फिर आई इक याद पुरानी..अदब की महफ़िल में आते तो सियासत का चोगा बाहर रख आते आरिफ
‘ अदब में आये हो तो पहले जो कहा है, उसे याद रखो। उसे भूलकर समय के अनुसार बोलते हो तो अदब की दुनिया छोड़ दो। ये भांडपन कहीं और जाकर दिखाओ। ‘
ये शब्द 40 साल पहले आनन्द निकेतन, बीकानेर में उर्दू के एक बड़े शायर ने बेलाग होकर एक कवि को भरी सभा में कहे थे। उस वक़्त बहुत कम लोगों को ये इल्म था कि ये कहने वाला सिर्फ शायर नहीं है, अपितु सियासत की दुनिया का भी बड़ा नाम है। जिसके पास सियासत के कई पद हैं। वो शख्स जब अदब की महफ़िल में आता था तो सियासत का चोगा उतारकर आता था। सियासत से अदब को नहीं, बल्कि अदब से सियासत को लाभ देता था। वो अजीम शायर, बेलाग इंसान, बड़ा राजनेता था बीकानेर का लाडला मोहम्मद उस्मान आरिफ।
छोटे से मोहल्ले चुनगरान में पैदा होकर पूरे देश मे एक शायर व नेता के रूप में अलग पहचान बनाने वाले इस इंसान को अपने बीकानेर से बेहद लगाव था। चाहे सियासत में वे किसी भी पद पर रहे, हर जगह अपनी बीकानेरियत की छाप जरूर छोड़ी। आरिफ साब इस शहर की शान थे।
उनके बारे में लोग बताते हैं कि वो फक्कड़ तबीयत के थे। माता पिता की सेवा करने वाला ये शख्स यारों का यार था। मित्रों के बीच ही अपना अधिकतर समय व्यतीत कर खुश रहता था। शायरी तो उनके रक्त में घुली हुई थी। इस बड़े शायर की शायरी के केंद्र में इंसानियत ही सदा रहती थी। सद्भाव, स्नेह व भाईचारा इसकी शायरी में घुले हुए थे। उसकी भी खास वजह थी उनकी मित्र मंडली। उनके मित्रों में दूसरी जाति के लोगों की बहुतायत थी। इस शायर ने अपने शहर में कभी भी धर्म के नाम पर दूरियां नहीं देखी थी, उस कारण ही शायरी में भी वही भाव उभरा।
सूफी तबीयत के शायर आरिफ साब एकता पर खुलकर बोलते थे। उनको अपने बीकानेर की गंगा जमनी संस्कृति पर गर्व था। जिसकी अभिव्यक्ति उन्होंने अपनी अनेक गजलों में की। अदब की महफ़िल में जब वे तरन्नुम के साथ बोलने लगते थे तो लोग भावों संग बहने लगते थे। बात दिल से निकलती थी तो सुनने वाले के भी दिल में उतरती थी। उर्दू अदब की बड़ी शख्सियत थे आरिफ साब। उनका निधन 22 अगस्त 1995 को हुआ।
उन पर एक आलेख में इमरोज नदीम लिखते हैं– साहित्य व राजनीति के मिलन के उदाहरण दुर्लभ होते हैं। मरहूम मोहम्मद उस्मान आरिफ साब जो ख़ालिस अदबी शख्सियत थे, और फिर राजनीति में आये, अनेक उपलब्धियां हासिल करते हुए राज्यपाल जैसे उच्च पद पर आसीन हुए।
अदबी शख्स का सियासत का सफर
1970 में वे राज्यसभा के सदस्य चुने गये। 1976 व 1982 में फिर इस उच्च सदन के सदस्य बने। 1980- 82 में वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में उप मंत्री रहे। 1983-84 में दुबारा उप मंत्री बने। 31 मार्च 1985 से 11 फरवरी 1990 तक वे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे। कांग्रेस में भी वे अनेक पदों पर रहे।