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चिंता : नई जानकारियों, शोध से शिक्षक अनभिज्ञ रहे तो करोड़ों बच्चे रह जाएंगे अनजान

शिक्षा की महत्वपूर्ण आवश्यकता : सेवारत्त प्रशिक्षण

जिस तरह मेडिकल एजुकेशन में डॉक्टर्स, चिकित्सा शिक्षकों के लिए CME होती है जिससे वे चिकित्सा क्षेत्र में हो रहे रिसर्च, तकनीकी बदलावों को जानकार नए बन रहे डॉक्टर्स  को सिखा सके वैसे ही वैसे ही स्कूली शिक्षकों को भी लगातार अपडेट करने की जरूरत है। क्या हमारी व्यवस्था यह कर पा रही है? कर रही है तो क्या और कितना?  क्या इतना पर्याप्त है? ऐसे ही सवालों पर केंद्रित है शिक्षाविद डॉक्टर प्रमोद चमोली का यह आलेख। अपनी राय हमारे व्हाट्सएप नंबर 7891232938 पर दे सकते हैं। 


क्या है सेवारत प्रशिक्षणः 

शिक्षक नियुक्ति से पूर्व बी0एड0 अथवा डीएलएड का प्रशिक्षण प्राप्त होते हैं। लेकिन शिक्षा क्षे़त्र में आने के बाद पेडागॉजी, नवीनतम खोजों, परिवर्तनों की जानकारी और उनके कक्षा शिक्षण में उपयोग हेतु समस्त शिक्षकों-शिक्षाधिकारियों को निरन्तर सेवारत प्रशिक्षण की आवश्यकता रहती है। सेवारत्त प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सेवारत्त शिक्षकों/अधिकारियों को बदलते समय और परिस्थितियों के लिए आवश्यक मानकों के अनुरूप कार्य करने हेतु आवश्यक ज्ञान या दृष्टिकोण दिया जाकर प्रशिक्षित किया जाता है।

इनकी आवश्यकता क्यों है?

प्रशिक्षण से सेवारत शिक्षक/शिक्षाधिकारी अपनी सेवाओं में आवश्यक मानकों के अनुरूप अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर प्रभावी सेवा प्रदान कर सकें। बदली परिस्थितियों और मानकों के प्रति उनकी समस्याओं को प्रशिक्षण के माध्यम से दूर किया जाकर उन्हें नई युक्तियों और तकनीकों से लैस कर कार्यस्थल पर बेहतर प्रदर्शन के लिए तैयार किया जा सके। शिक्षा के क्षेत्र में निरन्तर होने वाले परिवर्तनों एवं नवाचारों से भिज्ञता करवाने एवं शिक्षा में इन परिवर्तनों को कक्षा कक्ष तक पहुंचाने एवं उनके प्रभावी प्रबोधन हेतु सेवारत शिक्षकों/अधिकारियों के प्रशिक्षण की आवष्यकता से नकारा नहीं जा सकता है।

शिक्षा में सेवारत प्रशिक्षणों का महत्व क्या है?

शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, शिक्षा की वर्तमान आकांक्षाओं हेतु शैक्षिक सुधारों को लागू करने में शिक्षक महत्वपूर्ण हैं। कोई भी सुधार या नई नीति को कक्षा-कक्ष तक ले जाने के कार्य अंतिम रूप से शिक्षकों के माध्यम से ही संभव होता है। इसमें भी कोई दोराय नहीं हो सकती कि स्कूली पाठ्यक्रम की सफलता इसके प्रभावी कार्यान्वयन कार्य अंतिम रूप से शिक्षकों के हाथों में होता है। हालांकि शिक्षकों को पाठ्यक्रम इत्यादि के बारे में स्वयं जागरूक होना चाहिए लेकिन बदली परिस्थितियों में शिक्षण शास्त्र की अवधारणा परिवर्तनों की सही व्याख्या करने और संशोधित पाठ्यक्रम को उसकी आवश्यकताओं, लक्ष्यों और उद्देश्यों के अनुसार लागू करने के लिए शिक्षकों के कौशल में सुधार और गुणात्मक वृद्धि हेतु सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण एक कारगर उपाय होता है।

शिक्षकों की जिम्मेवारी यदि कक्षा कक्ष तक उक्त समस्त परिवर्तनों को पहुँचाने की है। लेकिन प्रशिक्षण उपरांत उसने कक्षा-कक्ष में अपने कौशल में क्या परिवर्तन किये इसके प्रबोधन हेतु संस्था प्रधानों के प्रशिक्षण एवं किसी विद्यालय में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, शिक्षा की वर्तमान आकांक्षाओं हेतु शैक्षिक सुधारों कितनी शिद्दत से लागू किये जा रहें हैं इसका प्रबोधन, फोलोअप एवं उन्हें संबंलन प्रदान किये जाने हेतु जिला एवं राज्य में कार्यरत शिक्षा अधिकारियों को सेवारत प्रशिक्षण दिया जाना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण की शिक्षा सुधार करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

यह सही है कि किसी भी अन्य पेशे की तरह, शिक्षकों को अपने क्षेत्र की नवीनतम अवधारणाओं, विचारों और शोध से अवगत रहना चाहिए। लेकिन यह भी उतना ही सही है कि‘‘शिक्षक वही है जो अजीवन एक शिक्षार्थी रहे।’’ शिक्षकों के लिए कथित उक्त उक्ति को चरितार्थ करने, शिक्षकों में प्रोफेशनलिज्म को विकसित करने में एवं सीखने और सिखाने के क्षेत्र में कई बदलावों को अंतिम छोर तक पहुँचाने में सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

उक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा को जीवन्त और गतिशील बनाए रखने के लिए सेवारत शिक्षक/शिक्षा अधिकारियों को निरन्तर प्रशिक्षित किया जाना बेहद जरूरी है। इसके बावजूद भी सेवारत शिक्षकों, शारीरिकि शिक्षकों, प्रधानाचार्यों व शिक्षा अधिकारियों यथा- जिला शिक्षा अधिकारी, उपनिदेशक, संयुक्त निदेशक व अतिरिक्त निदेशक स्तर के अधिकारियों हेतु प्रशिक्षण हेतु कोई व्यवस्थित कार्यक्रमों की उपलब्धता न्यून ही है।

सेवारत प्रशिक्षण हेतु क्या थी व्यवस्थाएँ ?

प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्तर के शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु 1986 की शिक्षा नीति के तहत स्थापित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों की व्यवस्था मौजूद होने के बाद भी उसमें होने वाले सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण के प्रति गम्भीरता का अभाव है। इसके अतिरिक्त राज्य में माध्यमिक शिक्षा के शिक्षकों के सेवारत शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु उक्त नीति के अनुसार ही दो राजकीय उच्च अध्ययन शिक्षा संस्थान विकसित किये गये थे। इसके साथ ही राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद व माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर में सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण संबंधी कार्य हुआ करते थे।

ट्रेनिंग सेंटर हैं लेकिन उपयोग इतना : 

राज्य में सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण की स्थिति कुछ अच्छी नहीं कही जा सकती है। हालांकि सेवारत प्रशिक्षण और प्रत्येक जिले की अपेक्स शैक्षिक संस्था के उद्देश्य से स्थापित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (डाइट) में एससीईआरटी द्वारा निर्धारित कैलेण्डर के अनुसार कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले शिक्षकों को शैक्षिक तकनीकी, मूल्यांकन प्रविधि, शिक्षण शास्त्र, कला व कार्यनुभव शिक्षा एवं कुछ विषयों के प्रशिक्षण उपलब्ध बजट प्रावधान के अनुसार देने की व्यवस्था है।

राज्य में संचालित दो संस्थान अजमेर व बीकानेर में अभी मात्र बीएड और एमएड कक्षाओं का संचालन मात्र किया जा रहा है। विगत कई वर्षों से इनमें सेवारत प्रशिक्षण का कोई कैलेण्डर निर्धारित नहीं है। सीमेट और एसआईआरटी में उनके कैलेण्डर के अनुसार शोध, प्रशिक्षण व कार्यशालाएं आयोजित की जाती है।

वर्तमान में शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु तैयार किये गए उक्त समस्त संस्थानों को छोड़कर मास स्तर पर समग्र शिक्षा अभियान के माध्यम से राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद द्वारा आयोजित किये जाते है। राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद की वेबसाईट पर गुणवत्ता एवं प्रशिक्षण प्रकोष्ठ द्वारा संचालित कार्यक्रमों एवं गतिविधियों के उपलब्ध संक्षिप्त विवरण के अनुसार ‘‘ प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षकों का शैक्षणिक पैडागॉजी एवं विषय आधारित प्रशिक्षण। राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद उदयपुर शिक्षक प्रशिक्षण की नोडल एजेंसी है। संस्था प्रधान / प्रधानाचार्य, सीडीईओ, डीईओ, एडीपीसी, डाइट प्राचार्य एवं सीबीईओ हेतु विद्यालय नेतृत्व प्रशिक्षण (स्कूल लीडरशिप प्रशिक्षण)। सीमेट, जयपुर के नेतृत्व में उक्त प्रशिक्षणों का आयोजन नीपा नई दिल्ली द्वारा विकसित मॉड्यूल पर आधारित होता है।’’

पर्याप्त नहीं है व्यवस्थाएंः

दोनो राजकीय आईएएसई में सेवारत प्रशिक्षण न के बराबर है। इसी प्रकार डाईट के कैलेण्डर में होने वाले शिक्षक प्रशिक्षण भी जिले में शिक्षकों की संख्या के अनुपात में पर्याप्त नहीं होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ कार्यशालाएं व बैठकों के आयोजन की व्यवस्था भी डाईट हेतु निर्धारित कैलण्डर में की जाती है। जिले के समस्त प्रशासनिक व अकादमिक संस्थाओं में समन्वय में अभाव के कारण डाईट के इन अलग-अलग प्रशिक्षणों में एक ही प्रकार के शिक्षक भी दिखाई देते हैं। इसके अलावा डाईट के पास ऐसी कोई व्यवस्था, योजना या डाटबेस इन डाईटों के पास उपलब्ध नहीं है कि इनमें दी जाने वाले प्रशिक्षण की एक शिक्षक के लिए आवृत्ति कितनी हो। साथ ही जिला स्तर कक्षा 1 से 8 पढ़ाने वाले शिक्षकों में कितने शिक्षक जो ये प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकें हैं। जिन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया है। वह प्रशिक्षण कक्षा-कक्षा तक पहुँच बना भी पाया है अथवा नहीं।

राजस्थान स्कूल शिक्षा द्वारा आयोजित प्रशिक्षणों प्राथमिक कक्षाओं को पढ़ाने वाले प्रत्येक शिक्षक को अभी एफएलएन के प्रशिक्षण प्रदान किये गये थे। इसके अतिरिक्त विगत वर्षों में ऑनलाईन दीक्षा एप्प के माध्यम से भी प्रशिक्षण दिये गये हैं।

प्रशिक्षण का क्लास में कितना असर : 

इन प्रशिक्षणों की प्रभावशीलता कितनी रही क्या इनका विद्यालय स्तर पर असर हुआ इस बाबत कोई जानकारी नहीं मिलती है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत अकादमिक कार्यों हेतु प्रत्येक जिले में प्रोग्राम ऑफिसर व ब्लॉक में रिर्सोस परसन की नियुक्ति की जाती है। जिनका कार्य विद्यालयों में तत्स्थल पहुँच कर शिक्षकों को संबंलन प्रदान करना है। ताकि समग्र शिक्षा अभियान द्वारा दिये गये प्रशिक्षणों उपरांत उनका कक्षा-शिक्षण में व्यवहारिक उपयोग होने सुनिश्चितता की जा सके। लेकिन इन समस्त पदों पर कार्यरत शिक्षकों का अधिकांश समय बजट आवंटन व बजट खपत उपरांत उसकी यूसी इत्यादि लेने संबंधी प्रशासनिक कार्यें में समय अधिक खप जाता है। अतः प्रशिक्षण उपरांत संबंलन एवं प्रशिक्षण उपरांत उस प्रशिक्षण की कक्षा-कक्ष तक पहुँच के बारें में प्रबोधन के अभाव में बहुधा इस प्रकार दिये गये प्रशिक्षणों की पहुँच कक्षा-कक्ष तक नहीं हो पाती। ऐसे में इन प्रशिक्षणों का लाभ विद्यार्थियों को नहीं मिल पाता है।

नवनियुक्त-पदोन्नत को नहीं मिलता प्रशिक्षण : 

विद्यालय के प्रधानाचार्य से पदौन्नत हो जिला शिक्षा अधिकारी पद प्राप्त कर जिले व ब्लॉकों में शिक्षा प्रशासन जैसे जटिल व विस्तृत कार्य करने वाले अधिकारियों के लिए सीमेट के लीडरशिप प्रशिक्षण के अतिरिक्त कोई प्रशिक्षण व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। लीडरशिप प्रशिक्षण की नियमितता और आवृत्ति में निरन्तरता कम ही पाई जाती है।

इसके साथ ही नवनियुक्त शिक्षक, शारीरिक शिक्षक, वरिष्ठ अध्यापक और व्याख्याता को विद्यालय की कक्षाओं में जाने से पूर्व यह राज्य की शिक्षा में लागू पेडागॉजी व उनके विषयों को पढ़ाने की तकनीक का ज्ञान करवाने हेतु नियुक्ति के तत्काल बाद विद्यालय में जाने से पूर्व प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था हमारे पास उपलब्ध नहीं है।

नियमित प्रशिक्षण का अभाव : 

डाईट द्वारा दिये जाने वाले प्रशिक्षणों में डाटाबेस के अभाव एवं माध्यमिक कक्षाओं को पढ़ाने वाले शिक्षकों एवं व्याख्यातों हेतु नियमित प्रशिक्षण की माकूल व्यवस्था नहीं होने के कारण शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले नवाचारों और परिवर्तनों से दूर-दराज पढ़ाने वाले शिक्षकों को इनकी अवगति प्राप्त नहीं होती परिणाम शिक्षा में होने वाले सुधार दृष्टिगत नहीं होते हैं। प्रधानाचार्य, व्याख्याता , वरिष्ठ अध्यापकों व शारीरिक शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु कोई ठोस कार्ययोजना के साथ नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं होने के कारण ये वर्ग अपने क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों से अनभिज्ञ होने के कारण बदलती परिस्थितियों के अनुरूप अपना कार्य नहीं कर पाते।

क्या उपाय किये जा सकते हैं:  उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि राज्य में सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण के ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। इस हेतु निम्नांकित उपाय किये जा सकते हैं।

  • राज्य में ओटीएस की तर्ज पर शिक्षा अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी की स्थापना की जा सकती है अथवा सीमेट को इस स्वरूप में लाया जा सकता है।
  • राज्य में शासन द्वारा संचालित दोनो आईएएसई में ढांचागत, व्यवस्थागत और आवश्यक वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता की जाकर नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था पुनः संचालित की जा सकती है।
  • डाईटों, आईएएसई,सीमेट और एससीईआरटी की व्यवस्थाओं में सुधार किया जाए। बहुधा इन संस्थानों में कार्यरत फैकल्टी केवल घर के नजदीक रहने अथवा फील्ड में किये जाने वाले कार्यों के प्रति अरुचि के चलते इन संस्थानों में कार्य करना चाहती हैं। यानी उनका शिक्षक शिक्षा में रुचि का कोई मंतव्य नहीं होता है।ं इसलिए इन संस्थानों में फैकल्टी का चयन चयन एनसीआरटी, नई दिल्ली के अकादमिक ऑफिसरों की अध्यक्षता में गठित स्वतंत्र बोर्ड के माध्यम से की जाए।
  • डाईटों, आईएएससी, सीमेट और एससीईआरटी जैसे संस्थानों में माकूल वित्तीय व अवसरंचनात्मक व्यवस्थाएं की जाकर प्रशिक्षण हेतु स्तरीय सुविधाओं से लैस किया जा सकता है। जिससे प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों को अच्छा महसूस हो सके।
  • समस्त प्रकार के प्रशिक्षण इन संस्थानों में ही आयोजित किये जाएं। समग्र शिक्षा अभियान के माध्यम से आगामी सत्र में होने वाले प्रशिक्षणों का आवंटन पूर्व में ही इन संस्थानों को कर दिया जाए ताकि सत्रारम्भ से पूर्व समस्त प्रशिक्षण हो जाएँ।
  • प्रधानाचार्य से जिला शिक्षा अधिकारी प्राप्त करने वाले अधिकारियों को डीपीसी से पूर्व तीन माह का प्रशिक्षण निर्धारित किया जाए। इस प्रशिक्षण में सफलता उपरांत ही उन्हें डीपीसी में सम्मिलित किया जाए साथ ही इस प्रशिक्षण के दौरान उनकी क्षमताओं का आकलन कर उन्हें प्रशासनिक अथवा अकादमिक कार्यों हेतु नियुक्ति की जा सकती है।
  • नवनियुक्त शिक्षक, शारीरिक शिक्षक, वरिष्ठ अध्यापक और व्याख्याता को विद्यालय की कक्षाओं में जाने से पूर्व यह राज्य की शिक्षा में लागू पेडागॉजी व उनके विषयों को पढ़ाने की तकनीक का ज्ञान करवाने हेतु नियुक्ति के तत्काल बाद विद्यालय में जाने से पूर्व प्रशिक्षण दिये जाने की व्यवस्था की जा सकती है।
  • समस्त संस्था प्रधानों, उपप्रधानाचार्यों, व्याख्याताओं, वरिष्ठ अध्यापकों, शिक्षकों, शारीरिक शिक्षकों, कम्प्युटर अनुदेषकों, प्रबोधकों आदि का प्रशिक्षण डाटा बेस तैयार किया जा सकता हैं एवं उक्त सभी को डाईटों, आईएएसस, सीमेट और एससीईआरटी के माध्यम से विषय वस्तु और पेडागॉजी संबंधी प्रशिक्षण दो या तीन वर्ष की आवृत्ति में आवश्यक रूप से दिया जाए।