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अयोध्या: 1991 में पहली बार भाजपा के विनय कटियार फैजाबाद से जीते, तीन बार एमपी रहे, पिछले दो चुनाव से भाजपा के पास थी सीट

  • हैरानी: पांच विधानसभा क्षेत्रों वाली इस सीट में चार विधायक भाजपा के हैं
  • अयोध्या और इसके आस-पास की पांच सीटों पर हारी भाजपा

आरएनई, नेटवर्क।

भव्य राम मंदिर निर्माण। अति भव्य प्राण-प्रतिष्ठा। देशभर में लाइव प्रसारण। प्रधानमंत्री मोदी के साथ ही देश की तमाम हस्तियों की मौजूदगी। प्राण-प्रतिष्ठा पूजा में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी। इससे भी बड़ी बात यह कि देशभर से स्पेशल ट्रेनें चलाकर लाखों लोगों को राम मंदिर दर्शन करवाये। इन सबके साथ देशभर में चला एक गाना ‘जो राम को लाये हैं, हम उनको लाएंगे।’मतलब साफ है कि कहीं न कहीं यह उम्मीद थी कि राम मंदिर निर्माण का राजनीतिक फायदा सीटों की बढ़ोतरी के रूप में देशभर में मिलेगा। इसी विश्वास से एक नारा भी दिया गया ‘अबकी बार 400 पार।’

अब बात अयोध्या यानी फैजाबाद सीट की:
दरअसल अयोध्या नाम से लोकसभा क्षेत्र नहीं है वरन इसका नाम फैजाबाद है। इस सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें एक सीट बाराबंकी जिले की दरियावद है। बाकी चार सीटें रूदौली, मिल्कीपुर, बीकापुर और अयोध्या सीटें अयोध्या जिले में हैं। रोचक बात यह है कि इन पांच में से चार सीटों पर भाजपा के विधायक जीते हैं। एक मिल्कीपुर सीट पर सपा के अवधेश प्रसाद विधायक है।

राममंदिर आंदोलन के बाद भाजपा ने कम्युनिस्ट पार्टी से छीनी सीट:
फैजाबाद सीट पर भाजपा को पहली बार 1991 में सफलता मिली। इससे पहले यहां 1989 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मित्रसेन यादव सांसद थे। आमतौर पर देखा जाएं तो यह कांग्रेस की परंपरागत सीट थी जिस पर 1957 से 1984 के बीच महज एक बार 1977 को छोड़ हर बार कांग्रेस ने परचम फहराया। अलबत्ता मित्रसेन यादव इसके बाद एक बार समाजवादी पार्टी और एक बार बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर भी इस सीट से सांसद बने।

पांच बार भाजपा के कब्जे में रही सीट:
भाजपा के विनय कटियार ने पहली बार 1991 में जीत दर्ज कर यह सीट भाजपा के खाते में लाये। कटियार मंदिर आंदोलन से उभरे कट्टर हिन्दूवादी नेता के रूप में उभरे। उन्होंने तीन बार फैजाबाद सीट पर जीत दर्ज की। वर्ष 2014 और 2019 के दो चुनावों में लगातार भाजपा के लल्लूसिंह यहां से सांसद बने। इस बार मंदिर बनने के बाद माहौल को भाजपा पूरी तरह अपने पक्ष में मान रही थी। भाजपा ने इस बार भी लल्लूसिंह पर ही दांव खेला लेकिन वे समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद से 54567 वोटों से हार गए।

आस-पास की सभी सीटें हारी:
अयोध्या में जहां भाजपा की हार पर आश्चर्य है वहीं हैरानी की बात यह है कि भाजपा ने आस-पास के सभी पांच सीटें खों दी जिन्हें आयोध्या मंडल की सीटें कहते हैं। इनमें फैजाबाद के साथ आंबेडकरनगर, सुलतानपुर, बाराबंकी और देश की सबसे चर्चित अमेठी सीट शामिल है जहां से स्मृति ईरानी को करारी हार मिली है।

वजह क्या है:
अयोध्या सहित आस-पास की सीटों पर हार के जो कारण सामने आ रहे हैं उसमें सबसे बड़ा है सोशल इंजीनियरिंग। कहा जा रहा है कि भाजपा ने यहां सभी अगड़ों को  मैदान में उतारा। अखिलेश ने बड़ी चतुराई से सोशल इंजीनियरिंग की। यहां पिछड़ों को उतारा लेकिन सावधानी यह रखी कि यादव और मुस्लिमों को टिकट नहीं दिया गया। ऐसे में मुस्लिम, पिछड़े और दलित वोटों का धु्रवीकरण करने के साथ ही कुर्मी वोटों को सपा ने खींच लिया।

लोग मंदिर से खुश, मोदी से राजी, प्रत्याशियों से उदासीन:
भाजपा के पास मुद्दे के नाम पर महज मंदिर दिखा। हालांकि लोग मंदिर बनने से खुश रहे। इसके साथ ही मोदी से भी खास नाराजगी नहीं दिखी लेकिन स्थानीय प्रत्याशियों ने मंदिर और मोदी के नाम ही जीत का भरोसा कर लिया तो अति आत्मविश्वास साबित हुआ। मतलब यह कि उन्होंने खुद मान लिया कि व्यक्तिगत परफॉर्मेंस और स्थानीय मुद्दों का ज्यादा महत्व नहीं रहेगा। कमोबेश यही स्थिति देश के लगभग सभी हिस्सों में दिखी। हालांकि खुद मोदी ने यह माहौल ‘मोदी की गारंटी’ के नाम पर बनाया लेकिन प्रत्याशियों ने सिर्फ मोदी के नाम पर ही वोट मांगे। खुद के गिनाने लायक काम और जुड़ाव उनके पास नहीं रहा। इसी का परिणाम दिख रहे हैं ये नतीजे।