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विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी को फ्री रखना बड़ी वजह, यादव व मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण लालू से ही सम्भव

पिछड़ा व अन्य पिछड़ा वर्ग की भी पसंद है लालू
कांग्रेस पर लालू के होने से ही थोड़ा दबाव रहेगा
 

अभिषेक पुरोहित

RNE Special.

राष्ट्रीय जनता दल ' आरजेडी ' का अध्यक्ष बनना यूं तो लालू प्रसाद यादव के लिए बड़ी बात नहीं। पहले भी 12 बार वे ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। मगर इस बार उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बड़े चुनावी मायने है। उस कारण अस्वस्थता के बावजूद वे अध्यक्ष बने है । जबकि काफी समय से आरजेडी में बड़े निर्णय लेने का अधिकार वे अपने पुत्र व नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को दे चुके है।
इस बार बिहार में एनडीए व महागठबन्धन के बीच आरपार की लड़ाई है। इस लड़ाई में आरजेडी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। इसी वजह से लालू यादव को ही पार्टी की कमान देना सही समझा गया है। तेजस्वी को पहले से ही महागठबन्धन अपनी अगुवाई दे चुका है।

तेजस्वी को चुनाव के लिए फ्री हैंड:
 

चूंकि गठबन्धन तेजस्वी यादव के नेतृत्त्व में चुनाव लड़ रहा है, इस कारण प्रचार की कमान भी उनके हाथ में रहेगी। उनको फ्री हैंड रहे, इस कारण भी लालू ने अध्यक्ष बनना स्वीकार किया है। लालू अब पहले की तरह चुनाव प्रचार तो स्वास्थ्य कारणों से कर नहीं सकते। इस कारण उनको रणनीति निर्माण का जिम्मा दिया जाएगा। 

वाईएम समीकरण लालू से सम्भव:
 

लालू प्रसाद यादव में ही ' वाईएम ' समीकरण साधने की क्षमता है। मुस्लिम व यादवों के ध्रुवीकरण का काम केवल और केवल लालू ही कर सकते है। इन दोनों के अलावा पिछड़ा व अति पिछड़ा में भी उनकी गहरी पैठ है। नीतीश के भाजपा के साथ जाने से लालू इस बार वाईएम समीकरण साधने में सफल भी हो सकते है। मुस्लिम वक्फ संशोधन के बाद नीतीश से नाराज है, लालू खुलकर उनके साथ आये तो उनके लिए यह वर्ग नरम है। लालू पार्टी अध्यक्ष रहकर ही वाईएम समीकरण साध सकेंगे।
 

कांग्रेस पर भी रहेगा दबाव:
 

इस बार राहुल गांधी बिहार चुनाव को लेकर ज्यादा गम्भीर है। वे कन्हैया कुमार व पप्पू यादव के जरिये निरंतर आरजेडी पर दबाव बना रहे है ताकि अधिक सीटें ले सके। इस दबाव में लालू ही कमी ला सकते है। उनके सोनिया गांधी व राहुल से व्यक्तिगत सम्बंध भी है। हर मुश्किल समय में लालू ने कांग्रेस का साथ दिया है। इस कारण कांग्रेस उनके पार्टी अध्यक्ष रहते ज्यादा दबाव नहीं डाल सकेगी।