
बीकानेर ट्रैफिक को शायद मिला हुआ है श्राप, सुधरता ही नहीं, नफरी कम तो जनता भी नियमों से पूरी तरह अंजान
- नेताओं की दखल से ट्रैफिक पुलिस भी कड़ाई न करने को मजबूर
- कई गम्भीर चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल ही नहीं, है उनमें भी कई का उपयोग नहीं
रितेश जोशी
RNE Special.
बीकानेर की ट्रैफिक को जब कोई जयपुर, उदयपुर, जोधपुर का आदमी देखता है तो अचंभित हो जाता है। क्योंकि कई तो ट्रैफिक पुलिस के इशारे को ही नहीं देखते और अपने तय मार्ग से चलते जाते है। कई तो सिग्नल की भी परवाह नहीं करते। उनके शहर में तो ऐसा होना संभव नहीं। जुर्माना लगता है, चालान कटता है।
उदयपुर से आये एक मित्र ने अपने बीकानेरी मित्र से पूछा:
यहां ट्रैफिक इतना बेतरतीब कैसे है। नियमों की लोग पालना नहीं करते और ट्रैफिक वाले कड़ाई नहीं बरतते। हमारे यहां तो इस तरह नहीं चलता।
भाई, ये बीकानेर है। इस शहर के ट्रैफिक को श्राप लगा हुआ है, कभी न सुधरने का। इतना कहकर उसने दो किस्से उस मित्र को सुनाये।
पहला किस्सा:
बात उस समय की है जब लक्ष्मण मीणा जी पुलिस के बड़े अधिकारी थे। उन्होंने आनन्द निकेतन में व्यापारियों, नेताओं, बुद्धिजीवियों, प्रबुद्ध नागरिकों की बैठक ट्रैफिक समस्या पर बुलाई। कोई उत्तर दिशा की तरफ बोलते हुए जा रहा था तो कोई दक्षिण की तरफ। हारकर लक्ष्मण मीणा जी खड़े हुए और कहा – बीकानेर की ट्रैफिक का तो भगवान ही रखवाला है। वो चाहेगा तो यहां का ट्रैफिक सुधरना मुश्किल है। बैठक बेनतीजा खत्म हो गई।
दूसरा उदाहरण:
बात कोटगेट के बाहर की है। गुमटी पर ट्रैफिक का सिपाही खड़ा था और सिटी बजा हाथ के इशारों से ट्रैफिक नियंत्रित कर रहा था। एक दिशा में हाथ दिया हुआ था ताकि उधर के लोग रुकें।
शहर के एक नामचीन महाराज स्कूटर पर आये और उस सिपाही के हाथ के नीचे से निकल लिए। सिपाही ने रोक कर कहा “मैने रुकने का ईशारा किया हुआ था, आप रुके क्यों नही।” महाराज बोले “सड़क जनता के पैसों की बनी हुई है, किसी के बाप की नहीं। इतना कहकर वे स्कूटर स्टार्ट कर निकल लिये।”
विडंबना यही तो है:
इन दो उदाहरणों से स्पष्ट है कि जनता को जहां ट्रैफिक नियम पता नहीं है वहीं इस काम मे भी राजनीतिक दखल है। सिपाही चालान के लिए गलती पर रोकता है तो विधायक से लेकर मंत्री तक का फोन आ जाता है, उसे छोड़ना पड़ता है। फिर एक सिपाही कैसे ड्यूटी सख्ती से करे। राजनेताओं को भी ऐसी सिफारिश करते समय सोचना चाहिए।
अब ट्रैफिक पुलिस की कमियां:
शहर में बहुत कम स्थानों पर ट्रैफिक सिग्नल लगे हुए है। जो लगे हुए है उनकी भी पूरी सार संभाल नहीं है। कई तो बंद रहते है फिर भी कोई धतं नहीं देता।
इसके अलावा कुछ खतरनाक चौराहे ऐसे है जहां ट्रैफिक सिग्नल है ही नहीं। वहां हद से ज्यादा छुटपुट दुर्घटनाएं होती है। कई बार बड़ी भी होती है। जैसे अंबेडकर भवन का चौराहा, भीमसेन चौधरी चौराहा, पीबीएम चौराहा , जस्सूसर गेट तिराहा आदि। जहां ट्रैफिक सिग्नल नहीं और 24 घन्टे सिपाही की ड्यूटी भी नहीं। यदि आंकड़े उठाकर देखें तो ट्रैफिक पुलिस को जितनी नफरी चाहिए, सरकार ने उतनी दे भी नहीं रखी है।
अपेक्षा पुलिस महकमे से ये है:
- जहां ट्रैफिक सिग्नल की जरूरत है, वहां लगाए जाएं।
- खराब होते ही उनको दुरस्त किया जाये।
- सरकार से मांग कर नफरी बढ़ाई जाये।
- चालान, जुर्माना जरूरी है वहां किसी की सिफारिश न सुनी जाये। सख्ती बरती जाये।
- जनता को जागरूक किया जाए, ट्रैफिक नियम स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से बताए जाएं।