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रोचक खबर: चोर को जब पता चला घर कवि नारायण सुर्वे का है तो सामान वापस लौटाया

 
  •  मराठी के मशहूर कवि हैं सुर्वे, पद्मश्री भी मिला हुआ
  •  दूसरे दिन चोरी करने गया तब पता चला
मधु आचार्य ' आशावादी ' RNE, National Bureau कवि, कविता का समाज मे मान है, ये कहने में कोई संकोच नहीं। भले ही पिछले कुछ समय से साहित्य और खासकर कविता के पाठकों में कमी आयी है। जिससे हर शब्दकर्मी चिंतित है। विपुल साहित्य लिखे जाने के बाद भी पाठक नहीं मिल रहे। ये चिंता हर लिखने वाले को सता रही है। सत्ता सदा साहित्य से सीख लेती आई थी, मगर अब तो सत्ता इसे सदा हाशिये पर रखती है। साहित्य को भी राजनीति की ताकड़ी से तोलती है। एक साहित्यकार का पहला धर्म होता है कि वो सदा सत्ता के विपक्ष में रहे और आम आदमी व समाज के साथ रहे। उसकी पीड़ा, दर्द का प्रतिकार करे। चेतना जागृत करे। पता नहीं सत्ता तो कब वापस उस सुनहरे सोच की तरफ बढ़ेगी मगर असामाजिक कर्म करने वाले भी शब्द, शब्दकर्मी का सम्मान करते हैं, इसका अंदाजा महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में मिला है। घटना ये है: रायगढ़ जिले में अनूठे चोर की चोरी का मामला सामने आया है। इसमें चोर ने न केवल माफी मांगी है, बल्कि चुराए गए टीवी सहित अन्य सभी कीमती सामान भी लौटा दिए हैं। वो भी सिर्फ इसलिए कि जिस घर में चोर ने सामान चुराया था, वह मराठी के मशहूर कवि और लेखक पद्मश्री नारायण सुर्वे का था। सुर्वे का 16 अगस्त 2010 को 84 साल की उम्र में निधन हो चुका है। उनके घर में बेटी सुजाता और उनके पति गणेश घारे रहते हैं। सुजाता और घारे अपने बेटे से मिलने विरार गये थे और उनका घर 10 दिन से बंद था। इसी दौरान चोर घर में घुसा था। दूसरी रात भी चोर आया चोरी करने घर बंद रहने के दौरान पहली बार चोर एलईडी टीवी समेत कुछ सामान चुरा ले गया। जब वह दूसरी बार चोरी करने घर में घुसा तो उसे एक कमरे में सुर्वे की तस्वीर और यादगार चीजें मिली। चोर को पता चला कि यह तो कवि लेखक सुर्वे का घर है। इसके बाद वह लौट गया। सारा सामान वापस रख गया। एक नोट लिखा, जिसमें माफी मांगी। चोर ने ये नोट छोड़ा मातृभाषा व उसके साहित्य से गजब लगाव: हर मराठी को अपनी मातृभाषा व उसके साहित्य से गहरा लगाव है ये तो सभी जानते हैं। मगर इस चोर ने साबित कर दिया कि मातृभाषा ' मां ' के समान है और उसकी सेवा करने वाला ऋषि है। काश, हर मातृभाषा के लिए हर उस भाषा के नागरिकों के मन में ऐसा ही प्रेम व सम्मान हो। चोर ने मातृभाषा के लिए एक बड़ी सीख हर इंसान को दी है। चोर के सम्मान में बबिता की कविता : इस घटना की जानकारी मिलने पर श्रीगंगानगर की कवयित्री बबिता काजल ने कविता रची। ये कवि मन की प्रतिक्रिया है--

चोर नहीं तुम साहूकार हो खो गया जो ईमान उसके तलबगार हो। बीमार है यह दुनिया झूठ फरेब के बाजार में तुम लुट चुके जमीर के सच्चे कदरकार हो कवि कविता से कुछ तो है वास्ता तुम्हारा जो पहचानते कलम को ऐसे कलाकार हो। लोग नज़र मिला कर बेच देते हैं झूठ को मृत आत्मा को दे रहे सम्मान क्या दुनिया से बेज़ार हो ? होंगे,होते रहें.. लोग चतुर चालक ईमान की भीड़ के तुम इकलौते होशियार हो