अमित व्यास की रिसर्च रिपोर्ट : Solar Energy डेजर्ट के "Flora-fauna" खतरा बनी!
RNE Bikaner.
राजस्थान में जो सौर ऊर्जा विकास की चमचमाती रोशनी की तरह दिख रही है वो कहीं इस थार प्रदेश के अस्तित्व पर संकट तो नहीं बनने जा रही है? चिंता भरा यह सवाल कई मंचों से उठ रहा है वहीं रिसर्चर अमित व्यास की एक संक्षिप्त शोध रिपोर्ट भी इस चिंता को बढ़ाने वाली है।
1.32 लाख एकड़ पर कट चुकी 40 लाख झड़ियाँ :
शोधार्थी एवं होम्योपैथी चिकित्सक डॉक्टर अमित व्यास ने राजस्थान में सौर ऊर्जा के लाभ-हानि पर रिपोर्ट तैयार की हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में सौर ऊर्जा से 2030 तक 65,000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में 26,452 मेगावाट उत्पादन हो रहा है जिसके लिए 1.32 लाख एकड़ भूमि का उपयोग हुआ है। अनुमान के अनुसार इस कार्य में अब तक लगभग 40 लाख स्थायी झाड़ियाँ काटी जा चुकी हैं और आगे के 38,548 मेगावाट उत्पादन के लिए 1.92 लाख एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी, जिससे अतिरिक्त 38.54 लाख झाड़ियाँ/वृक्ष और नष्ट होंगे।
कैर, खींप, बेर, रोहिड़ा खत्म हो रहा :
डॉ.व्यास कहते हैं जो झड़ियाँ साफ हो रही है उनमें कैप्परिस डेसिडुआ (कैर), लेप्टाडेनिया पायरोटेक्निका (खींप), टीकोमेला, ज़िज़िफ़स न्यूमुलारिया (बेर), अनोगीसस पेंडुला (रोहिड़ा) जैसी औषधीय, पोषक और बहुउपयोगी वनस्पतियाँ शामिल हैं।
450 करोड़ के उत्पाद, 50 लाख मानव श्रमदिवस खत्म होंगे :
व्यास एक अनुमानित रिपोर्ट के आधार पर बताते हैं कि राजस्थान में कैर, बैर, सांगरी, रोहिड़ा, लेप्टाडेनिया अर्क, रेशा जलाऊ लकड़ी आदि मिलकर हर साल लगभग 450 करोड़ के उत्पाद लिए जाते हैं। इतना ही नहीं इन उत्पादों को हासिल करने में लगभग 50 लाख मानव श्रम दिवस सृजित होते हैं। प्रति श्रम दिवस 800 रुपए कीमत आँकी जाएं तब भी एक वर्ष में स्थानीय रोजगार का लगभग 400 करोड़ का नुकसान होगा। ऐसे में फिलहाल जितनी झाड़ियाँ कट चुकी है उससे लगभग हर साल 850 करोड़ का आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। अगले तीन सालों में इतनी ही अन्य झाड़ियाँ कट जाने पर यह सालाना नुकसान का आंकड़ा 1600 करोड़ तक पहुँच सकता है।
यह खर्च और नुकसान बढ़ेगा :
सौर पेनल्स की सफाई के लिए जल और ऊर्जा पर पर हर साल लगभग 50 करोड़ खर्च सहित इनके रखरखाव, स्वास्थ्य पर विपरीत असर, परिस्थितिकी को नुकसान, सौर पैनल अपशिष्ट प्रबंधन आदि मिलकर सालाना लगभग 840 करोड़ का नुकसान भी व्यास आँकते हैं।
डॉक्टर अमित व्यास का कहना है, थार वर्षा आधारित, स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाली वनस्पतियाँ न केवल परिस्थितिकी तंत्र को सुचारु रखती है वरन स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सीधा समर्थन देती है। इनका विनाश ऐसा स्थायी नुकसान होगा जिसकी भरपाई बिजली उत्पादन लाभ से नहीं की जा सकेगी। जरूरत इस बात की है कि सौर ऊर्जा परियोजनाओं को स्थापित करने के साथ ही जैविक संसाधनों को सुरक्षित रखा जाएं।