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BONALU : यहां माँ काली के विकराल रूप का दर्शन करने सड़कों पर उमड़ रही भीड़

 

RNE Special Report Hyderabad

Jhawar Purohit (स्थानीय निवासी एवं व्यवसायी)

देश में एक ओर जहां सावन के महीने में देवाधिदेव महादेव के पूजन-अभिषेक का दौर चल रहा है वहीं तेलंगाना पूरे महीने चलने वाला एक खास त्यौंहार शुरू हो चुका है। यह त्यौहार है बोनालू जो कालीमाता को खुश करने के लिये मनाया जाता है। उत्साह ऐसा कि काली माता का रूप धारण करने वालों के साथ सैकड़ों की तादाद में लोग सड़क पर उतर रहे है।

खास संगीत की धुन पर नाचते और जयघोष करते दिखते हैं और एक खास पकवान घर-घर बनाकर भगवती को चढ़ाया जाता है। यह पकवान है-बोनालु।

 

ऐसे शुरू हुआ यह खास त्योहार :

तेलंगाना राज्य में ट्विन सिस्टर के नाम से मशहूर हैदराबाद-सिकंदराबाद में मनाया जाने वाले इस खास त्योहार ‘बोनालु’ का इतिहास भी एक खास घटना से जुड़ा है बात वर्ष 1813 की है जब इस ट्विन सिटी को प्लेग नामक गम्भीर बीमारी ने जकड़ लिया था तब इस खतरे से चिंतित हैदराबाद की एक सैन्य बटालियन जो उज्जैन में तैनात थी, बटालियन ने माँ काली से इस भयानक बीमारी को रोकने की प्रार्थना की और संकल्प लिया यदि यह महामारी टल जाती है तो माँ की मूर्ति की स्थापना सिकंदराबाद में करेंगे, इस बटालियन की अरदास माँ ने सुनी महामारी टल गई फिर अपने संकल्पानुसार बटालियन ने ‘बोनालु’ चढ़ाकर मूर्ति की स्थापना की। इसी के साथ ही ‘बोनलु’ उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई।

क्या होता है बोनालु ?

बोनालु शब्द की उत्पत्ति तेलुगु भाषा के शब्द बोनम शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ भोजन से है। महिलाएं बर्तन में चावल, दूध और गुड़ मिलाकर प्रसाद तैयार करती है तथा बर्तन को नीम की पत्तियों और हल्दी से सजाने के साथ ही सिंदूर, चूड़ी और साड़ी को रखकर मंदिर में ले जाकर माता को बोनालु के रूप में अर्पित करती है।

उत्सव के दौरान मां के क्षेत्रीय स्वरूप मैसम्मा, पौचम्मा, यैलम्मा, पैदाम्मा,डोक्लाम्मा, अंकलम्मा, और नुकलम्मा की भी पूजा की जाती है। मान्यता है माँ का क्रोध बोनालु अर्पण से शांत होता है और बीमारियों का नाश होता है।

ऐसे शुरू होता है ‘बोनालु’ का सफर :

हिन्दू कैलेंडर वर्ष के आषाढ़ माह के पहले रविवार को इस त्योहार की शुरुआत सर्वप्रथम गोलकुंडा फोर्ट के श्री जगदंबिका मंदिर में बोनालु अर्पण से होती है इसके बाद सिकंदराबाद के उज्जैनी महाकाली मंदिर और लाल दरवाजा स्थित माता के मंदिर में बोनालु अर्पित करने के बाद शहर के अन्य मंदिरों में बोनालु अर्पण करने जे बाद समापन भी गोलकुंडा के जगदंबिका मंदिर में होता है।

शोभा यात्रा का होता है आयोजन :

उत्सव के दौरान पूरे शहर में शोभा यात्रा का आयोजन किया जाता है जिसमें महिलाएं, पुरूष तथा बच्चे ढोल-नगाड़े-डी.जे पर पारंपरिक धुन के साथ नृत्य करते हुए सम्मिलित होते है।

‘पोथाराजु’ करते है नेगेटिव एनर्जी का दमन :

पोथाराजु कथित रूप से मां का भाई माना जाता है, यह नंगे बदन छोटी, अच्छी कद-काठी, कसी हुई लाल धोती, बदन में हल्दी, माथे पर सिंदूर लगाए हुए ढोल की थाप पर नृत्य करता हुआ नकारात्मक ऊर्जा का दमन करता है।

‘रंगम’ नाम की एक खास धार्मिक प्रक्रिया का होता प्रस्तुतिकरण :

उत्सव के दौरान एक खास धार्मिक प्रक्रिया ‘रंगम’ को भी स्थान मिलता है। मान्यताओं के अनुसार एक महिला के अंदर साक्षात महाकाली प्रवेश करती, वह महिला मिट्टी के बने एक बड़े घड़े पर खड़ी होती है और लोगों को उनके भविष्य के बारे में बताती है। यह धार्मिक प्रक्रिया शोभा यात्रा से पूर्व निभाई जाती है।