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Bikaner: एक परिवार के 11 को उम्रकैद, अपराध-गवाह को घेरकर पीटा, हाथ- पांव तोड़ डाले

 

RNE Nokha-Bikaner.
 

बीकानेर की एक अदालत ने छह भाइयों और उनके बेटों सहित एक ही परिवार के 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह सजा गवाह को पीटने के कारण सुनाई है।

यह फैसला बीकानेर जिला में नोखा के अपर सेशन न्यायाधीश मुकेश कुमार ने सुनाया। अपर लोक अभियोजना (APP) राजा राम बिश्नोई के हवाले से आई जानकारी के मुताबिक,  धूड़ाराम नामक व्यक्ति के साथ हुई मारपीट के गवाह उसके भाई जयसुखराम पर जानलेवा हमला करने के आरोप ने कोर्ट ने 11 को सजा सुनाई है। इसमें बृजलाल पुत्र बीरबलराम, देवीलाल पुत्र बृजलाल, सुन्दरलाल पुत्र गोपीराम, शिवलाल पुत्र बीरबलराम, सुखदेव उर्फ सुखाराम पुत्र बृजलाल, सोहनलाल पुत्र बीरबलराम, गोपीराम पुत्र बीरबलराम, रामकुमार पुत्र बीरबलराम, मांगीलाल पुत्र गोपीराम, प्रदीप पुत्र बृजलाल, रामस्वरूप पुत्र बीरबलराम को सजा सुनाई गई है।

दरअसल धूड़ाराम के साथ 11 लोगों ने मिलकर मारपीट की थी। इस मामले में रिश्ते का भाई जयसुखराम गवाह था।  फरवरी 2016 में जयसुखराम की तबीयत खराब थी। वह अपने बेटे राकेश के साथ पैदल अस्पताल की ओर जा रहे थे। रास्ते में छिपकर बैठे  बृजलाल, देवीलाल, सुन्दरलाल, शिवलाल, सुखदेव उर्फ सुखाराम, सोहनलाल, गोपीराम, रामकुमार, मांगीलाल, प्रदीप और रामस्वरूप ने उन्हें घेर लिया। उनके हाथों में कुल्हाड़ी और लाठियां थी। आते ही उन्होंने पिता-पुत्र पर हमला कर दिया।
 

आरोपियों ने जयसुखराम के पैरों में कुल्हाड़ी मारी और लाठियों से सिर पर वार किया। इस दौरान राहगीरों ने शोर मचाया तो आरोपी उन्हें छोड़कर भाग निकले। इस हमले में जयसुखराम के दोनों पैर टूट गए, इसमें 10 जगह फ्रैक्चर आए थे। उनके बेटे राकेश के भी हल्की चोट आई थी।
 

कोर्ट ने आदेश में कहा,  महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अभियुक्तों ने ये मारपीट एक साक्षी के साथ की है। उसने गवाह के रूप में अदालत में बयान दिया था। एक साक्षी को न्यायालय में उसकी स्वतंत्र रूप से साक्ष्य देने से मना करने (दबाव बनाने) और साक्ष्य देने के कारण सबक सिखाने के लिए मारपीट की गई। कोर्ट ने गवाह के साथ हुई मारपीट को गंभीर मानते हुए इसमें शामिल एक ही परिवार के 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।

इसलिए कड़ी सजा:
 

कहा गया है कि न्याय शास्त्र में साक्षी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है और न्यायालय तभी उचित निष्कर्ष पर पहुंच सकता है, जब साक्षियों द्वारा स्वतंत्र रूप से अपनी गवाही न्यायालय के सामने दी जाए।
 

यदि किसी साक्षी को ही साक्ष्य देने से रोका जाता है, धमकाया जाता है, मारपीट की जाती है। उसके बाद साक्षी न्यायालय में साक्ष्य देने से बचता है या वास्तविक साक्ष्य नहीं देता तो वास्तविक न्याय निर्णय भी नहीं हो पाता है। इससे न्याय व्यवस्था का औचित्य ही प्रभावहीन हो जाता है।

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