SAHITYA AKADEMI : विद्रोह के कवि शंकरदान सामौर की 201वीं जयंती, साहित्य अकादेमी संगोष्ठी में गूँजे शंकरदान सामौर के विचार
विद्रोह के कवि है शंकरदान सामौर : मधु आचार्य
शंकरदान सामौर जुद्ध रा नीं, जीवण रा कवि है : डाॅ.राजपुरोहित
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क्रांतिकारी शंकरदान सामौर जन के मन की पीड़ को उजागर करने वाले जनकवि थे। जो कवि अपने समय की सत्ता की विसंगतियों का अपने काव्य में प्रतिकार करता है वो ही एक लोक कल्याणकारी कवि के रूप में प्रतिष्ठापित होता है।असल में शंकरदान सामौर इस लोक के विद्रोही कवि थे जिन्होंने पूरे देश में आजादी की अलख जगाई। यह विचार प्रतिष्ठित रचनाकार एवं साहित्य अकादेमी में राजस्थानी परामर्श मंडल के पूर्व संयोजन मधु आचार्य आशावादी ने साहित्य अकादेमी एवं लोक भारती संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ' कवि शंकरदान सामौर स्मृति समारोह ' विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में व्यक्त किए।
राष्ट्रीय संगोष्ठी संयोजक डाॅ.गीता सामौर ने बताया कि समापन समारोह के मुख्य अतिति डाॅ. भंवरसिंह सामौर ने कहा कि शंकरदान चारण काव्य परम्परा के अद्भुत कवि थे जिन्होंने अंग्रेजी सत्ता से मुक्ति एवं देश की आजादी के लिए आम जन के मन में आत्मविश्वास जागृत किया। इन्होंने शंकरदान सामौर के काव्य की वर्तमान में प्रासंगिकता और सार्थकता सिद्ध करते हुए उनके कृतित्व को उजागर किया। विशिष्ट अतिथि डाॅ.लक्ष्मीकांत व्यास कहा कि जन मानस में चेतना जाग्रत कर आजादी की अलख जगाने वाले शंकरदान सामौर आधुनिक राजस्थानी काव्य के प्रथम जनकवि है जिन्होंने अपना पूरा काव्य लोक कल्याण की भावना से रचा था।
समारोह में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभागाध्यक्ष एवं प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि शंकरदान सामौर ने राजस्थानी साहित्य को एक नया युगबोध प्रदान किया जो परम्परागत रूप से चलने वाली मानवता की जड़ता को तोड़कर समाज में सांस्कृतिक मान्यताओं के नये रूप स्थापित करते है । वे कह्यौ के शंकरदान सामौर असल में जुद्ध रा नीं, जीवण रा कवि है । इस सत्र में डाॅ. रेणुका व्यास नीलम एवं डाॅ.गौरीशंकर प्रजापत ने कवि शंकरदान सामौर की साहित्य साधना विषयक अपने आलोचनात्मक शोध आलेख प्रस्तुत किए। सत्र संचालन नगेंद्र नारायण किराड़ू ने किया।
द्वितीय सत्र डाॅ. मंजूला बारहठ ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कवि शंकरदान सामौर को एक महान क्रांतिकारी इतिहास पुरुष बताया। इस सत्र में प्रतिष्ठित रचनाकार राजेन्द्र जोशी एवं गोविंद गौरवसिंह ने कवि शंकरदान सामौर के जीवन के ऐतिहासिक पक्ष विषयक अपने आलोचनात्मक शोध आलेख प्रस्तुत किए। सत्र संचालन डाॅ.गीता सामौर ने किया। प्रारंभ में सभी अतिथियों का साफा पहनाकर, माल्यार्पण कर एवं स्मृति चिन्ह से सम्मान किया गया। समापन सत्र का संचालन राजस्थानी रचनाकार राजेन्द्र जोशी ने किया।
इस अवसर पर ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण, डाॅ.भंवरसिंह सामौर, डाॅ.लक्ष्मीकांत व्यास, राजेन्द्र जोशी, पृथ्वीराज रतनू, कमल रंगा, डाॅ.अजय जोशी, किशनदान बिठ्ठू, डाॅ. के.एल.बिश्नोई, बुलाकी शर्मा, एडवोकेट गंगाविशन विश्नोई, दिनेश शर्मा, जुगल किशोर पुरोहित, हरिश शर्मा, प्रियंका शर्मा, प्रेम नारायण व्यास, विमला व्यास, राजाराम स्वर्णकार, करणीदान, नगेन्द्र नारायण किराड़ू, हेमंत उज्ज्वल, प्रशान्त कुमार जैन, नंदकिशोर स्वामी, हेमेंद्रसिंह तेना सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, मातृभाषा साहित्य प्रेमी एवं शोध-छात्र मौजूद रहे।