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जन कवि बावरा के लिए कविता ग्लैमर नहीं शब्द साधना थी, आज भी जिनकी कविताएं लोगों की जुबान पर है

गरीब, मजलूम की पैरवी करती थी उनकी कविताएं
कवि मंचों पर भीड़ में अलग ही दिखते थे कवि बावरा
शब्द, विचार व व्यवहार में समानता, इन पर कभी समझौता नहीँ किया
 

अभिषेक पुरोहित
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RNE Special.


( रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE ने अपने पाठकों से वादा किया हुआ है कि वो शहर के उन साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों व पत्रकारों के कर्म से अपने पाठकों को रु ब रु करायेगी, जिनका बीकानेर की तहजीब व अदब को बड़ा योगदान है। इन लोगों की जन्मतिथि, जयंती व याद दिवस पर हम अपने पाठकों को यह सामग्री उपलब्ध करायेंगे। इसी कड़ी में आज जन कवि बुलाकी दास ' बावरा ' के बारे में पाठकों को जानकारी दे रहे है। आज उनकी जयंती है। उनको नमन। -- (संपादक )
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सच कि बावरा हूं लेकिन
मैं मद का हथियार नहीं
मेरी काव्य साधना
कोई सौदा या व्यापार नहीं
लक्ष्मी का जिसमें अर्जन हो
मैं उस वीणा का तार नहीं

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भाटों से तान सुना दे
मैं वैसा कविताकार नहीं
मेरा परिचय पौरुष सा
जो हार गया पर लाचार नहीं
मैं किसी सिकन्दर के आगे भी
झुकने को तैयार नहीं

 

जिस कवि का ये परिचय हो, तो सहज ही पता चल जाता है कि वो जन का प्रतिनिधित्त्व करता है। जन जन की बात करे और जन जन के मन में बसे, वही तो जन कवि माना जाता है। सहज, सौम्य, साधारण मगर बेबाकी से अपनी बात गम्भीरता से कहने वाले ये लाडले जन कवि थे बुलाकी दास ' बावरा '।

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कविता ग्लैमर नहीं, साधना थी:

जन कवि बुलाकी दास ' बावरा ' के लिए कविता ग्लैमर या तालियां पाने का जरिया नहीं थी, वे तो शब्द साधक थे। शब्द की साधना करते थे और कविता में जब लिखते तो शब्द एक संवेदना की सरिता से कागज पर उतरते थे। इस कारण ही सुनने व पढ़ने वाले तक उनके भाव सीधे पहुंचते थे। ये रचना उसका उदाहरण है -- 

 

सहूलियत को छोड़ के इधर तो आइये
आ के आइने से फ़िर नज़र मिलाइये
इश्तेहार से नहीं बंटती है रोशनी
आप अपने हाथ से दीया जलाइये
जीवन के हर रंग थे कविताओं में

 

बावरा साब की कविताओं का मूल स्वर प्रतिरोध का था। वे बेबाकी से व्यक्ति की पैरवी करते थे। हक़ की आवाज उठाते थे। मगर बावरा साब की कविताएं विविधता की थी। उन्होंने प्रेम, नेह, स्नेह पर भी उतनी ही शिद्दत से लिखा, जितना मजदूर की पैरवी में एक्टिविस्ट बन के लिखा। ये कविता उदाहरण है --
 

जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन
प्रेरित - ज्योति, नूतन साधन
भोर ह्रदय उन्माद छिपा -
मन ठुमक ठुमक डग धरता 

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उषा की लाली को लेकर
अंधकार को हरता
द्रुम - दल - पल्लव में स्पंदन
जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनंदन !!
हर कविता में एक दर्शन

 

बुलाकी दास ' बावरा ' की कविताएं कभी भी बिना दर्शन के सामने नहीं आती। जीवन के एक नए दर्शन को रखकर ये कविताएं कुछ नया सोचने का अवसर पाठक को देती है। प्रेम हो या नेह, एक अलग तरीके से इनको कवि बावरा ने व्याख्यायित किया है। उनकी एक कविता का अंश देखिये---
 

शुचिताई के बीज मंत्र
धारों होकर के सजीव
अक्षर को आहूत किये 
बिहरो आल्हादित होकर
उर्मिल छवि फिर दर्शाओ
मंथन की बेला है
अर्चन की बेला है

 

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प्यार की बावरा की अपनी सोच:
 

प्यार एक ऐसा विषय है जिस पर हर कवि लिखता है। हरेक का इसे लिखने का अपना एक अलग अंदाज होता है। बावरा साब ने भी प्यार पर लिखा, मगर बिल्कुल अलहदा। उनकी व्याख्या किसी भी रूप में जयशंकर प्रसाद से कम नहीं है। इस रचना में देखिये--
 

प्यार दिया करता है पीड़ा
पीड़ा प्यार दिया करती है
जब कोई साथ नहीं देता
तब कविता साथ दिया करती है

 

शब्द, विचार व व्यवहार में समानता:
 

कवि बावरा की एक बड़ी खासियत यह थी कि वे शब्द और उससे निष्पादित होने वाले विचार को ही जीवन के व्यवहार में काम में लेते थे। कम शब्दों में कहा जाए तो भवानी प्रसाद मिश्र की इस उक्ति को चरितार्थ करते थे -- जैसा दिख, वैसा लिख। बुलाकी दास बावरा मिश्र की ही परंपरा के कवि थे। जो कहना होता बेलाग कहते। लाग लपेट नहीं रखते थे।
 

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कविता के लिए समझौता नहीं किया:
 

कवि बुलाकी दास ' बावरा ' ने कभी भी कविता के लिए किसी विचार, सत्ता या लाभ से समझौता नहीं किया। एक फक्कड़ तबीयत रखते हुए स्वतंत्र रहकर रचनाएं लिखी और पढ़ी भी। इस कारण ही चापलूसी करने वाले कवि उनसे डरते थे। मंच के कवियों की भीड़ में वे अलग ही दिखते थे।
 

क्या कहते थे उनके लिए कवि:
 

कवि हरीश भादानी बुलाकी दास ' बावरा ' के लिए कहा करते थे कि उनकी कविता सदा ही एक वैचारिक धरातल पर अडिग खड़ी दिखती है। बावरा कभी भी इस धरातल पर डगमगाया नहीं। कवि मोहम्मद सदीक उनको मौलिक रचनाकार कहते थे। वे कहते थे कि बावरा निराला की तरह फक्कड़ तबीयत का कवि है। कवि डॉ अर्जुन देव चारण कहते थे कि बावरा जी हर कविता में छंद विधान का पूरा पालन होता था। भले ही कविता आधुनिक हो। डॉ नंदकिशोर आचार्य का मानना है कि बावरा जी के हिंदी और राजस्थानी साहित्य पर गहन शोध होना चाहिए। तब पता चलेगा कि उनके गीत में कितना नवाचार होता था।
 

जयंती पर जन कवि बुलाकी दास ' बावरा ' को नमन।