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भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत और असमिया साहित्य के विकास में भट्टाचार्य के योगदान पर हुई चर्चा

 
RNE Network, New Delhi. असमिया साहित्य के प्रख्यात लेखक और साहित्य अकादेमी के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित दो-दिवसीय संगोष्ठी का बुधवार को समापन हुआ। इस संगोष्ठी में भट्टाचार्य के साहित्यिक योगदान और असमिया साहित्य में उनके अमूल्य योगदान पर गहन चर्चा की गई। भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत और असमिया साहित्य के विकास में भट्टाचार्य के योगदान पर हुई चर्चा पहले सत्र की अध्यक्षता कुलधर सइकिया ने की। उन्होंने वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य के उपन्यासों पर चर्चा करते हुए कहा कि उनकी रचनाएँ स्थानीय सामाजिक टकराव और परिवेश का बेहतरीन संयोजन हैं। भट्टाचार्य के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आई’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने इसे समाज की माँ का प्रतीक बताया। भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत और असमिया साहित्य के विकास में भट्टाचार्य के योगदान पर हुई चर्चा सत्र में विभाष चौधरी ने भट्टाचार्य की कथात्मक तकनीक और चरित्र निर्माण पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके लेखन में रूस के लेखकों लियो टॉलस्टाय और फ्योदोर दोस्तोएव्स्की का प्रभाव दिखता है। उनके लेखन में इतिहास और वर्तमान का मेल पाठकों को गहराई से प्रभावित करता है। भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत और असमिया साहित्य के विकास में भट्टाचार्य के योगदान पर हुई चर्चा निर्मल कांति भट्टाचार्जी ने उनकी लेखन यात्रा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वे गाँधी जी से अत्यधिक प्रेरित थे और उनके लेखन में आम आदमी के संघर्षों को प्रमुख स्थान मिला। सत्यकाम बरठाकुर ने उनकी साहित्यिक विरासत पर चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने असम के सामाजिक बदलाव को बहुत गहराई से समझा और अपनी रचनाओं में इसे सजीव किया। भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत और असमिया साहित्य के विकास में भट्टाचार्य के योगदान पर हुई चर्चा दूसरे सत्र की अध्यक्षता मनोज गोस्वामी ने की। यह सत्र भट्टाचार्य के संपादन कार्य और असमिया साहित्य के विकास में उनके योगदान पर केंद्रित था। गोस्वामी ने कहा कि भट्टाचार्य ने अपने लेखन और संपादन से असमिया साहित्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत और असमिया साहित्य के विकास में भट्टाचार्य के योगदान पर हुई चर्चा अनुराधा शर्मा ने उनकी पत्रिका ‘रामधेनु’ का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने युवा लेखकों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार की जिसने असमिया साहित्य को नई दिशा दी। दीप सइकिया ने उनके संपादन कार्य और आधुनिकतावादी दृष्टिकोण पर अपने विचार साझा किए। भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत और असमिया साहित्य के विकास में भट्टाचार्य के योगदान पर हुई चर्चा दिलीप चंदन ने भट्टाचार्य की संपादकीय दृष्टि पर चर्चा करते हुए बताया कि उन्होंने असमिया साहित्य में नए रूझानों की शुरुआत की। उनका संपादन कार्य आज भी साहित्यिक दृष्टिकोण में अनुकरणीय है। भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत और असमिया साहित्य के विकास में भट्टाचार्य के योगदान पर हुई चर्चा कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। संगोष्ठी में वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य के अप्रकाशित कार्यों और उनके गीतों का भी उल्लेख हुआ। वक्ताओं ने कहा कि उनका साहित्यिक योगदान भारतीय लेखकों और पाठकों को लंबे समय तक प्रेरि त करता रहेगा।

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