7 सीटों के लिए बदलनी पड़ रही भाजपा – कांग्रेस को रणनीति, हरियाणा का असर
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राज्य की 7 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उप चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस अब युद्ध स्तर पर नये सिरे से जुट गई है। नये सिरे से जुटने के अनेक राजनीतिक कारण है, जिनसे दोनों ही राजनीतिक दल प्रभावित है। ये बदलाव पडौसी राज्य हरियाणा के चुनाव परिणाम के बाद आया है। इस राज्य में दोनों पार्टियों ने राज्य से ही अपने सर्वाधिक नेताओं को उतारा था। सतीश पूनिया भाजपा की तरफ से जहां हरियाणा में राज्य के प्रभारी थे, वहीं पूर्व सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस की तरफ से वहां मुख्य ऑब्जर्वर थे। उनके अलावा सचिन पायलट व गोविंद डोटासरा वहां स्टार प्रचारक भी थे।
भाजपा ने हरियाणा में चुनाव जीतने के बाद उत्साह में अपनी रणनीति को बदला है। अब यहां की 7 सीटों के लिए भी वो नये चेहरे उतारने की सोच रही है। हरियाणा में उसका ये प्रयोग सफल रहा था। इन 7 सीटों पर प्रभारी राधा मोहन व अध्यक्ष मदन राठौड़ दौरा कर चुके हैं और पूरा फीडबैक ले चुके हैं। पार्टी के नेताओं व संगठन से भी चर्चा कर चुके हैं।
भाजपा कोर कमेटी की पिछले दिनों हुई बैठक में भी उप चुनाव पर ही चर्चा हुई। इस बैठक में पहले पैनल बनाने का काम होना था मगर उसको बदला गया। हर सीट के लिए 4 से 5 नाम तय किये गए और उन नामों पर सर्वे कराने का निर्णय किया गया। सर्वे में जिस नाम पर मुहर लगेगी, उसी को टिकट दिया जायेगा। ये फार्मूला भी हरियाणा वाला ही है। नेताओं की सिफारिश नहीं, सर्वे मुख्य होगा। नामों पर सर्वे का फार्मूला उप चुनाव में पहली बार भाजपा काम में ले रही है। आमतौर पर उप चुनाव में पार्टी पूर्व राजनीतिक आधार पर उम्मीदवार तय कर लेती है।
भाजपा कोर कमेटी की जो बैठक हुई, उसकी भी अपनी एक कहानी है। इस बैठक में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने भाग नहीं लिया। उनके बारे में कोई सूचना भी नहीं थी। राजे के प्रभाव का अंदाजा पार्टी को है, इस कारण नीति में भी बदलाव करना पड़ा है। इसके अतिरिक्त अभी तक किरोड़ीलाल मीणा के इस्तीफे का मसला भी नहीं सुलझा है, उसका असर भी उप चुनाव पर होना ही है। कल तो किरोड़ी बाबा ने फिर एक नया मसला खड़ा कर दिया। शिक्षा विभाग ने कुछ तबादले किये, जिसमें दौसा के तबादले बड़ी संख्या में थे। किरोड़ी बाबा ने तुरंत सरकार को पत्र लिखा। सरकार को तबादला आदेश वापस लेने पड़े। कुल मिलाकर भाजपा को इन हालातों के मध्य उप चुनाव के लिए रणनीति बनानी पड़ रही है।
यही स्थिति कांग्रेस की है। उसे हरियाणा में जीत की उम्मीद थी तो उसने तैयारी भी की थी। कांग्रेस ने 7 क्षेत्रों में विजय यात्रा निकालने का कार्यक्रम तय कर लिया था। मगर हार के बाद उसे बैकफुट पर आना पड़ा है। अब अलग अलग सीटों के लिए प्रभारी बनाए गए हैं ताकि ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार उम्मीदवार तय हो और उसी के आधार पर चुनावी रणनीति बने। कांग्रेस के सामने दूसरी समस्या रालोपा के हनुमान बेनीवाल ने खड़ी की है। वे खींवसर सीट पर कांग्रेस से समझौते को लेकर पोजेटिव नहीं दिख रहे। इस कारण इस सीट पर कांग्रेस को नई रणनीति के अनुसार योजना बनानी पड़ेगी। चौरासी सीट पर कांग्रेस जैसे तैसे समझौता आदिवासी पार्टी से कर लेगी। मगर उसे खींवसर व चौरासी के लिए अलग रणनीति पर काम तो करना ही पड़ रहा है। इस स्थिति में माना जाना चाहिए कि हरियाणा चुनाव परिणाम का असर राज्य के उप चुनाव पर पड़ा है। पार्टियों को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ रहा है।