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"गांधी बूढ़ी बाई" मातंगिनी हाजरा: जिसने मौत को गले लगाया, पर तिरंगा झुकने नहीं दिया

वो वीरांगना जिसने प्राण त्यागे लेकिन तिरेंगे को नहीं झुकने दिया।

 

कहानी "गांधी बूढ़ी बाई" की

RNE Special.

हम बात कर रहे है बंगाल की स्वतंत्रता सेनानी "मातंगिनी हाजरा" की जिसने देश के लिए अपने प्राणों की आहूति देने में गुरेज नहीं किया। आज देश उन्हें "गांधी बूढ़ी बाई" के नाम से जानता है। हाजरा का जन्म 19 अक्टूबर 1869 में बंगाल के तामलुक के निकट होगला गांव में एक किसान परिवार में हुआ था । हाजरा का जीवन अत्यंत संघर्षमय रहा लेकिन सेवा के जज्बे ने उन्हें "गांधी बूढ़ी बाई" के उपनाम से सुशोभित किया।

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संघर्ष ने सींचा, जज्बे ने उठाया :

हाजरा का जीवन अत्यंत कठिनाइयों से भरा था। पहले ही उनका परिवार में आर्थिक तंगी की समस्या से जूझ रहा था फिर उनका विवाह मात्र 12 वर्ष की आयु में एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया गया नतीजतन वे मात्र 18 वर्ष की आयु में ही विधवा हो गई। खुद के बच्चे न होना और सौतेले बच्चों द्वारा घर से निकाल देने के कारण हाजरा का जीवन और दुष्कर हो गया । लेकिन हाजरा ने हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष को नई दिशा दे दी। 

गांधी से प्रेरणा, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता :

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साल 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर आंदोलन चरम पर था तो महात्मा गांधी के विचारों ने उन पर गहरी छाप छोड़ी। गांधी के कदमों की बाट जोहते हुए और उम्र को रुकावट की दीवार न मानते हुए वे 62 वर्ष की आयु इस संग्राम में कूद पड़ी। हाजरा ने असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और चौकीदार कर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई जिसके कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 

भारत छोड़ो आंदोलन में भाग, तिरंगा लपेटे हुए शहीद : 
 
अब हाजरा 73 वर्ष की हो गई लेकिन जज्बा की 18 वर्ष की आयु से कम न था। साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की चिंगारी पूरे देश में सुलग रही थी जिससे बंगाल का तामलुक भी अछूता न था मेदिनीपुर में इसका नेतृत्व हाजरा ने किया हाजरा ने अपने 6000 समर्थकों के साथ तामलुक पुलिस स्टेशन पर कब्जा कर लिया। आक्रोश को देखते हुए अंग्रेजों ने शहर के बाहर धारा 144 लगा दी लेकिन हाजरा नहीं रुकी और तिरंगा छाती से लगाए हुए अंग्रेजों की गोली का शिकार हो गई। हाजरा की देश के लिए कुर्बानी अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा एवं साहस के प्रतीक के रूप में है और गांधी के पद-चिह्नों पर चलने के कारण उन्हें "गांधी बूढ़ी बाई" के नाम से देश याद करता है।

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