किसान केशरी डूडी की विरासत को संभालना सियाग की बड़ी परीक्षा
देहात में अब सियाग ' एकला चलो रे ' की राह नहीं पकड़ सकते
Updated: Nov 24, 2025, 10:31 IST
मधु आचार्य "आशावादी"
आखिरकार कांग्रेस ने संगठन सृजन अभियान के तहत शहर व देहात में नए जिलाध्यक्षों की घोषणा कर दी। बड़ा बदलाव तो इसमें नहीं हुआ। शहर कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में यशपाल गहलोत को काम करते हुए 15 साल हो चुके है और वो खुद पद छोड़ भी चुके थे। पार्टी हित में वे अध्यक्ष बने हुए थे। उनकी जगह नये अध्यक्ष का आना तो तय था। इस स्थान को लोकसभा चुनाव लड़ चुके, रिटायर्ड एससी वर्ग के मदन मेघवाल को अध्यक्ष बनाया गया।
देहात कांग्रेस में अब तक अध्यक्ष स्व किसान नेता रामेश्वर डूडी की पसंद का ही बनता रहा है। डूडी ने ही बिसनाराम सियाग को यह जिम्मेदारी दी थी। उससे इस बार भी कोई छेड़छाड़ नहीं की गई। उनको फिर से देहात कांग्रेस की कमान सौंपी गई है। परिवर्तन का रिस्क पार्टी ने नहीं उठाया।
मेघवाल के सामने कई चुनोतियाँ शहर कांग्रेस अध्यक्ष बने मदन मेघवाल की राह आसान नहीं है। एक तो पहली बार शहर में एससी वर्ग के नेता को संगठन की कमान मिली है। दूसरे यहां बाहुल्य ब्राह्मण व अल्पसंख्यक समुदाय का है। इस बार भी इस वर्ग से कई नेता अध्यक्ष पद के दावेदार थे। पैनल में नाम भी थे, मगर चुना मेघवाल को गया।
अल्पसंख्यक समाज को अरसे से संगठन का मुखिया नहीं बनाया गया है, न इस वर्ग को पश्चिम से टिकट मिलता है। इस बार अध्यक्ष की रेस में जिया उर रहमान, साजिद सुलेमानी, मकसूद अहमद थे, मगर वे अध्यक्ष की दौड़ में पिछड़ गए। इस वर्ग को साधना अब मेघवाल के लिए बड़ी चुनोती है।
बीकानेर पूर्व व पश्चिम में बड़ी संख्या में ब्राह्मण है। इस वर्ग से पहले खूब अध्यक्ष बने है। हालांकि 15 साल से इस वर्ग के पास भी अध्यक्ष पद नहीं है, मूल ओबीसी के पास ही है। हालांकि पश्चिम से विधानसभा में टिकट इसी वर्ग को मिलता रहा है। इस बार भी अध्यक्ष के लिए अनिल कल्ला और अरुण व्यास मजबूत दावेदार थे, मगर वे भी पिछड़ गए। अब जाहिर है, अल्पसंख्यक व ब्राह्मण स्वाभाविक रूप से रूष्ट है, इनको मनाए बिना मदन मेघवाल की राह आसान नहीं होगी।
सियाग की ' एकला चलो रे ' राह नहीं हो सकती
अब तक देहात कांग्रेस में किसान केशरी स्व रामेश्वर डूडी का ही वर्चस्व रहा है। उनकी पसंद पहले के व वर्तमान के अध्यक्ष बिसनाराम सियाग है। सियाग पर फिर से पार्टी ने भरोसा जताया है। वे डूडी गुट के है मगर डूडी की तरह वे ' एकला चलो रे ' की राह नहीं पकड़ सकते। डूडी तो इस राह पर चलकर सफल भी हुए है। मगर रामेश्वर डूडी जैसा तो कोई दूसरा नेता हो ही नहीं सकता। ग्रामीण क्षेत्र में उनका जबरदस्त प्रभाव था। राज्य में पार्टियों के राज बदलते रहे मगर ढाई दशक से बीकानेर के पंचायती राज पर तो डूडी का ही वर्चस्व रहा।
स्व रामेश्वर डूडी की धर्मपत्नी सुशीला डूडी ने इस बार नोखा से विधानसभा का चुनाव जीता है, मगर संगठन पर साहब यानी रामेश्वर जी जैसी पकड़ नहीं है। इस कारण बिसनाराम सियाग को अब देहात कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सफल होना है तो दूसरे धड़ों को साथ लेकर चलना होगा। वे गोविंद मेघवाल, वीरेंद्र बेनीवाल, भंवर सिंह भाटी, मंगलाराम गौदारा की उपेक्षा करके अपनी राह नहीं चल सकते। पहले तो उनके साथ डूडी थे, उनके कद के सामने बाकी बोल नहीं पाते थे। अब वो स्थिति नहीं रही।
तालमेल सियाग की बड़ी टास्क
देहात में इस बार भी कई लोग अध्यक्ष के दावेदार थे। खासकर जाट समुदाय से ही। तेजी से उभर रहे रामनिवास कुकणा, गोविंद मूंड भी दावेदार थे और उनको दूसरे बड़े नेताओं का वरदहस्त प्राप्त है। इस सूरत में सबसे तालमेल बिठाना सियाग का बड़ा टास्क है।
डूडी की विरासत को संभालना होगा देहात कांग्रेस अध्यक्ष बिसनाराम सियाग के पास बड़ी ताकत रामेश्वर डूडी की विपुल विरासत है। इस विरासत को संभालना व आगे बढ़ाना सियाग के लिए बड़ी चुनोती है। डूडी ने लंबे संघर्ष, सहयोग व जीवंत संपर्क से यह विरासत खड़ी की है। यदि उसे नहीं संभाला जा सका तो वो बिखर जाएगी। जिसका खमियाजा केवल सियाग को ही उठाना नहीं पड़ेगा, अपितु कांग्रेस को भी बड़ा नुकसान होगा।
हालांकि देहात कांग्रेस के अध्यक्ष के अब तक के कार्यकाल से बिसनाराम सियाग ने अपनी सहजता, विनम्रता व धैर्य के स्वभाव से संगठन को करीने से चलाया है। मगर आने वाले समय मे पंचायती राज के चुनाव है तो उनको डूडी की तरह राजनीतिक रूप से तीखे तेवर भी दिखाने होंगे और डूडी के समर्थको के हितों की रक्षा भी करनी होगी। डूडी की तरह ही उनकी धर्मपत्नी सुशीला डूडी से तालमेल रख हर गांव व ढाणी तक खड़ी विरासत को पल्लवित करना होगा।
सियाग की असली परीक्षा पंचायती राज चुनाव में हो जाएगी। उससे ही यथार्थ का पता लगेगा। हालांकि डूडी समर्थकों को सियाग पर भरोसा है और उनसे उम्मीद भी है।