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अदब में नवाचार बीकानेर की आदत

 
RNE Special अदब के क्षेत्र में बीकानेर सदैव नवाचार के कारण देश में अपनी खास पहचान रखता है। यहां सर्वाधिक पुस्तकें प्रकाशित व विमोचित तो होती ही है, साथ ही साहित्य के आयोजनों की भी भरमार रहती है। ये बात भी सही है कि कई किताबों व आयोजनों का स्तर अच्छा नहीं होता। मगर फिर भी सारवान, छपने के शौकीन, दिखने वाले अदब के लोग आयोजनों की झड़ी लगाये रहते हैं। ये भी बड़ा सच है कि कुछ इतने गरिमामय आयोजन करते हैं जिनकी कल्पना दिल्ली, भोपाल, लखनऊ जैसे बड़े शहरों के भी अदबी लोग नहीं कर पाते। नवाचार तो यहां की मिट्टी में घुला मिला है। अदब में नवाचार ही बीकानेर की पहचान है। अदब में नवाचार बीकानेर की आदतबीकानेर वो शहर है जहां रंगकर्म भी उच्च स्तर का है। खास बात ये है कि रंगकर्मियों का साहित्य से भी बहुत गहरा जुड़ाव है। ये विशेषता भी देश के कम ही शहरों में देखने को मिलती है। इस बार फिर रंगकर्मियों ने साहित्य के लिए नवाचार किया है। ऊर्जा आर्ट सोसायटी के अशोक जोशी की पहल से ये नवाचार हो रहा है। अशोक जोशी ने बताया कि संस्था हर सप्ताह रविवार को शाम 5 बजे से 6.30 बजे तक कहानी वाचन का आयोजन करेगी। इसके लिए कहानी लेखकों को आमंत्रित किया गया है। वे दर्शकों के सामने अपनी कहानी का वाचन करेंगे। अदब में नवाचार बीकानेर की आदत अशोक जोशी ने बताया कि साहित्य के प्रति लोगों की रुचि बढ़े, इस उद्देश्य से ये आयोजन किया जा रहा है। कहानी की समीक्षा या आलोचना का प्रावधान इस आयोजन में नहीं होगा। हां, उपस्थित श्रोता या दर्शक प्रतिक्रिया देना चाहे तो इसके लिए प्रश्नोत्तर सत्र रखा जायेगा। ताकि लेखक से वे चर्चा कर सकें। ये लेखक की ईच्छा पर निर्भर रहेगा कि वो उन प्रश्नों का उत्तर दे या न दे। सच में रंगकर्मियों द्वारा ये साहित्य के लिए बड़ा कार्य है। जिसके लिए ऊर्जा थियेटर सोसायटी व अशोक जोशी बधाई के पात्र हैं। अदब में नवाचार बीकानेर की आदत अदब में नवाचार बीकानेर की आदत असगर वजाहत, नरेश जी का इस्तीफा: अदब में नवाचार बीकानेर की आदतबीकानेर हमेशा से ही प्रगतिशील विचारों के अदब के कारण पहचाना जाता रहा है। तभी तो इस शहर ने बड़े कवि, शायर व लेखक दिए। वैसे साहित्य सदा प्रगतिशील ही होता है। उसे हमेशा पीड़ित, शोषित व सच के साथ ही खड़ा होना होता है। अदब में नवाचार बीकानेर की आदतजनवादी लेखक संघ के संस्थापकों में से एक और राष्ट्रीय अध्यक्ष असगर वजाहत ने अचानक से अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उसे फेसबुक पर पोस्ट किया तो पूरे साहित्य जगत में हलचल हो गई। असगर वजाहत देश के उन चुनिंदा लेखकों में से है, जिनको खूब पढ़ा जाता है। उनके नाटक देश भर में खेले जाते हैं। उनके इस्तीफे पर एक लंबी बहस छिड़ गई। क्योंकि उन्होंने इस्तीफे की वजह नहीं बताई थी। लोगों ने उनकी पोस्ट पर इसकी वजह भी पूछी पर वे कुछ नहीं बोले। बीकानेर में भी इस इस्तीफे को लेकर काफी चर्चा चली। क्योंकि जनवादी लेखक संघ के संस्थापकों में बीकानेर के जन कवि स्व हरीश भादानी भी शामिल थे। वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में उनका इस्तीफा कई सवाल व आशंकाए भी खड़ी कर गया। इस कारण अदब की दुनिया में खासी हलचल थी। अदब में नवाचार बीकानेर की आदत बाद में सुधीर सिंह की पोस्ट से समझ आया कि ' गांधी - गोडसे : एक युद्ध ' फिल्म से ये प्रसंग जुड़ा है। इस पर लेखक संघ ने एक प्रस्ताव पारित किया था। सुधीर सिंह की पोस्ट काफी कुछ स्पष्ट करती है। मगर अदब की दुनिया अब इस मुद्दे पर बहस में जुटी है। सब चाहते यही है कि इस प्रकरण का पटाक्षेप हो। क्योंकि वजाहत व जनवादी लेखक संघ का अदब को बड़ा योगदान है। मगर संतोष इस बात का है कि अदबी लोग सजग हैं और चिंतन की धारा को प्रवाहित किये हुए हैं। अदब में नवाचार बीकानेर की आदत लेखक संघ निष्क्रिय क्यों? असगर वजाहत की बहस चल ही रही थी कि कवि नरेश सक्सेना की भी फेसबुक पर एक पोस्ट आई जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की जानकारी दी है। उन्होंने भी इस्तीफे का कोई कारण नहीं बताया है। इस पर भी बहस शुरू है। अदब में नवाचार बीकानेर की आदत राष्ट्र से लेकर बीकानेर तक पहले प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ सक्रिय थे। मगर एक दशक से इनकी चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। ये लेखक संघ गतिविधियां करते थे, हर अदबी बात पर बोलते थे। मगर अब तो इनके आयोजन की कोई खबर ही नहीं आती। संगठन चूंकि एक विचार से जुड़े हैं तो पदाधिकारी भी बने हुए हैं, कोई राज्य स्तर का तो कोई जिला स्तर का। मगर वे पद पर तो है, आयोजन नहीं करते। हां, इन दिनों अखिल भारतीय साहित्य परिषद जरूर सक्रिय है। कुछ न कुछ बात तो है। अदब में नवाचार बीकानेर की आदत अब सोशल मीडिया पर ही सक्रिय लेखक पहले चर्चाओं में, आयोजनों में, गोष्ठियों में, रोज की संगत में सर्वाधिक सक्रिय रहा करते थे। मगर अब तो ये सब आयोजन छपास रोग से ग्रसित लोग ही करते नजर आते हैं। ये छपास रोगी इतना छपते हैं कि लोग इनको लेकर कई उपनाम दे चुके। सामने कुछ कहते हैं और पीठ पीछे कुछ और। जो दमदार लेखक हैं वे किताब लिख लेते हैं या फिर सोशल मीडिया पर ही सक्रिय रह अपनी इतिश्री कर लेते हैं। क्या इसे हम अदब का संक्रमण काल नहीं कहेंगे ????

मधु आचार्य ' आशावादी ' के बारे में  अदब में नवाचार बीकानेर की आदत
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।