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उर्दू भाषा की अदबी समझ जिनको विरासत में मिली है, शोरगुल नहीं अपितु खामोशी से शेर कहना जिनका स्वभाव है

विचार के अभाव में लिखना बेमानी मानने वाला है ये शायर
हिंदी, राजस्थानी को भी वही सम्मान, जो उर्दू को देते है
प्रगतिशील सोच जिनको घुट्टी में पिलाया गया
 

अभिषेक पुरोहित
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RNE Network.
 

( रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE ने अपने पाठकों से वादा किया हुआ है कि वो बीकानेर को एक महत्ती योगदान देने वाले साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों व पत्रकारों के बारे में उनके जन्मदिन, जयंती या याद दिवस पर जानकारी उपलब्ध कराएगा। इनके बारे में जानना हम सबका कर्त्तव्य है। उसी कड़ी में आज शायर जाकिर अदीब के बारे में उनके जन्मदिन पर कुछ जानकारी पाठकों के लिए दे रहे है। जाकिर भाई को जन्मदिन पर हार्दिक बधाई। -- संपादक )

बीकानेर जैसा आलीजा शहर देश में शायद ही कोई दूसरा हो। ये वो शहर है जो छोटी काशी के रूप में पहचान रखता है, जिसकी वजह ये है कि यहां हिंदी, राजस्थानी और उर्दू भाषाओं की सरिता निर्बाध रूप से बहती है। भाषाओं के बीच टकराहट के बजाय सौहार्द्र, प्रेम व भाईचारा है। ये मिसाल देश में कहीं और मिलना संभव ही नहीं। इस शहर की जो ये पहचान बनी है उसमें यहां के तीनों भाषाओं के लेखकों का बड़ा योगदान है। जिन लेखकों ने अपने फन से शहर को अदबी रूप देने की कोशिश की है, उनमें से ही एक है जाकिर भाई उर्फ जाकिर अदीब।
 

उर्दू में लिखना, उसकी तालीम लेना व उसे लोगों को समझाना, यहां तक कि खुद को जिन्हें घुट्टी के रूप में उर्दू मिली। मगर वे उर्दू के ऐसे शायर है जिनके मन में समान रूप से हिंदी और राजस्थानी के लिए भी अगाध प्रेम है। इस तरह के शायर भी हर शहर में नहीं मिलते।
 

एक मजबूत  विरासत है साथ:
 

जाकिर अदीब को अदब विरासत में मिली है। परिवार की पृष्ठभूमि पूरी तरह से वैचारिक होने के कारण इन्होंने अदब को बचपन से ही सलीके के साथ अपनाया। अदब आज भी इनके लिए ग्लैमर या तालियां पाने का जरिया नहीं है। एक विचार की निष्पत्ति है। इसका अहसास उन्होंने अपने कविता संग्रह ' एहसास का दरिया ' से ही करा दिया। ये उनकी साहित्य जगत में एक मजबूत दस्तक थी।
 

वे खामोशी को शेर से तोड़ते है:
 

जाकिर अदीब का शोरगुल में विश्वास नहीं है। वे खामोशी को अपने शेर के मजबूत प्रहार से तोड़ते है। उनके शेर खामोश इंसान या समाज मे हलचल पैदा कर देते है, शायद यही किसी शायर का मूल काम है, होना भी चाहिए।
 

विचार ही रचना की अनिवार्यता:
 

शायर जाकिर अदीब मानते है कि विचार शून्यता से तो कोई सृजन सम्भव ही नहीं। विचार को देना ही शायर का मूल काम है। जाकिर इस बात का हिमायती है कि विचार हर रचना में होना ही चाहिए। यदि विचार नहीं है तो फिर वे शब्द पत्थर के समान है। वे खुद विचार से प्रगतिशील है और उनका मानना है कि हर रचना तभी सार्थक है जब वह इस सोच का प्रतिनिधित्व करे। उनकी बातें एक गम्भीर साहित्यिक सोच को अभिव्यक्त करती है।

महफिलों की जान है जाकिर:
 

अदबी महफिलों की जान है जाकिर अदीब। वे बेबाकी से बोलते है और बेलाग बोलते है। कई लोग तो मुंह ताकते रह जाते है जब वे सीधी बात मुंह पर बोलते है। गहरी राजनीतिक समझ होने के कारण वे राजनीतिक बहस में भी बेलाग बोलते है। 
 

एक अच्छे साथी भी है:
 

जाकिर अदीब एक अच्छे साथी है। वे हर रचनाकार को अपनी समझ के अनुसार कुछ सार्थक सीख देने की कोशिश करते रहते है। 

साहित्यकार मधु आचार्य ' आशावादी ' की नजर में जाकिर अदीब बीकानेरी अदब की पहचान है। वे सच्चे साहित्य प्रेमी है। रचनाकार नगेन्द्र किराड़ू मानते है कि जाकिर साब की उर्दू की समझ लाजवाब है। 
 

जन्मदिन पर जाकिर अदीब को अशेष शुभकामनाएं।