लीक पर चल रही राजस्थानी कहानी को एक खूबसूरत मोड़ कथ्य व शिल्प पर दिया
प्रचलित ढर्रे से अलग पहचान बनाई सांवर जी ने अपने रचनाकर्म से
पुरस्कार नहीं, काम बोलता था इस मायड़ भाषा के लाडले का
पूनम चौधरी
RNE Special.
( रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE ने अपने पाठकों से वादा किया था कि वो उन समर्थ रचनाकारों, कलाकारों व पत्रकारों से अपने पाठकों को रु ब रु करायेगी जिनका बीकानेर, प्रदेश व साहित्य को अनमोल योगदान रहा है। उनके जन्मदिन व याद दिवस पर उनके रचनाकर्म से हम परिचित कराते आ रहे है। आज राजस्थानी के सपूत सांवर दइया का निर्वाण या स्मृति या याद दिवस है। राजस्थानी साहित्य में उनका बड़ा योगदान है। उनके रचनाकर्म से परिचय करा रही है पूनम चौधरी। वे बीबीएस में हिंदी की अध्यापिका है। उनका कविता संग्रह भी शीघ्र प्रकाशित हो रहा है। स्व सांवर दइया को रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस की तरफ से सादर नमन - संपादक )
राजस्थानी भाषा में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली विधा कहानी है। इस विधा ने लगातार समय के साथ कदमताल करते हुए अपने शिल्प को भी बदला और कथ्य में भी नये प्रयोग किये। जिसके चलते ही राजस्थानी कहानी सदा हिंदी सहित हर भाषा की कहानी के बराबरी में और कई बार तो उनसे दो कदम आगे खड़ी दिखी। राजस्थानी कहानी को ये मान दिलाने में अनेक रचनाकारों के भागीरथी प्रयास रहे है। उनमें से ही एक महत्ती व उल्लेखनीय नाम है स्व सांवर दइया का।
मायड़ भाषा के इस लाडेसर ने राजस्थानी कहानी को अपने प्रयोग से ऊंचाईयां दी। ये प्रयोग इस समर्थ रचनाकार ने न केवल कथ्य के स्तर पर किये अपितु शिल्प के स्तर पर भी किये। कहानी के प्रचलित ढर्रे को इन्होंने बदला, जाहिर है ये जोखिम का काम होता है। इस जोखिम को उन्होंने प्रतिरोध के बावजूद भी उठाया और राजस्थानी कहानी की दिशा को बदलकर दिखला दिया।
कवि, नाटककार, आलोचक डॉ अर्जुन देव चारण ने जब राजस्थानी कहानी पर आलोचनात्मक पुस्तक लिखी तो उसमें पहली बार सांवर दइया के अनमोल योगदान को प्रकट किया। डॉ चारण ने साबित किया कि दइया ने कहानी की दिशा ही बदल दी। राजस्थानी कहानी ने प्रचलित ढर्रे को छोड़ा और कथ्य में जीवन दर्शन व चिंतन का समावेश हुआ। शिल्प भी उन्होंने बदल के रख दिया। संवादों के जरिये बात कहना और नरेशन को कम करने का काम उन्होंने ही राजस्थानी कहानी में किया। ये राजस्थानी कहानी में एक बड़ा बदलाव था।
विपुल मात्रा में रचनाकर्म:
सांवर दइया की जीवन यात्रा 1948 से 1992 तक की है। इस अवधि में उन्होंने 11 पुस्तकें प्रकाशित की। जिनमें कहानी संग्रह, कविता संग्रह, बाल साहित्य, हाइकु, आदि विधाएं शामिल है।
उनके निधन के बाद उनके साहित्य को सामने लाने का काम उनके सुपुत्र आलोचक, कवि, व्यंग्यकार डॉ नीरज दइया ने किया। उनके निधन के बाद 10 पुस्तकें सामने आई। जिनमे हिंदी कविता संग्रह , पँचलडी संग्रह, व्यंग्य संग्रह, अनुवाद आदि की पुस्तकें भी शामिल है।
राजस्थानी के रांगेय राघव:
मायड़ भाषा के लाडले लेखक स्व सांवर दइया को राजस्थानी साहित्य का रांगेय राघव भी कहा जाता था। क्योंकि बहुत कम उम्र में रांगेय राघव की तरह उन्होंने विपुल व उपयोगी साहित्य रचा। उनको केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार भी मिला। स्व दइया ने राजस्थानी काव्य में जापानी हाइकु का सूत्रपात किया। पँचलडी कविता की शुरुआत भी इस समर्थ रचनाकार ने की। राजस्थानी में व्यंग्य को विधा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय स्व सांवर दइया को ही है। इस कारण उनको राजस्थानी का रांगेय राघव कहा जाता है तो गलत भी नहीं।
उनका प्रकाशित साहित्य:
सांवर दइया (1948-1992)
जीवनकाल में प्रकाशित पुस्तकें-
1. असवाड़ै-पसवाड़ै (1975) कहानी संग्रह
2. मनगत (1976) कविता संग्रह
3. काल अर आज रै बिच्चै (1977, 1982) कविता संग्रह
4. दर्द के दस्तावजे (1978) हिंदी ग़ज़ल संग्रह
5. आखर री औकात (1983) हाइकू संग्रह
6. धरती कद तांई घूमैली (1980) कहानी संग्रह
7. एक दुनिया म्हारी (1984) कहानी संग्रह
8. आखर री आंख सूं (1988, 1990) कविता संग्रह
9. एक ही जिल्द में (1987) कहानी संग्रह
10. एक फूल गुलाब का (1988) बाल साहित्य हिंदी
11. उकरास (1991) संपादित कहानी संग्रह
बाद में प्रकाशित पुस्तकें-
1. हुवै रंग हजार (1993) कविता संग्रह
2. उस दुनिया की सैर के बाद (1995) हिंदी कविता संग्रह
3. आ सदी मिजळी मरै (1996) पंचलड़ी संग्रह
4. इक्यावन व्यंग्य (1996) व्यंग्य संग्रह
5. पोथी जिसी पोथी (1996) संवाद कहानियों का संग्रह
6. स्टेच्यू (2000) अनिल जोशी के गुजराती निबंध संग्रह का राजस्थानी अनुवाद
7. एक दुनिया मेरी भी (2000, 2014) हिंदी कहानी संग्रह (अनुवाद कन्हैयालाल भाटी)
8. छोटा छोटा सुख दुख (2018) कहानी संग्रह (संपादक-बुलाकी शर्मा)
9. सांवर दइया की चयनित राजस्थानी कविताएं (2021) हिंदी अनुवाद- नीरज दइया
10. In the Art Gallery of my heart (2021) चयनित कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद- रजनी छाबड़ा
भारतीय साहित्य पुरोधा में दइया:
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की ' भारतीय साहित्य पुरोधा ' श्रृंखला में भी सांवर दइया को स्थान मिला है। अकादमी के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक डॉ अर्जुन देव चारण ने उन पर मोनोग्राफ तैयार कराने का बड़ा काम किया है। यह मोनोग्राफ लिखा जा रहा है। जिसका दायित्त्व डॉ चेतना आचार्य को दिया गया है।