा यह एक मुट्ठी चावल शिकागो तक जाएगा और भारत की आत्मा को जगाएगा। धन जुटाने पर आलासिंगा ने स्वामी के कपड़े, जूते और टिकट की व्यवस्था की।
स्वामी जी का सुझाव, ब्रम्हवादिनी की शुरुआत :
आलासिंगा ने वर्ष 1895 में एक पत्रिका की शुरुआत करनी चाही जो भारतीय दर्शन, वेदांत, और संस्कृति का प्रचार जन-मानस में करें। स्वामी के सुझाव से इसका नाम ब्रह्मवादिनी रखा गया। एक बार जब आर्थिक संकट के कारण पेरुमल पूरी तरह टूट चुके थे तो स्वामी जी के पत्र ने उनको बल दिया स्वामी ने संदेश में लिखा था कि "आलासिंगा, यदि तुम्हें मरना भी पड़े तो करो,पर धर्म के लिए पत्रिका को जीवित रखो। ब्रह्मवादिनी का उद्देश्य महिलाओं को भारतीय दर्शन, संस्कृति और वेदांत से जोड़ना था।
सेवा और आदर्श के पर्याय आलासिंगा ने वर्ष 1909 में ली अंतिम सांस :
साल 1909 में इस महान व्यक्तित्व ने अंतिम सांस ली । पेरुमल ने अपने पूरे जीवन में स्वामी जी के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने यह साबित किया सेवा एवं निष्ठा किसी भौतिक वस्तुओं की मोहताज नहीं है मजबूत इच्छा एवं समर्पण से किसी भी कार्य को अंतिम रूप दिया जा सकता है। आलासिंगा कहते थे कि अगर संकल्प पक्का हो तो साधारण व्यक्ति भी इतिहास गढ़ सकता है।