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प्रदेश में कांग्रेस अब उतरेगी नये चेहरों के साथ मैदान में, अगले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से लिखी जा रही स्क्रिप्ट

कई दिग्गज होंगे बदलाव में धराशायी
नया नेतृत्त्व उतरेगा राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ सड़कों पर
 

मधु आचार्य ' आशावादी '

RNE Special.
 

पिछले विधानसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद अब कांग्रेस फिर से अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी में अभी से लग गई है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था, उससे वो उत्साह में है और अभी से तैयारी में जुट गई है।

धड़ेबंदी से घिरी कांग्रेस को इस बात का अहसास है कि यदि गुटबाजी को दूर कर लिया जाए तो राजस्थान में कांग्रेस बेहतर स्थिति में है। यहां पहले कांग्रेस गहलोत व पायलट गुट में बंटी थी। जिनके बीच का झगड़ा आलाकमान लाख कोशिशों के बाद भी दूर नहीं कर सका था। उसका असर पिछले विधानसभा चुनाव में पड़ा भी था।
 

अब तो स्थिति और भी विकट है। कांग्रेस में एक तीसरा और नया गुट पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा का भी खड़ा हो गया है। डोटासरा लोकसभा में पार्टी का नेतृत्त्व कर रहे थे और प्रदर्शन अच्छा रहा, उसके बाद से उनकी भी एक लॉबी खड़ी हो गयी है। 

जुली और डोटासरा की बीच क्या?
 

अभी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली व पीसीसी चीफ डोटासरा के मध्य समीकरण कुछ तो सही नहीं है। क्योंकि विधानसभा में भाजपा सरकार पर जमकर हमलावर रहने वाले डोटासरा मानसून सत्र में एक दिन भी विधानसभा में नहीं गए।

इससे पहले के सत्र में भी वे अंतिम दिनों में विधानसभा से गायब रहे। दरअसल विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी व डोटासरा के मध्य सदन में तीखी तकरार हुई। देवनानी ने डोटासरा सहित 6 विधायकों को निलंबित कर दिया। तनाव रहा। माफी की बात चली मगर डोटासरा माफी न मांगने की बात पर अड़े रहे। मगर नेता प्रतिपक्ष जुली ने कांग्रेस की तरफ से और संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल ने भाजपा की तरफ से खेद प्रकट किया। उसके बाद विधायकों का निलंबन रद्द हुआ। मगर तब से ही डोटासरा विधानसभा में नहीं जा रहे।
 

संगठन में फेरबदल की सुगबुगाहट:
 

कांग्रेस में अध्यक्ष के रूप में डोटासरा का कार्यकाल पूरा हो चुका। अब उसकी बढ़ोतरी को लेकर सस्पेंस है। गुटबाजी के मध्य कांग्रेस बदलाव की नई पटकथा लिख रही है, जिसके संकेत भी मिल रहे है। ये संकेत सही रहे तो राज्य में कांग्रेस बड़ा बदलाव करेगी, ये तय है।
 

पायलट को लेकर चर्चा:

कांग्रेस में अंदरखाने इस बात की चर्चा है कि अगले विधानसभा चुनाव की अभी से तैयारी के लिए पार्टी राज्य में पायलट को संगठन की कमान सौंप सकती है। पिछली बार जब कांग्रेस सत्ता में आई थी तो पार्टी को 21 सीट से सत्ता तक लाने के समय पार्टी की कमान सचिन पायलट के पास ही थी। कांग्रेस फिर से वही कहानी दोहराना चाहती है।