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पर्वाधिराज पर्युषण का चतुर्थ दिवस वाणी संयम दिवस के रूप में मनाया

RNE Bikaner.

श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा गंगाशहर के तत्वावधान में पर्युषण महापर्व का चतुर्थ दिवस वाणी संयम दिवस के रूप में आयोजित किया गया।

धर्म सभा को संबोधित करते हुए युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी ने कहा कि जैन धर्म में राग द्वैष को क्षय करना महत्वपूर्ण माना गया है। उन्होंने भगवान महावीर के पिछले भवों का वर्णन करते हुए सम्यक्तव्य के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने वाणी संयम दिवस के अवसर पर सभी को गुस्सा नहीं करने का संकल्प करवाया।

मंत्री जतनलाल संचेती ने कहा, साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी ने आचार्य भद्रबाहु द्वारा रचित उपसर्गहर स्रोत का विवेचन किया।

साध्वी कृतार्थ प्रभा जी ने वाणी के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि वाणी का ऐसा प्रभाव होता है कि एक मिनट में ही सुनने वाला प्रेम से सराबोर हो जाता है या गुस्से से आग बबूला हो जाता है। वाणी संयम से तात्पर्य केवल मौन करना नहीं है वरण बोलने की कला से है।

उन्होंने कहा कि भोजन व आवेश की स्थिति में अवश्य मौन रहना चाहिए।उन्होंने मधुरभाषिता मित्तभाषिता व समिक्षभाषिता के बारे में विस्तार पूर्वक बताते हुए वाणी संयम का महत्व प्रतिपादित किया।