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Vande Bharat Express : वंदे भारत एक्सप्रेस में यात्रियों को नहीं मिल रही हाई स्पीड की यात्रा, 130 की बजाए 71 किमी की स्पीड से दौड़ रही 

स्थायी-अस्थायी ब्लाक व आटोमेटिक ट्रैक न होना भी कारण
 

देश की पहली सेमी हाई स्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस अब देश में यात्रियों की पहली पसंद बन चुकी है। यही कारण है कि स्लीपर कोच वाली वंदे भारत एक्सप्रेस को रेलवे पटरी पर उतारने की तैयारी कर रहा है। रेलवे ने चार अलग-अलग रूटों पर वंदे भारत एक्सप्रेस चलाने का प्रस्ताव तैयार किया है। हालांकि, 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस की औसत स्पीड 71 किमी प्रतिघंटा भी पार नहीं कर पा रही है।

वंदे भारत एक्सप्रेस की औसत स्पीड 67 से 71 किमी प्रतिघंटा के बीच आ रही है। स्लीपर कोच वाली ट्रेनों को लंबी दूरी के मध्यम रूट पर चलाने की योजना है, जिसमें अधिकतम सफर का समय साढ़े आठ घंटे होगा। वंदे भारत एक्सप्रेस की दौड़ने की क्षमता तो अधिक है, लेकिन रेलवे के इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण औसत स्पीड बढ़ाने के लिए विकल्प तलाशे जा रहे हैं।

चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में पहली वंदे भारत तैयार की गई थी। यात्रियों की मांग के बाद स्लीपर वंदे भारत भी बनाई गई। वर्तमान में जो स्लीपर कोच की वंदे भारत चार रूटों पर दौड़ाई जानी है, उनमें औसत स्पीड अधिकतम जा रही है। चंडीगढ़ से इज्जत नगर का रूट 503 किलोमीटर है, जिसकी औसत स्पीड 67 किमी प्रतिघंटा है, जबकि सफर का समय साढ़े सात घंटे होगा।

इसी तरह, जयपुर से लखनऊ का रूट 568.37 किलोमीटर है, औसत स्पीड 71 किमी प्रतिघंटा, समय साढ़े आठ घंटे, वाराणसी से जबलपुर का रूट 467 किलोमीटर, औसत स्पीड 68.75 किमी प्रतिघंटा, समय सात घंटे पांच मिनट, और गोरखपुर से आगरा का रूट 602.51 किलोमीटर, औसत स्पीड 71 किमी प्रति घंटा, समय साढ़े आठ घंटे है।

स्थायी-अस्थायी ब्लाक व आटोमेटिक ट्रैक न होना भी कारण 

रेलवे में अभी जिस तरह से हर सेक्शन में ब्लाक का काम चल रहा है यह भी कहीं न कहीं ट्रेनों की रफ्तार में अड़चन बना हुआ है। संरक्षा दृष्टि से पटरी की मरम्मत का काम चलता रहता है, लेकिन कुछ सेक्शनों में स्थायी रूप से ब्लाक को चिह्नित कर लिया जाता है। ऐसे ब्लाक एक या दो दिन का नहीं, बल्कि 365 दिन तक कहीं न कहीं रहते ही हैं जो गार्ड, ड्राइवर से लेकर आपरेटिंग विभाग तक लिखित में जाते है यानि कि साल भर ट्रेन की रफ्तार धीमी करनी पड़ती है। इसके अलावा सिग्नल प्रणाली को भी कई जगह पर और मजबूत किया जा रहा है।

बिजी रूटों पर ट्रेनों की संख्या में वृद्धि

 रेलवे के सिंगल लाइन में एक दिन में 24 से 30 रेलगाड़ियां दौड़ सकती हैं, जबकि डबल लाइन में यह संख्या 60 तक पहुंच जाती है। ट्रेनों की संख्या में वृद्धि के कारण एक ट्रेन के पीछे दूसरी ट्रेन दौड़ रही होती है, जिससे सिग्नल न मिलने पर ट्रेन चालक को गाड़ी रोकनी पड़ती है। रेलवे ट्रैक को उस स्तर पर बनाने का प्रयास कर रहा है कि सेमी हाईस्पीड की औसत स्पीड बढ़ सके।