बादशाह हुसैन राणा की उर्दू रामायण का “सुमंगल” में गायन, “अस्मत अमीन” में मंचन
- 1935 में BHU के एक कंपीटीशिन के लिए लिखी थी उर्दू रामायण
- कंपीटीशन में मिला था गोल्ड मेडल, हर साल दीपावली के मौके पर होता है वाचन
RNE Bikaner.
राम आगमन के त्यौहार दीपावली के मौके पर जहां देशभर में चौपाइयाँ गूंज रही हैं वहीं राजस्थान में एक शहर ऐसा है जहां रामायण चौपाइयों के साथ ही अश’आर में भी गूंज रही है। मतलब यह कि तुलसीदासजी की अवधि के साथ ही यहां उर्दू में भी रामायण कही-सुनी जा रही है। यह शहर है बीकानेर और उर्दू की रामायण है बादशाह राणा की ओर से 1935 में लिखी गई ।
सुमंगल जनकल्याण ट्रस्ट के आयोजन में उर्दू रामायण का पाठ :
उर्दू की इसी रामायण का पाठ बीती रात सुमंगल जनकल्याण ट्रस्ट द्वारा भाजपा नेता डॉ सुरेंद्रसिंह के निवास पर किया गया। इस मौके पर शायर जाकिर अदीब, डॉ जिया उल हसन कादरी और असद अली असद की आवाज में पवित्र मानस के उर्दू अनुवाद का सस्वर वाचन किया गया। ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ सुरेंद्रसिंह ने स्वागत भाषण में कहा कि यह दुर्लभ ही वाकया है कि बीकानेर में इस्लाम को मानने वाले भी भगवान राम की कहानी को श्रद्धा के साथ उर्दू में गाते है। उन्होंने बीकानेरियत की इस परंपरा को आगे बढ़ाने की अपील की ।
कार्यक्रम के आरंभ में सुभाष मित्तल , कैलाश सिंह सादू, दीप सांखला , हाजी मकसूद अहमद , रामचंद्र पचार , भंवर पुरोहित ने दीप प्रज्वलन किया। कार्यक्रम में रामायण के वाचन पर जितेंद्र सुराना , आर के सुथार , रवि पुरोहित , मोहनलाल गोदारा , विक्रम सिंह झाला , श्री कृष्णनाथ सिद्ध , रमजान अब्बासी , नवीन सिंह तंवर ने टिप्पणी की । ट्रस्ट सचिव डॉ अशोक भाटी ने आभार जताया ।
जीत सिंह की उर्दू नज़्म “रामायण” “इशारा” की रंगमंचीय प्रस्तुति :
अस्मत अमीन सभागार में वरिष्ठ रंगकर्मी जीत सिंह द्वारा उर्दू नज्म रामायण तथा मस्तान बीकानेरी की ऐतिहासिक नज़्म इशारा की मंचन के अंदाज में प्रस्तुति दी गई। मतलब यह कि एक तरह से एकल अभिनेता के रूप में इन रचनाओं का मंचन किया।
इस मौके पर वरिष्ठ शायर गुलाम मोहियुद्दीन ने कहा, एक बेहतरीन कलाकार अपनी प्रतिभा से किसी भी रचना को जीवंत रूप में प्रस्तुत कर आमजन का ध्यान तो आकर्षित करता ही है साथ ही रचना को हर युग में प्रासंगिक बने रहने में भी योगदान देता है।
मधुमति के पूर्व संपादक तथा केंद्रीय साहित्य अकादमी के सदस्य डॉक्टर बृज रतन जोशी ने बतौर मुख्य अतिथि अपने उद्बोधन में कहा कि बादशाह हुसैन राना तथा मस्तान बीकानेरी कालजयी रचनाकार थे जिनकी रचनाओं में आज भी सम्मोहन-सा है। उनकी चर्चित रचनाएं रामायण तथा इशारा की प्रस्तुति रंगकर्मी जीत सिंह ने जिस अंदाज में की है उसमें रचनाकारों के सम्मान में अभिवृद्धि हुई है। श्रोताओं में दीगर रचनाएं पढ़ने के प्रति रुचि यह बताती है कि कार्यक्रम रचनात्मक और सार्थक रहा है।
सोशल प्रोगेसिव सोसायटी बीकानेर के अध्यक्ष नदीम अहमद नदीम बताया कि संस्था शिक्षा,साहित्य और विरासत संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही है। युवा साहित्यकार इमरोज़ नदीम द्वारा उर्दू नज़्म रामायण को गायन शैली में प्रस्तुत किया गया तथा रामायण पर जारी डाक टिकटो एवं मिनिएचर का प्रदर्शन भी किया गया । विशिष्ट अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए शायर रवि शुक्ला ने कहा कि जश्ने चरागा जैसे कार्यक्रम समाज में जहां विश्वास मजबूत करते हैं वही सौहार्द और अपनेपन को बढ़ावा देते हैं । मुफ्ती सद्दाम हुसैन कासमी ने नज़्म रामायण के रचयिता बादशाह हुसैन राना का विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में विजय शर्मा, संजय जनागल, संजय पुरोहित, अब्दुल जब्बार कादरी, डॉक्टर सीमा भाटी , मीतू ढल्ला , सुषमा गहलोत ,रवि पुरोहित, दयानंद शर्मा, सुधीश शर्मा, आदित्य शर्मा ,मनिंदर सिंह भुई, मुफ्ती सद्दाम हुसैन, अब्दुल शकूर सिसोदिया, इसरार हसन कादरी, गोविंदराम गोदारा, प्रदीप भटनागर, विजय सिंह राठौड़ इरशाद अजीज, संजय आचार्य वरुण आदि मौजूद रहे।
BHU में कंपीटीशन के लिए बीकानेर में लिखी गई उर्दू रामायण :
ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर बताया जाता है, 1935 में मौलवी बादशाह हुसैन राणा लखनवी ने बीकानेर में उर्दू रामायण लिखी थी। उस समय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से अपनी मातृभाषा में कविता के रूप में रामायण लिखने की एक प्रतियोगिता आयोजित हुई थी। मौलवी राणा बीकानेर रियासत के महाराजा गंगासिंह के यहां उर्दू-फारसी के फरमान अनुवाद किया करते थे। इस रामायण को उर्दू में सबसे संक्षिप्त में लिखा हुआ माना जाता है। इस रामायण में 27 छंद है। हर छंद में छह-छह लाइने हैं। कहा जाता है कि मौलवी राणा ने अपने कश्मीरी पंडित मित्र से रामायण के किस्से सुने थे. इसके आधार पर उन्होंने इस रामायण की रचना की। बाद में इस रामायण को प्रतियोगिता में भेजा गया, जहां इसे सबसे अच्छी रामायण मानते हुए गोल्ड मेडल से नवाजा गया।