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RBI Update : लोन लेने वालों पर आरबीआई मेहरबान, ईएमआई को कम करने की तैयारी 

आरबीआई ने अगस्त माह में ब्याज देर में ओर कटौती के दिए संकेत 

 

आरबीआई द्वारा पिछले दिनों ब्याज में कटौती करके लोन धारकों को बड़ी राहत दी थी। इसी कड़ी में आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में ओर कटौती की उम्मीद जगी है। आरबीआई ने संकेत दिया है कि अगले माह यानी अगस्त माह में फिर से ब्याज दर में कटौती की जा सकेगी। इसके कारण लोन लेने वाले लोगों को राहत मिलगी, वहीं एफडी व दूसरे स्कीमों में निवेश करने वालों को कम ब्याज मिल सकेगा।

जून में खुदरा महंगाई दर 73 माह के निचले स्तर 2.10 प्रतिशत और थोक महंगाई दर 20 महीने के निचले स्तर -0.13 प्रतिशत पर पहुंचने से अगस्त में होने वाली आरबीआइ एमपीसी की बैठक में रेपो रेट में और कटौती की आस जगी है। ब्याज दरों मे कटौती की संकेत आरबीआइ गवर्नर संजय मल्होत्रा ने खुद दिए है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक के 'तटस्थ' रुख का मतलब यह नहीं है कि आगे ब्याज दरों में कटौती नहीं होगी।

संजय मल्होत्रा ने कहा, तटस्थ रुख आरबीआइ को ऊपर या नीचे जाने का लचीलापन देता है। आगे ब्याज दरों में कटौती की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। सेंट्रल बैंक की मौद्रिक नीति समिति अगर जरूरी समझेगी तो इस साल ब्याज दरों में कटौती कर सकती है।

अगर ऐसा हुआ तो पर्सनल लोन से लेकर कार और होम लोन और सस्ता हो सकता है। संजय मल्होत्रा ने कहा कि अप्रैल-जून तिमाही के कम मुद्रास्फीति के आंकड़ों का आकलन केंद्रीय बैंक अपने अनुमान जारी करने के लिए करेगा।

बैंक ऑनरशिप संबंधी मानदंडों की समीक्षा

आरबीआइ बैंक ऑनरशिप संबंधी मानदंडों की समीक्षा कर रहा है। इसके तहत विदेशी बैंकों को स्थानीय बैंकों में अधिक हिस्सेदारी की अनुमति दी जा सकती है। आरबीआइ के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मंगलवार को कहा कि केंद्रीय बैंक इस बात की जांच करेगा कि क्या विदेशी बैंकों को सामान्य नीतिगत तौर पर स्थानीय बैंकों में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने की अनुमति दी जा सकती है। 

उन्होंने कहा कि मौजूदा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के तहत इस पर कोई रोक नहीं है। एफडीआइ नीति के तहत विदेशी बैंकों को 74 प्रतिशत तक की अनुमति है। पर बैंकिंग विनियमन अधिनियम के अनुसार मतदान का अधिकार 26 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता।

आरबीआइ गवर्नर ने कहा, एमपीसी बदलती

परिस्थितियों को ध्यान में रखेगी और फिर यह फैसला लेगी कि इकोनॉमी को वास्तव में किस प्रकार की दर और नीति की जरूरत है। अगर महंगाई कम है, पूर्वानुमान कम है, विकास कम है, तो निश्चित रूप से दरों में कटौती की जा सकती है। रेपो रेट में कटौती का कारण मुद्रास्फीति और विकास के आंकड़ों का मिश्रण होगा, साथ ही मूल्य स्थिरता पर भी जोर दिया जाएगा।