एयरपोर्ट पर बेबस इंडिया: मेरी बेटी को ब्लडिंग हो रही है, एक पैड चाहिये...क्यों नहीं दे सकते!!
धीरेन्द्र आचार्य
इंडिगो की मोनोपाली से फेल हुए हवाई सिस्टम के बीच एक वीडियो वायरल हुआ जिसने गहरे तक हिला दिया है। वीडियो में दिख रहा है एयरपोर्ट पर हजारों लोग फंसे। काउंटर पर बैठे कर्मचारियों के सामने सवालों की बौछार हो रही है। इसी बीच एक शख्स चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा है, ‘मेरी बेटी को ब्लडिंग हो रही है। पैड चाहिये।’ आवाज अनसुनी होने पर और जोर से चिल्लाता है। काउंटर पर बैठे पुरुष पर असर न होता देख महिला कर्मचारी की ओर बढ़ता है। उम्मीद थी कि शायद महिला एक बच्ची का दर्द समझकर अपने व्यक्तिगत एफर्ट भी कर सकती है। संबोधन देता है ‘सिस्टर..ओ सिस्टर.. मेरी बेटी को ब्लडिंग हो रही है, मुझे पैड चाहिये’।
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इतने बुरे हालात में भी ऐसा पवित्र संबोधन देकर वह जता देता है कि गुस्से और दर्द के बावजूद वह सभ्यता नहीं त्याग सकता। यह भारतीय संस्कार है। इसके बदले में उसे सपाट चेहरे के साथ जो जवाब मिला वह भीतर तक हिला देने वाला है। वह जवाब है ‘हम ये नहीं कर सकते।’
‘चिल्ला-चिल्लाकर बेटी के लिए पैड मांग रहे एक पिता को दिया गया यह जवाब इंडिगों की मोनोपोली से फेल की गई व्यवस्था से भी हजार गुना बदतर और संवेदनहीन है और इसके लिए काउंटर पर बैठी कर्मचारी पूरी तरह जिम्मेदार नहीं है। मूलरूप से यह सपाट चेहरा उस महिला कर्मचारी का नहीं हमारे उस सिस्टम का है जिस पर संवेदना की बनावटी लकीरें भी समय, काल, परिस्थिति के अनुरूप उकेरी जाती है।

क्या होता अगर वह कह देती ‘ओह इतना बुरा हुआ, माफ करना अभी हमारे पास यह उपलब्ध नहीं है। मैं कोशिश करती हूं।’ क्या वह ऐसा इसलिए नहीं कह सकती क्योंकि जिस कारपोरेट व्यवस्था में काम कर रही है या कर रहा है वह संवेदनशील होने की आजादी भी नहीं देता।
तीन दिन मंे डेढ़ हजार फ्लाइट कैंसिल करने के साथ ही लाखों लोगों को उनके रास्ते से भटका देने वाले सिस्टम ने सोशल मीडिया हैंडल पर ‘वी आर सॉरी’ लिख, साढ़े तीन मिनट का वीडियो बयान जारी कर अपनी ड्यूटी निभा ली। स्वाभाविक है कि जिस देश का लगभग 65 फीसदी एयर ट्रैफिक किसी एक कंपनी के कंधों पर हो और वह पायलट-क्रू मेंबर के लिए जारी गाइड लाइन लागू करने मंे भी भरोसा नहीं करती है वह ऐसे हालात पैदा कर ‘हवाई अराजकता’ फैलाने की क्षमता रखती है। ऐसा महसूस भी किया गया है। नतीजा क्या हुआ! सरकार इस हालात से ब्लैकमेल होती दिखी और हवाई सुरक्षा के लिहाज से जो नियम-पाबंदिया तय की गई उनमंे तुरंत छूट दी गई। कहा गया, 03 दिन में व्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। इससे इतर कंपनी बोली-पूरी तरह हालात ठीक होने में आठ से 10 दिन लग सकते हैं। जब तक आपकी उड़ान कन्फर्म न हो, घर से एयरपोर्ट के लिए रवाना न हों।

यहां हवाई अराजकता जितनी कचोटने वाली है उससे कहीं ज्यादा विश्वास और संवेदना की क्रेश लैंडिंग दिल दुखाने वाली है। जिस दौर में हम किशोरियों के हाइजीन के लिए स्कूलों से लेकर गांव के आंगनबाड़ी केन्द्रों तक। बस स्टैंड से लेकर रेलवे स्टेशन के एटीएम बूथों तक सेनेटरी पैड मुहैया करवाने की बात करते हैं उस वक्त में इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एक पिता अपनी बेटी के लिए एक सेनेटरी पैड की भीख मांगता नजर आ रहा है। दुखद यह है कि इसके लिए भी उसे टका-सा जवाब दे दिया जाता है।
क्या यह महज एक पिता और बेटी का दर्द नहीं वरन दिखावटी विकास के बीच खो रहे विश्वास का चलचित्र नहीं है। समझ लेना चाहिए कि खोखले विकास और बनावटी संवेदना से यह विश्वास नहीं लौट सकता।


