संजय की दो किताबें : ओळू : अतीत से आधुनिक कविता निकाली, किताबी सफर : वर्तमान पर नजर
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मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
बातें अदब की : विरासत यूं संभलती है अदब में
विरासत को बचाने की बात हर क्षेत्र में हमेशा होती है। राजनीति में तो विरासत बचाने की होड़ सी लगी रहती है। झगड़े तक हो जाते हैं। व्यापार में भी विरासत संभालने को लेकर युद्ध होता है। सरकारों के विरासत संरक्षण में घपले आम बात है। इन सबसे अलहदा है अदब का क्षेत्र। इसमें कुछ लाभ नहीं, आत्मिक सुख है। आजकल आदमी इस तरफ नजर भी नहीं डालता।
मगर सामान्य उक्ति है – के तो बचावै भींतडा, या बचावै गीतड़ा । गीत अदब का प्रतीक है। बीकानेर अदब की नगरी है तो जाहिर है यहां इसकी विरासत को बचाने की भी समृद्ध परंपरा है। ऐसा ही आयोजन हुआ 27 अगस्त को नरेंद्र सिंह ऑडिटोरियम में। कवि, कथाकार, अनुवादक, आलोचक, एंकर और जन कवि स्व बुलाकी दास बावरा के पुत्र संजय पुरोहित की दो पुस्तकों का इस दिन लोकार्पण हुआ। पिता ने पुत्र के हाथ में कलम पकड़ाई तो उसका धर्म संजय पूरी तरह निभा रहा है।
संजय ने 50 साल पहले की जन कवि बुलाकी दास बावरा की आधुनिक हिंदी कविता के राजस्थानी अनुवाद की पुस्तक ‘ओळूं रो उजास ‘ तैयार की, जिसका लोकार्पण हुआ। सब विस्मित थे। 50 साल पहले बीकानेर के इस कवि ने आधुनिक हिंदी कविता लिखी, ये बड़ा तथ्य इस पुस्तक से ही सामने आया। तभी तो कहने वालों ने कहा, संजय ने विरासत का सही अर्थों में संरक्षण किया है। उनकी दूसरी पुस्तक आलोचना विधा की ‘ किताबी सफर ‘ थी। यादगार आयोजन, क्यूंकि संजय पुरोहित ने अदब में विरासत के संरक्षण का सार्थक काम किया।
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छगन मोहता स्मृति व्याख्यान : आदीवासियत में गांधी की तलाश
शहर के प्रज्ञा के रूप में डॉ छगन मोहता का नाम पूरे देश में आदर के साथ लिया जाता है। जीवन से जुड़े हर विषय पर उनका अध्ययन और चिंतन था। वे मूर्धन्य संस्कृतिकर्मी, रचनाकार व चिंतक थे। उनकी स्मृति में इस बार 21 वीं व्याख्यानमाला प्रौढ़ शिक्षण समिति ने आयोजित की। जो अर्से बाद हुआ यादगार प्रज्ञा आयोजन था।
‘ आदिवासियत : वर्तमान चुनोतियों का बेहतर विकल्प ‘ विषय पर आदिवासी साहित्य पर विशेष काम करने वाले, वरिष्ठ साहित्यकार हरिराम मीणा का व्याख्यान हुआ। आदिवासी के लिए प्रकृति, उसके मानवीय मूल्य व सहकारिता ही जीवन के आधार है। एक घन्टे से अधिक के व्याख्यान में मीणा ने देश, दुनिया के आदिवासी जगत की अनछुई बातों को बताया। आदिवासियों के उजले पक्ष को मजबूती से सामने रखा और उनकी भावनाओं की कोमलता सुनने वालों को बताई। आदिवासी संस्कृति, जीवन, सोच को इतनी साफगोई से जीवन मे पहली बार जानने का अवसर हरिराम मीणा ने दिया। कई प्रचलित भ्रांतियां भी इससे दूर हुई और मिथक भी टूटे। सच में, जीवन में यदि इस तरह के व्याख्यान सुनने को कभी कभार मिल जाये तो जीवन सार्थक हो जाये।
व्याख्यान को पूर्णता प्रदान की अध्यक्ष उद्बोधन ने। कवि, चिंतक, नाटककार, आलोचक डॉ नन्दकिशोर आचार्य ने अपने संबोधन में आदिवासियत व गांधी के स्वराज के अन्तर्सम्बन्ध को जिस तरह से बताया, वो अद्भुत था। हम कभी चीजों को इस नजरिए से क्यों नहीं देखते, ये मलाल भी हुआ। डॉ आचार्य ने गांधीवाद को भी इस बहाने सरलता से बता दिया। मानसिक खाद देने वाले इस महत्ती आयोजन के लिए डॉ ब्रजरतन जोशी, ओम कुबेरा जी, सुशीला ओझा जी, मुकेश व्यास जी, गिरिराज मोहता व प्रौढ़ शिक्षण समिति के सभी कार्यकर्ताओं का आभार। जीवन भर याद रहने वाला व बहुत कुछ सिखाने वाला आयोजन था ये व्याख्यान।
- आ म्हारा बैली सम्पटपाट
\बीकानेर की अदब की दुनिया में इस तरह के गहरे अर्थ वाले सार्थक आयोजन होते हैं तो कुछ अन्य शहरों की ही तरह ‘ लाग लपेट ‘ के आयोजन भी होते हैं। कहावत है ना, आ म्हारा बैली सम्पटपाट, म्हें थनै चाटूँ थूं म्हने चाट। इस तर्ज पर भी आयोजनजीवी आयोजन करते ही रहते हैं। उनका ध्येय अदब की गरिमा बनाने, चिंतन करने, रचनाशीलता को गति देने का नहीं होता, खुद की मार्केटिंग का होता है। अखबार में खबर छप जाये, सोशल मीडिया की पोस्ट बन जाये, लोगों को भ्रम के जाल में फंसा खुद को बड़ा बता दे और अपने आगे कई विशेषण लगा लें, इस ध्येय से काम करते हैं और उसमें सफल भी होते हैं। उनकी सफलता उनको मुबारक, उनके ओजार बनने वालों के प्रति सहानुभूति। अब अदब है, इनकी भी दुकान तो चलेगी।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।
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