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मीरा पर सियासी विवाद से परे सार्थक साहित्य मंथन हुआ

RNE Network

हर बार साल का अंत आते ही साल की बेस्ट पुस्तकों की सूचियां जारी होनी शुरू हो जाती है। कोई 100 पुस्तकों की तो कोई 50, कोई 10 पुस्तकों की सूची जारी करता है। कोई इसी संख्या में लेखकों की सूची जारी कर देता है। ये सूचियां सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल होती है। इस कारण ही इन पर सबसे अधिक विवाद भी होता है। विवाद कई बार तो शालीनता की परिधि को भी लांघ जाता है। जिनके नाम इन सूचियों में आते हैं, वे भी अपनी और उस सूची की सूचना चस्पा करके अलग से प्रचार देते हैं। अपने को बड़ा मान इतराते हैं। दूसरे लेखकों को जो सूची में शामिल नहीं है, उनको नीचा दिखाने का काम करने से भी परहेज नहीं करते। अपने मित्रों में, अपने शहर में सूची में नाम आने के कारण इतराकर निकलते हैं।

ठीक इसके विपरीत जिनके नाम किसी भी सूची में नहीं आते, वे सूचियों पर सवाल खड़े करते हैं। उसकी आलोचना खुलकर करते हैं। इन सूचियों को खारिज करने में सोशल मीडिया पर पूरी ताकत लगा देते हैं। अजीब गरीब आपत्तियां भी खड़ी करते हैं। उनकी पूरी कोशिश रहती है कि इन सूचियों को पूरी तरह से गलत साबित कर दिया जाये। इसके लिए वे उन बड़े लेखकों के नाम का सहारा लेते हैं, जिनके नाम उस सूची में नहीं होते। भले ही उन लेखकों को इन सूचियों से कोई दूर दूर तक का सरोकार न हो। उनको भी इस विवाद में घसीटने से वे नहीं चूकते। विवाद उनका लक्ष्य होता है, ताकि सूची सवालों के घेरे में आ जाये और सब उसे अविश्वसनीय मानने लग जायें।

सूचियां अपनी जगह। विवाद अपनी जगह। जो सूचियां बनाये उसकी अपनी भी तो सीमाएं होती है। सुदूर शहरों, गांवों में भी लिखने वाले हैं। उनकी किताबें भी छपती है, वे इन सूचियां बनाने वालों तक कहाँ पहुंचती है। एक साल की सभी पुस्तकों के बारे में जानना किसी के भी वश की बात नहीं, यह व्यावहारिक बात है। फिर दूसरी बात, पुस्तक का असली मूल्यांकन तो पाठक से होता है। पाठक किसे पढ़ रहा है, यह बताने वो किसी को नहीं जाता। सूचियां बनाने वाले पाठक से पूछते भी नहीं। जब पुस्तक के अच्छा होने, अधिक पढ़े जाने, अधिक चर्चित होने का आधार पाठक है और वही पाठक इन सूचियों का आधार नहीं तो फिर विवाद करने से फायदा क्या है। अपनी अपनी पसंद, अपने अपने ध्येय, अपना अपना कारोबार, ये तो अब साहित्य में भी चलता है। उसे जो चलाते हैं, चलाने दें। लेखक पर इसका क्या फर्क पड़ता है। वो तो अपनी धुन में लिखता ही रहेगा। सूचियों के कारण रुकेगा नहीं। जरूरत निरंतर लेखन व पठन की है, सूचियां या उनमें नाम साहित्य की तो जरूरत नहीं।

राजस्थानी साहित्य के दो आयोजन:

बीते सप्ताह राजस्थानी साहित्य के दो महत्ती आयोजन हुए, जिनकी गूंज पूरे साहित्य जगत में है। यह आयोजन साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल की तरफ से आयोजित किये गये। इन दोनों आयोजनों के लिए राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक कवि, आलोचक, नाटककार डॉ अर्जुन देव चारण साधुवाद के पात्र हैं।

पहला आयोजन मीरा की धरती मेड़ता में हुआ। साहित्य अकादमी व श्री चतुर्भुज शिक्षा समिति, मेड़ता सिटी के तत्वावधान में श्री चारभुजा राजपूत छात्रावास में हुआ। इस आयोजन में मीरा का इस तरह से पहली बार साहित्यिक व सांस्कृतिक मूल्यांकन हुआ।

अपने संबोधन में डॉ अर्जुन देव चारण ने कहा कि मीरा ने अपने कर्म से सकल विश्व मे प्रेम की प्रतिष्ठा की। उन्होंने मीरा के काव्य के विविध पक्षों को भी रेखांकित किया। मेड़ता के लोगों के लिए ये नई जानकारियां थी। साहित्यकार सत्यनारायण ने मीरा को भक्ति, शक्ति व प्रेम की त्रिवेणी बताते हुए कहा कि राजस्थानी मध्यकालीन साहित्य को उनका बड़ा योगदान है। ‘ मीरा : जीवण अर सिरजण ‘ विषयक इस आयोजन में मध्यकालीन काव्य एवं मीरा पर शोध पत्र रामरतन लटियाल ने व राजस्थानी लोक में मीरा विषय पर रीना मेनारिया ने शोध पत्र पढ़े। ये नवीन जानकारियों को उद्घाटित करने वाले पत्र तो थे ही, साथ ही मीरा की व्यापकता और विशालता को भी दर्शाने वाले थे। इनके अलावा इतिहास के परिदृश्य में मीरा बाई पर श्याम सुंदर सिखवाल ने व मीरा की भक्ति साधना पर सवाई सिंह महिया ने पत्र पढ़े। एक सत्र की अध्यक्षता करते हुए कवि, आलोचक व जोधपुर विवि के राजस्थानी विभाग के विभागाध्यक्ष गजेसिंह राजपुरोहित ने कहा कि मीरा का काव्य मध्यकालीन युग का उत्कृष्ट काव्य था और मीरा के उल्लेख के बिना वो अधूरा है। एक सत्र की अध्यक्षता जगदीश गिरी ने की और उन्होंने मीरा की भक्ति परंपरा पर विस्तार से बताया। इनके अलावा लक्ष्मण दान कविया व श्रवण सिंह राजावत ने भी मीरा व उनके साहित्यिक, सांस्कृतिक कर्म के बारे में जानकारी दी।

दूसरा आयोजन साहित्य अकादमी ने जयनारायण विवि जोधपुर के राजस्थानी विभाग के सहयोग से किया। ये आयोजन ‘ सौभाग्यसिंह शेखावत जलमसदी समारोह था। इसके उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि कल्याण सिंह शेखावत थे। विवि के कुलपति के एल श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में विवि के राजस्थानी विभाग की प्रशंषा करते हुए कहा कि अपने साहित्य के पुरोधाओं के कार्य को निरंतर सामने लाने का ये काम बहुत महत्त्वपूर्ण है। विभाग अपने शिक्षा व साहित्य के धर्म का पूरा निर्वाह कर रहा है। इसके लिए उन्होंने विभागाध्यक्ष गजेसिंह राजपुरोहित को बधाई भी दी। कवि, आलोचक, नाटककार डॉ अर्जुन देव चारण ने अपने संबोधन में कहा कि राजस्थानी भाषा व साहित्य की हेमाणी थे शेखावत। उन्होंने शेखावत के साहित्य कर्म के बारे में विस्तार से बताया।

इस आयोजन के उद्घाटन सत्र की एक खास बात और थी, राजस्थानी के मान की। आयोजन की शुरुआत में साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की द्वैमासिक पत्रिका ‘ समकालीन भारतीय साहित्य ‘ का लोकार्पण हुआ। वर्षों बाद इस पत्रिका के जरिये आधुनिक राजस्थानी साहित्य पूरी दुनिया के सामने आया है। ये एक ऐतिहासिक कार्य हुआ है, जिसके लिए डॉ अर्जुन देव चारण बधाई के पात्र हैं। उनके प्रयासों से देश की 24 भाषाओं के लेखकों, पाठकों को इस बात का आभाष हुआ है कि राजस्थानी साहित्य सभी अन्य भाषाओं के बराबर ही नहीं खड़ा है, कई भाषाओं से तो बहुत आगे है। इसके अलावा इसी अवसर पर गजेसिंह राजपुरोहित संपादित पुस्तक ‘ पारस अरोड़ा री साहित्य साधना ‘ पुस्तक का भी लोकार्पण हुआ। पारस अरोड़ा पर संभवतः यह पहली मुक्कमिल पुस्तक बनी है, जो राजस्थानी साहित्य जगत के लिए बहुत उपयोगी है। गजेसिंह राजपुरोहित इसके लिए बधाई के पात्र हैं।

सौभाग्य सिंह शेखावत पर केंद्रित परिसंवाद में नीलू शेखावत, संजय कुमार शर्मा, मदन सिंह राठौड़ व सद्दीक मोहम्मद ने शोध पत्र पढ़े। सत्रों की अध्यक्षता गजेसिंह राजपुरोहित व पृथ्वीराज रतनू ने की। डॉ शिवसिंह सारंगदेवोत व जहूर खां मेहर ने समापन सत्र में विचार व्यक्त किये। ये दो आयोजन व दो पुस्तकों का लोकार्पण राजस्थानी साहित्य के लिए बड़ी घटना है। जिसके लिए साहित्य अकादमी, नई दिल्ली व डॉ अर्जुन देव चारण का साधुवाद।

बाळपणे री बगीची पुस्तक आई:

दीनदयाल शर्मा निरंतर हिंदी व राजस्थानी के बाल साहित्य में सक्रिय हैं। उन्होंने खुद को इसके लिए ही समर्पित कर रखा है। बाल साहित्य में अलग अलग विधाओं में लिखने के बाद अब दीनदयाल जी ने पहली बार पूरे बाल साहित्य को लेकर एक आलोचनात्मक पुस्तक दी है ‘ बाळपणे री बगीची ‘। अपने आप में ये बहुत महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इसमें सक्रिय बाल साहित्यकारों की पुस्तकों की विगत उनके कथानक पर टिप्पणी के साथ है। ये काम बाल साहित्य के क्षेत्र में पहली बार हुआ है। इसका लोकार्पण हनुमानगढ़ में पिछले दिनों हुआ। दीनदयाल शर्मा जी को बधाई।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।