वेलि क्रिसन रुक्मणी री" और "छन्द राव जैतसी रो" नामक दो डिंगल भाषा के काव्यों का सम्पादन का बेहतरीन काम डाॅ. तैस्सितोरी ने किया : जोशी
RNE Bikaner.
सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट बीकानेर के तत्वावधान में इटली मूल के राजस्थानी भाषा के विद्वान शोधार्थी डॉ. एल.पी.तैैस्सितोरी की 138 वीं जयंती के अवसर पर म्यूजियम परिसर स्थित एल.पी. तैैस्सितोरी की प्रतिमा स्थल पर पुष्पांजलि एवं उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर जयंती कार्यक्रम आयोजित किया गया ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डूंगर महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ.राजेन्द्र पुरोहित थे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने की एवं कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सखा संगम के अध्यक्ष एन.डी.रंगा, पूर्व प्राचार्य मेडिकल कॉलेज डाॅ.सीताराम गोठवाल एवं व्यंगकार-सम्पादक डाॅ.अजय जोशी थें ।कार्यक्रम संयोजक साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने बताया कि कार्यक्रम में सैकड़ों शोधार्थी एवं शहर के गणमान्य जनों ने अतिथियों के साथ डॉ.तैस्सितोरी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
इस अवसर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि हमें डॉ. तैस्सितोरी से प्रेरणा लेनी चाहिए जिस तरीके से उन्होंने राजस्थानी भाषा और यहां की संस्कृति के लिए उल्लेखनीय काम किया, उन्होंने कहा कि बीकानेर और राजस्थान की संस्कृति कि दुनिया भर में एक अलग पहचान है यहां की माटी में संस्कृति की झलक मिलती है, जोशी ने कहा की राजस्थानी भाषा के उन्नयन के लिए डॉ. तैस्सितोरी को सदैव याद किया जाएगा। उन्होंने कहा की अल्पायु में ही वह अपने देश से राजस्थान विशेषकर बीकानेर में आकर रहे, यहां रहकर उन्होंने अथक परिश्रम उत्साह व लगन के साथ यहां की भाषा को पढ़ना व लिखना सीखा। उन्होंने चारणी साहित्य का अवलोकन तथा अन्य अनेकानेक ग्रंथों का संपादन किया। उन्होंने कहा कि तैस्सितोरी ने "वेलि क्रिसन रुक्मणी री" और "छन्द राव जैतसी रो" नामक दो डिंगल भाषा के काव्यों को संपादित करके साहित्य जगत में प्रकाशित करने का श्रेय भी उन्हे ही जाता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाॅ. राजेन्द्र पुरोहित ने कहा की डॉ.तैस्सितोरी ने तुलसी कृत रामचरितमानस और बाल्मीकि रामायण का तुलनात्मक अध्ययन विषय पर फ्लोरेंस विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। तुलसी और बाल्मीकि पर मौलिक ढंग से शोध कार्य कर उन्होंने भारतीय शोधकर्ताओं को नई दशा- दिशा प्रदान की , पुरोहित ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी उदीने में रहते हुए ही राजस्थानी की कतिपय पांडुलिपियों का अध्ययन किया और वे राजस्थानी भाषा और साहित्य के प्रति जिज्ञासु बने रहे।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि डॉ. गोठवाल ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी का लक्ष्य राजस्थानी के अलभ्य और अमूल्य ग्रंथों की खोज और सर्वेक्षण रहा था। उन्होंने जोधपुर और बीकानेर के पुस्तकालयों को अपना आधार माना और उदेभाण चांपावत की ख्यात में वर्णित विभिन्न खांपों की सूची तैयार करके उन्होंने अपना कार्य प्रारंभ किया। डॉ व्यास ने कहा कि वह आचार्य सूरिजी को गुरुतुल्य मानते थे। डॉ. तैस्सितोरी जैन धर्म और साहित्य से विशेष रूप से प्रभावित थे। कथाकार अशफाक कादरी ने कहा कि उन्होंने अनेक राजस्थानी ग्रंथों का संपादन किया। नए सिरे से खोज की और इतिहासकारों को नई दृष्टि प्रदान की।
कार्यक्रम में बोलते हुए साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि तैस्सितोरी ने अनेक ऐसे कार्य किए जिन पर तत्कालीन विद्वानों का बहुत कम ध्यान गया था उन्होंने "जूनी राजस्थानी" लिखकर राजस्थानी व्याकरण की आधारशिला रखी ।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में एन.डी. रंगा ने कहा राजस्थानी संस्कृति विशेषकर लोक संस्कृति से डॉ. तैस्सितोरी का अगाध प्रेम था, उन्होंने कहा कि वे किसी राजस्थानी कन्या से विवाह भी करना चाहते थे ऐसी धारणा अनेक विद्वानों ने व्यक्त की है।
कार्यक्रम में अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए तथा प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने वालों में कवि रवि पुरोहित, पुस्तकालयाध्यक्ष विमल शर्मा , प्रोफेसर नरसिंह बिन्नाणी, जगदीश बारहठ, शायर अब्दुल शकूर सिसोदिया, पत्रकार रमेश महर्षि , रंगकर्मी बी.एल.नवीन, युवा शोधार्थी डाॅ.नमामी शंकरआचार्य , आशा शर्मा, संगीता झा, मुनीन्द्र अग्निहोत्री सहित अनेक लोगों ने प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की कार्यक्रम के अंत में महेन्द्र जोशी ने आभार प्रकट किया

