हम कितने मजबूर : मातृभाषा दिवस पर उत्सव नहीं मना सकते, मान्यता मांग रहे
राजस्थान में नहीं तो और कहां मिलेगा राजस्थानी को मान, मातृभाषा दिवस कैसे होगा सार्थक
आरएनई,स्टेट ब्यूरो।
आज मातृभाषा दिवस है। अपनी मां बोली को सम्मान देने का दिन। मगर राजस्थानी तो आज बेबस हैं, मजबूर है, इसलिए उत्सव नहीं मांग दिवस मना रहे हैं। वजह, क्योंकि उनकी मां बोली राजस्थानी को न अभी तक राज्य ने राजभाषा बनाया है और न उसे देश में संवैधानिक मान्यता मिली है। तब इस दिन को मांग दिवस मनाने के अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं।दुनिया में इस भाषा को 12 करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं, उसके बाद भी भाषा की मान्यता पर ताला लगा हुआ है। अपनी भाषा की इस स्थिति को देखकर हर राजस्थानी भीतर ही भीतर रोता है। शौर्य के कारण अपनी खास पहचान रखने वाले राज्य को उसकी भाषा न मिलना उचित तो नहीं।
ये बात सरकारों को समझनी चाहिए कि राजस्थान में यदि राजस्थानी को मान्यता नहीं मिलेगी तो और कहां मिलेगी। पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बंगाल, केरल, तमिलनाडू आदि के पास अपनी भाषा है और उसका मान भी है। फगत राजस्थान के पास उसकी भाषा राजस्थानी नहीं है। जिस भाषा का लंबा इतिहास है, समृद्ध साहित्य है, अपनी लिपी है, जिसे लोग बोलते हैं, उसी भाषा को मान्यता नहीं।जबकि अनेक उन भाषाओं को मान्यता है जिसको बोलने वालों की संख्या बहुत कम है।यूएनओ के एक सर्वे में साफ कहा गया कि मातृभाषा में यदि बच्चे को प्राथमिक शिक्षा मिलती है तो वो जल्दी से शैक्षिक विकास करता है। अनेक बड़े वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, साहित्यकार इस बात का जीवंत प्रमाण भी है। उनकी आरंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में हुई थी।राजस्थान की विधानसभा ने 2013 में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा कि हमारी भाषा राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाये। मगर उस प्रस्ताव पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। राजस्थानी अपनी भाषा की मान्यता के लिए आज भी तरस रहे हैं।
राजस्थान से लोकसभा में 25 सांसद जाते हैं, 10 राज्यसभा में जाते हैं और 200 विधायक हैं। इस बड़े राजनीतिक अमले के बाद ये लोग अपनी मां बोली राजस्थानी को न तो राज्य में दूसरी राजभाषा बना सके हैं और न संवैधानिक मान्यता दिला सके हैं। जबकि ये सभी जन प्रतिनिधि जब वोट मांगते हैं तो अपनी मां बोली राजस्थानी को काम में लेते हैं।मां का कर्ज चुकाने का जज्बा तो हर राजस्थानी में होना चाहिये। यदि मां भाषा को मान्यता नहीं मिली तो न राजस्थानी संस्कृति बचेगी, न यहां के लोगों की अस्मिता। ये बात हर राजस्थानी को समझनी होगी। तभी भाषा बचेगी, संस्कृति बचेगी और अस्मिता बचेगी।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘