- वर्चस्व की परिपाटी भी नहीं टूट पायेगी
- ये संगठन स्वतंत्र काम करेंगे तब बढ़ेगा पार्टी का भी जनाधार
- इनकी नियुक्ति में भी पारदर्शिता रहनी बहुत जरूरी
अभिषेक आचार्य
RNE Special. भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही दलों में संगठन व अग्रिम संगठनों को लेकर स्थिति को अच्छा नहीं कहा जा सकता। जबकि बूथ पर वोट लाने का काम इन्ही संगठनों के नेता व कार्यकर्ता अधिक करते है। मगर उनको ही सबसे अधिक उपेक्षा झेलनी पड़ती है।

सत्ता हो या विपक्ष,दोनों दल में से कोई भी किस तरफ ही क्यों न हो, वो भी संगठन व अग्रिम संगठनों को दूसरे दर्जे पर रखते है। सत्ता में जितने शीघ्रता से काम नेताओं, जन प्रतिनिधियों के होते है, उतने जल्दी क्या काम ही नहीं होते संगठनों के। खासकर अग्रिम संगठनों के। इसका कारण है कि उस समय संगठन पर सत्ता हावी हो जाती है। दोनों ही राजनीतिक दलों में यही स्थिति है।
विपक्ष हो तब याद आता है संगठन दोनों ही राजनीतिक दलों की यह सामान्य स्थिति है कि जब वे विपक्ष में होते है तब ही संगठन व अग्रिम संगठन याद आते है। क्योंकि उस समय धरने, प्रदर्शन, घेराव, आंदोलन आदि करने पड़ते है। जो सत्ता में रह लिए उनसे ये काम होता नहीं, तब संगठन को आगे करते है। जिनको सत्ता के समय पीछे रखते है, उनको आगे करते है। ये कड़वा सच है राजनीतिक दलों का। जो विधायक रह लिए, जो मंत्री रह लिए, वो आंदोलन में पीछे ही रहते है। तब पार्टी की साख संगठन व अग्रिम संगठन बचाते है।
भाजपा व उसके अग्रिम संगठन भाजपा के अग्रिम संगठनों में मुख्य रूप से भाजपा युवा मोर्चा, महिला मोर्चा, ओबीसी मोर्चा, विद्यार्थी परिषद है। और भी संगठन है, लेकिन सक्रियता इनकी ही रहती है। इनकी नियुक्ति भी प्रदेश से होती है। उसमें भी लॉबिंग चलती है।

जब भाजपा विपक्ष में हो तो इन संगठनों के पदाधिकारी ही आगे खड़े, प्रशासन से झगड़ते दिखते है। अभी जब पार्टी सत्ता में है तो इनके पदाधिकारी ऐसा लगता है जैसे पर्दे के पीछे हो गए है। अब सामने तो जन प्रतिनिधि ही दिखते है। ये ही विडंबना है कि अग्रिम मोर्चे के लोग अब आगे नहीं दिखते।
कांग्रेस व उसके अग्रिम संगठन कांग्रेस में मुख्य रूप से युवक कांग्रेस, महिला कांग्रेस, सेवादल व एनएसयूआई अग्रिम संगठन है। पहले जब सत्ता में कांग्रेस थी तो इनके मुखियाओं की सुनवाई कम ही होती थी। संगठन के पदाधिकारियों को भी सत्तासीनों के पीछे भागना पड़ता था। कार्यक्रम भी विधायकों व मंत्रियों के अनुसार संगठन को तय करने पड़ते थे।

अब जब कांग्रेस विपक्ष में है तब सड़क पर संघर्ष करते संगठन व अग्रिम संगठन दिख रहे है। सत्ता में रहे तो उनके पीछे ही खड़े नजर आते है। पिछले एक साल में कांग्रेस ने जितने भी प्रदर्शन, आंदोलन किये है उनमें अग्रिम संगठनों व संगठन के लोग ही सामने लड़ते दिखे है।
भाजपा की स्थिति थोड़ी बेहतर संगठन व अग्रिम संगठनों को तवज्जो की बात करें तो भाजपा में कांग्रेस से स्थिति थोड़ी बेहतर है। यहां मुख्य पदाधिकारी चूंकि काफी मंथन के बाद बनाये जाते है तो उनको महत्त्व मिलता भी है। कांग्रेस में संगठन या अग्रिम संगठन के उसी पदाधिकारी को अवसर मिलता है जो व्यक्तिगत वजूद रखता है या किसी बड़े का उनको आशीर्वाद प्राप्त है। संगठन के महत्त्व को जबसे कांग्रेस ने कम किया, तबसे उसे जीत भी कम मिलनी शुरू हुई है। इस फर्क को यदि कांग्रेस ने नहीं समझा तो उसे संभलने में ज्यादा वक्त लगेगा। भाजपा को भी और सुधार की जरूरत है इस मामले में।
नई खेप के लिए ये जरूरी वही राजनीतिक दल हमेशा ज्यादा सफल रहता है जो अपनी दूसरी व तीसरी पंक्ति को भी तैयार रखता है। ताकि जब जरूरत पड़े वो नई खेप को चुनाव में उतार सके। नहीं तो मजबूरी में बारबार एक ही उम्मीदवार उतारना पड़ता है, जिससे एन्टीनकम्बेंसी की मार झेलनी पड़ती है। भाजपा इस मामले में भी थोड़ी बेहतर है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी अब जाकर इसे पहचान पाये है। तभी उन्होंने तीन तरह के घोड़ो की बात कही है।

पार्टियों में नई खेप जब संगठन व अग्रिम संगठनों से आनी शुरू होगी तो स्वतः संगठन का महत्त्व बढ़ जायेगा। पूरी पार्टी में सुधार आ जायेगा।
स्वतंत्र कार्य करने की छूट जरूरी संगठन व अग्रिम संगठनों को स्वतंत्र रूप से भी कार्य करने की छूट मिलनी चाहिए। केंद्रीय व राज्य स्तरीय नेतृत्त्व जो निर्देश दे, वो कार्यक्रम तो करने ही है। स्थानीय स्तर पर इनको स्वतंत्र रूप से कार्य करने की छूट मिलनी जरूरी है। बस, उसका मूल्यांकन प्रदेश से किया जाता रहे। इनको स्वतंत्रता मिलेगी तो पार्टी का जनाधार बढ़ना भी तय है।
इनमें नियुक्तियां पारदर्शी हो ये एक बड़ी जरूरत है कि संगठन व अग्रिम संगठनों की नियुक्तियों में पारदर्शिता रहे। ताकि जो पद पर आए वो एक नेता के लिए नहीं पार्टी के लिए काम करे। कांग्रेस में राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस व एनएसयूआई में चुनाव का तरीका लागू करने का साहस तो किया है, भले ही बेहतर तंत्र नहीं बन पाया। मगर कांग्रेस ने ईमानदार कोशिश जरूर की है। दोनों ही पार्टियों को इस मामले में भी अपनी योजना अनुसार पारदर्शिता जरूर लानी चाहिए। इससे कार्यकर्ता व जनता का पार्टी में विश्वास बढ़ेगा।
