दोनों दलों में गुटबाजी एक बड़ा फैक्टर रहेगी, दूरियां नहीं मिटी तो वोट भी बंटेंगे, कटेंगे
चुनाव परिणाम का असर बदलेगा दलीय राजनीति को
मधु आचार्य ' आशावादी '
RNE Special.
अंता विधानसभा उप चुनाव के लिए अब बिसात बिछ चुकी है। दोनों दलों के लिए ये उप चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न है। कांग्रेस ने उम्मीदवार पहले घोषित किया और बड़े ही लवाजमे के साथ नामांकन दाखिल किया। राज्य की पूरी कांग्रेस को वे नामांकन सभा मे एक साथ मंच पर लाये। ताकि एकजुटता का संदेश दिया जा सके। काफी हद तक ये संदेश देने में कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद जैन भाया सफल भी रहे।
भाजपा अभी तक असमंजस में है और उम्मीदवार का चयन भी नहीं कर पाई है। सीएम भजनलाल व प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ प्रत्याशी चयन के लिए पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के साथ एक लंबी बैठक भी कर चुके है। भाजपा प्रदेश प्रभारी राधे मोहन दास अग्रवाल व सीएम भी अलग से मंथन कर चुके है। वसुंधरा राजे अंता से पहले के विधायक व अपने गुट के प्रभुलाल सैनी से भी मंथन कर चुकी है। भाजपा कोर कमेटी की इसको लेकर अभी तक बैठक नहीं हुई है। भाजपा आलाकमान ने अन्य राज्यों के उप चुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिए। मगर अंता पर अब भी निर्णय नहीं हुआ है। कोर कमेटी की बैठक व पैनल के बिना भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति निर्णय कैसे करेगी, ये संभव भी नहीं। हालांकि माना ये जा रहा है कि भाजपा कभी भी उम्मीदवार घोषित कर सकती है।
निर्दलीय के रूप में नरेश मीणा ने नामांकन दाखिल कर भाजपा व कांग्रेस के लिए आरम्भ में ही समस्या खड़ी कर दी है। उनके नामांकन में भारी भीड़ थी। उन्होंने चुनाव संचालन का जिम्मा पूर्व मंत्री राजेन्द्र गुडा को देकर रोचक राजनीतिक तस्वीर बना दी है।
दलों की गुटबाजी बड़ा फैक्टर:
अंता उप चुनाव में सबसे बड़ा फैक्टर गुटों की राजनीति है। दोनों दल गुटबाजी से ग्रसित है। उस गुटबाजी से चुनाव परिणाम प्रभावित होगा, इसमें कोई शक नहीं। राजनीति में दिखाने के दांत कुछ और होते है और खाने के कुछ और।
पहले बात कांग्रेस की। प्रमोद जैन भाया पूर्व सीएम अशोक गहलोत गुट से जुड़े है। उनको टिकट भी उनके ही दबाव से मिला है। यदि पायलट की चलती तो प्रह्लाद गुंजल या नरेश मीणा को टिकट मिलती। पार्टी के दबाव के कारण नामांकन सभा में पायलट भी आये और गुंजल भी। अशोक गहलोत के पहुंचने से पहले पायलट वहां से निकल गये। अब यदि पायलट व गुंजल का रुख टेढ़ा रहा तो भाया के सामने बड़ी समस्या खड़ी होगी।
भाजपा भी गुटबाजी से पूरी तरह घिरी हुई है। इस इलाके में उन्हीं का वर्चस्व है। पहले दो बार यहां भाजपा जीती है, दोनों बार उनके ही समर्थकों को जीत मिली है। यदि इस बार टिकट राजे की ईच्छा के विपरीत दिया गया तो भाजपा के लिए जीत में बाधा तो खड़ी होगी ही। गुटीय दूरियां मिटे बिना भाजपा की राह आसान नहीं रहेगी।
दूरियां रही तो वोट कटेंगे, बंटेंगे:
दोनों ही दलों में यदि गुटीय दूरियां मतदान के दिन तक भी बनी रही तो पार्टियों के वोट बंटेंगे और कटेंगे भी। पहले के चुनाव इस बात की पुष्टि करते है। ये चिंता कांग्रेस व भाजपा, दोनों को परेशान किये हुए है।
नरेश मीणा की क्षति बड़ी चिंता:
नरेश मीणा कमजोर उम्मीदवार नहीं है। वो बड़ा वोट बैंक लेकर चलते है, वो है मीणा वोट बैंक। इससे दोंनो दलों को क्षति होगी। जो क्षति की भरपाई करेगा, वो आगे निकलने में कामयाब होगा।
चुनाव परिणाम का दलों पर असर:
चुनाव परिणाम भाजपा व कांग्रेस की राज्य राजनीति पर व्यापक रूप से पड़ेगा। भाजपा में अभी मंत्रिमंडल का विस्तार व पुनर्गठन बाकी है। राजनीतिक नियुक्तियां भी अब होनी है। प्रदेश कार्यकारिणी भी बननी है। इन तीनों कामों पर बड़ा असर पड़ेगा।
ठीक इसी तरह कांग्रेस में भी संगठन सृजन अभियान चल रहा है। जिलों व प्रदेश के नेतृत्त्व में बदलाव होना है। उस पर उप चुनाव का परिणाम असर डालेगा