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जीवन से जुड़े साहित्य की रचना के कारण आज भी शाश्वत है प्रेमचंद

गौदान, ईदगाह जैसी रचनाएं धड़कती है भारतीय जनमानस में
समाज से सरोकारित साहित्य ही टिकता है, साबित किया मुंशी जी ने
उपन्यास सम्राट का खिताब यूं ही नहीं मिला था प्रेमचंद को
 

पूनम चौधरी

RNE Special.

( रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE ने अपने पाठकों से वादा किया है कि वो भारतीय हिंदी, राजस्थानी, उर्दू के उन रचनाकारों के सृजन से परिचित करायेगा, जिनका समाज व साहित्य को विशेष योगदान रहा है। हिंदी व उर्दू साहित्य में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का बड़ा अवदान है। आज भी प्रेमचंद के बिना हिंदी साहित्य अधूरा है। आज उनकी जयंती है। उनके रचनाकर्म पर पाठकों के लिए विशेष जानकारी दे रही है बीबीएस ( बीकानेर बॉयज स्कूल ) की हिंदी शिक्षिका, विदुषी पूनम चौधरी। उनका एक हिंदी काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाश्य है। रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस की तरफ से मुंशी प्रेमचंद को श्रद्धा सुमन। -- संपादक )
 

साहित्य की समाज को जरूरत क्यों है, उसकी क्या उपादेयता है, इस तरह के सवाल हर दौर में खड़े किए जाते रहे है। हर दौर के लेखकों ने इन सवालों के जवाब अपने रचनाकर्म से पुख्तगी से दिए भी है। कई रचनाकारों ने अपना समूचा साहित्य ही इस बात को प्रमाणित करने के लिए रचा कि समाज के लिए साहित्य की बड़ी जरूरत है। इस बात को सबसे ज्यादा पुख्तगी से प्रमाणित किया हिंदी व उर्दू के समर्थ रचनाकार मुंशी प्रेमचंद ने।

प्रेमचंद का पूरा साहित्य समाज से सरोकारित था। जिससे ये साबित हुआ कि समाज मे चेतना को विकसित करने का काम साहित्य ही कर सकता है। समाज का दर्पण होता है साहित्य। समाज की ईच्छा, आकांक्षा व विसंगति को स्वर देने का काम साहित्य करता है। इस कारण ही हिंदी साहित्य आज भी मुंशी प्रेमचंद के बिना अधूरा है। यदि प्रेमचंद को नहीं पढ़ा तो कोई भी न तो हिंदी साहित्य रच सकता है और न ही समझ सकता है।
 

प्रेमचंद की नजर में साहित्य:
 

मुंशी प्रेमचंद ने खुद स्पष्ट किया कि उनकी नजर में साहित्य क्या है। प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन में प्रेमचंद ने अध्यक्षीय संबोधन में इस बात को स्पष्ट किया था। वो बात आज भी हर रचनाकार के लिए नीति वाक्य है। उसके लक्ष्य है और उसके दायित्त्व भी है।
 

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य उसी रचना को कहेंगे , जिसमे कोई सच्चाई प्रकट की गई हो, जिसकी भाषा प्रौढ़, परिमार्जित और सुंदर हो, जिसमें दिल और दिमाग पर असर डालने का गुण हो। साहित्य में यह गुण पूर्ण रूप से उसी अवस्था मे उत्पन्न होता है, जब उसमें जीवन की सच्चाइयां और अनुभूतियां व्यक्त की गई हों। 
 

मुंशी प्रेमचंद का यह संबोधन हर साहित्यकार के लिए नजीर है। इसको ध्यान में रखकर जो रचता है वह समाज का चहेता रचनाकार होता है। 
 

प्रेमचंद का यथार्थवाद:
 

प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य में यथार्थवाद को स्थापित करने का काम किया। साहित्य को वे कल्पनाओं से स्थापित करने के पक्ष में नहीं थे, वे कल्पनाओं को केवल मनोरंजन का जरिया मानते थे।
समाज व व्यक्ति के सच को लिखना ही साहित्य का यथार्थवाद है, यही काम मुंशी प्रेमचंद ने किया। उनकी ईदगाह रचना इस बात का जिंदा प्रमाण है। समाज की विसंगति और सच के यथार्थ को उन्होंने इस रचना में लिखा। गौदान भी इस पैमाने पर खरी उतरने वाली रचना है।

गौदान, ईदगाह में धड़कता है दिल:
 

मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में ईदगाह व गौदान में, भारतीय जनमानस का दिल धड़कता है। ये समस्याएं आज भी हमारे समाज में विद्यमान है, इस कारण ही इन रचनाओं का महत्त्व आज भी बना हुआ है। इस कारण हो मुंशी प्रेमचंद की इन रचनाओं को शाश्वत रचनाएं कहा जाता है। 
 

मुंशी प्रेमचंद की ये थी रचनाएं:
 

अनाथ लड़की, अपनी करनी, अमृत, आख़िरी तोहफा, आख़िरी मंजिल, आत्म - संगीत, आत्माराम, ईदगाह, एक्ट्रेस, कप्तान साहब, कफ़न, ठाकुर का कुंआ, पूस की रात आदि।