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अभी तक वार्डों व प्रमुखों का आरक्षण ही तय नहीं, मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का काम 3 महीनें चलेगा

निकाय अब प्रशासकों के हवाले
चुनाव न होने से कइयों की उम्मीदों पर पानी फिरा
अभी तो कई नियम भी बदले जाने है
 

मधु आचार्य ' आशावादी '

RNE Special.


राज्य सरकार ने आखिकार कोटा व जोधपुर नगर निगमों को दो से एक करके उसे प्रशासकों के हवाले कर दिया। उससे यह तो स्पष्ट हो ही गया कि स्तानीय निकायों के चुनाव होने में अभी काफी समय शेष है। क्योंकि स्तानीय निकायों के चुनाव की कोई प्रारंभिक तैयारी भी सरकार के स्तर पर दिखाई नहीं दे रही।
 

राज्य सरकार ने ' एक देश, एक चुनाव ' को लागू करने की बात कहकर पहले से ही उन निकायों में प्रशासक लगा दिए थे, जहाँ कार्यकाल समाप्त हो गया था। उस समय स्थानीय निकायों के चुनाव पहले दिसम्बर और बाद में जनवरी में कराने की बात स्वायत्त शासन मंत्री की तरफ से कही गयी। मगर उस अवधि तक अब तो चुनाव की कोई संभावना ही नजर नहीं आ रही।
 

वार्ड आरक्षण ही तय नहीं:
 

राज्य सरकार ने अलग अलग स्तानीय निकायों में नए वार्ड बनाने और वार्डों के परिसीमन का काम तो पूरा कर लिया, मगर आरक्षण का काम अभी तक भी पूरा नहीं हुआ है। 
अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को यह काम करना है। जो जनसंख्या के आधार पर किया जाना है। किस जिले में कितने वार्ड और कौनसा निकाय किस वर्ग के लिए आरक्षित है, यह निर्धारण चुनाव से पहले होना जरूरी है। इस काम की अभी शुरुआत ही नहीं हुई है।

 

राज्य के स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने दो दिन पहले ही बयान दिया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग वार्ड आरक्षण जैसे ही तय करेगा, तीन दिन में सरकार आरक्षण की अधिसूचना जारी कर देगी। उस काम के बिना तो चुनाव की प्रक्रिया आगे ही नहीं सरकनी है।
 

मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण:
 

राज्य सरकार जहां अपनी तरफ से निकाय चुनावों की तैयारी कर रही थी, वहीं उसके बीच भारत निर्वाचन आयोग का नया निर्णय आ गया।
 

मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण कार्य के लिए भारत के निर्वाचन आयोग ने जिन राज्यों को चुना उसमें राजस्थान भी है। यहां यह काम तुरंत आरम्भ कर दिया गया। इस काम मे 3 महीने का समय लगना तो तय माना जा रहा है। जब तक इस पुनरीक्षण के बाद मतदाता सूची फाइनल नहीं होती तब तक स्तानीय निकाय के चुनाव होने भी सम्भव नहीं। ये बात तो स्वायत्त शासन मंत्री खर्रा ने भी स्वीकारी है। इस तरह तीन महीने के बाद जब स्तानीय प्रक्रिया आरम्भ होगी तो चुनाव मार्च से पहले होने तो संभव ही नहीं लगते। 
 

निकाय अब प्रशासकों के हवाले:
 

राज्य सरकार ने निकायों में प्रशासक लगा उनकी कमान अधिकारियों को दे दी है। अधिकारियों के रहने से सरकार को अपनी नीतियां लागू करने में भी आसानी रहती है। अब यदि किसी दूसरे दल का मुखिया किसी निकाय में है तो राज्य सरकार अपनी मर्जी के नियम तो आसानी से लागू करा नहीं सकती। इस वजह से अधिकारी ही प्रशासक के रूप में उसे शूट करते है।
 

अभी कई नियम बदले जाने है:
 

राज्य सरकार को निकाय चुनाव से जुड़ें कई नियमों को भी बदलना है। उस पर अपने विधायकों व नेताओं का दबाव भी है। सबसे पहले तो बच्चों की बाध्यता के नियम को बदला जाना है।। अभी दो से अधिक बच्चे वाला चुनाव नही लड़ सकता। सरकार इस बाध्यता को समाप्त करेगी, उसकी घोषणा भी कर चुकी है। मसौदा विधि विभाग ने तैयार भी कर लिया है। अब गेंद सरकार के पाले में है।
 

ठीक इसी तरह वर्तमान में निगम प्रमुख का चुनाव पार्षदों से होने का प्रावधान है। सरकार अब सीधे चुनाव कराना चाहती है। इन बदलावों के बिना चुनाव सम्भव नहीं। इनके लिए भी सरकार को समय चाहिए।
 

कईयों की उम्मीदों पर पानी फिरा:
 

कई स्थानीय नेता पार्षद, पालिकाध्यक्ष, सभापति व मेयर बनने की उम्मीद पाले हुए थे। तैयारी भी शुरू कर दी थी। उनकी आशाओं पर पानी फिर गया है। अब चुनाव मार्च या उसके बाद होने की संभावना है, उस समय नये समीकरण बनेंगे। तब तक तो इंतजार करना ही पड़ेगा।