Movie prime

बातें उर्दू अदब कीमिर्ज़ा ग़ालिब की बीकानेर यात्रा, धागा मिश्री की मिठास और शायरी का जादू​​​​​​​

 

बातें उर्दू अदब की

- इमरोज़ नदीम 

d

RNE SPECIAL.

( आज से हम साहित्य का ये नया कॉलम ' उर्दू अदब की बातें ' शुरु कर रहे है। इस कॉलम को लिख रहे है युवा रचनाकार इमरोज नदीम। इस कॉलम में हम उर्दू अदब के अनछुए पहलुओं को पाठकों के सामने लाने की कोशिश करेंगे। ये कॉलम केवल उर्दू ही नहीं अपितु पूरी अदबी दुनिया के लिए नया और जानकारी परक होगा। इस साप्ताहिक कॉलम पर अपनी राय रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस ( RNE ) को जरूर दें। अपनी राय व्हाट्सएप मैसेज कर 9672869385 पर दे सकते है। -- संपादक
 

 "मिर्ज़ा ग़ालिब और बीकानेर की धागा मिश्री"
 

बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह जी ने मिर्ज़ा ग़ालिब को बीकानेर आने की दावत दी थी , क्योंकि 1857 के गदर के बाद मुग़ल हुकूमत हिंदुस्तान से खत्म हो गई थी और बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र  पर दिल्ली के लाल किले में मुकद्दमा चलाया गया और स्वतंत्रता सेनानी आखिरी मुगल बादशाह और उर्दू के मशहूर शायर ज़फ़र को देश निकाला देकर  रंगून भेज दिया गया था ।  तब ज़फ़र ने अपनी बदनसीबी पर एक शेर लिखा था - 

“कितना है बदनसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए,
दो ग़ज़ ज़मीं भी न मिली कू-ए-यार में।”

और  आगाज़ हुआ ब्रिटिश हुकूमत का , तब राजस्थान की रियासतों ने क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अंग्रेजी हुकूमत से समझौता करने में ही अपनी खैर समझी , तब बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह जी के बुलावे पर मिर्ज़ा ग़ालिब बीकानेर तशरीफ लाए थे । जब मिर्ज़ा ग़ालिब बीकानेर आए तब  महाराजा बीकानेर ने उनसे इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के लिए एक शाही खत  फारसी में लिखने के लिए गुजारिश की , और नई हुकूमत के लिए  नए सिक्कों के डिजाइन महाराजा बीकानेर ने मिर्ज़ा ग़ालिब से तैयार करवाए । जिसमें एक तरफ लिखा था मल्लिका ए हिंद विक्टोरिया और दूसरे पहलू पर दर्ज  था बीकानेर के हुक्मरानों को मिले हुए माही मरातीब । 

वो भी क्या दौर रहा होगा जब मिर्ज़ा ग़ालिब बीकानेर आए होंगें , बीकानेर के शाही मेहमान मिर्ज़ा ग़ालिब शायद बीकानेर की गलियों और बाजारों में भी घूमे तो  होंगे ! 

r

बीकानेर जो आज अपने खान पान , भुजिया-पापड़ , रसगुल्लों के लिए मक़बूल हैं लेकिन उस वक़्त तो इन सब का ईज़ाद ही नहीं था तो आप भी सोच रहे होंगें कि जब बीकानेर की शान भुजिया ही नहीं था तब सवाल उठता है कि ऐसा क्या ही था उस वक्त जो बीकानेर के नाम से मकबूल हो ? क्योंकि भुजिया तो महाराजा डूंगर सिंह जी के दौरे हुकूमत (1872-1887) में ईजाद किए गए थे जिन्हें नाम दिया गया था डूंगर शाही भुजिया लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब बीकानेर तशरीफ लाए थे महाराजा सरदार सिंह जी के दौरे हुकूमत (1851-1872) में  1857 के गदर के कुछ अरसे बाद । 
 

तो जवाब है मिश्री ! जी हाँ मिश्री जिसे हम धागा मिश्री भी कहते हैं , उस वक़्त बीकानेर की धागा मिश्री ने अपनी मिठास से पूरे हिंदुस्तान और पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान कायम की थी । जिसकी तिजारत बीकानेर से पूरी दुनिया में होती थी । बीकानेर की धागा मिश्री के बारे में एक कहावत थी कि अगर असली हीरे  और धागा मिश्री को साथ  रखा जाए जो पहचान पाना मुश्किल था कि हीरा कौनसा है और मिश्री कौनसी ! जैसे आज भुजिया का ज़ायका सिर्फ बीकानेर का मशहूर है उसकी वजह है यहां की आबो हवा ।  ठीक वैसे मिश्री की मिठास के लिए भी यहां की आबो हवा मुफीद थी ।  जो आज भुजिया बाज़ार है वो कभी मिश्री बाज़ार हुआ करता था । 

मिर्ज़ा ग़ालिब जो एक कमाल के शायर थे , वो खतूत निगारी के माहिरे फ़न थे , लोगों को ग़ालिब के तहरीर  किए ख़तों का बेसब्री से इंतजार रहता था , ग़ालिब अपने ख़तों में मंजरनिगारी पेश किया करते थे , ख़त पढ़ने वाले को लगता मानो जैसे मिर्ज़ा उनके सामने ही बैठे बात कर रहे हों । 
 

इसी तरह उनका ख़त अपने दोस्त के नाम था देखे कि उन्होंने फ़क़त अपने खत के जरिए बीकानेर की धागा मिश्री की मिठास अपने दोस्त तक पहुंचा ही दी । 
 

मिर्ज़ा लिखते है
 

दो प्याज़े , पुलाव जो तुम कुछ खा रहे हो , मुझको खुदा की कसम अगर उसका कुछ ख्याल भी आता तो खुदा करे बीकानेर की मिश्री का कोई टुकड़ा तुमको मयस्सर ना आया हो । कभी ये तसव्वुर करता हूँ कि मीर चांद साहब इस मिश्री के टुकड़े चबा रहे होंगे तो यहां मैं रश्क से अपना कलेजा चाकने लगूं ।

संपर्क
ज़ैनब कॉटेज, बड़ी कर्बला मार्ग, चौखूंटी बीकानेर 334001
मोबाइल 6377013692