अणुव्रत दिवस : साध्वीजी ने कहा, महाविदेह क्षेत्र में आज भी तीर्थंकर होते हैं
RNE Bikaner.
श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा गंगाशहर के तत्वाधान में तेरापंथ भवन में युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी एवं साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी के सान्निध्य में आज पर्युषण महापर्व का पंचम दिवस अणुव्रत दिवस के रूप में मनाया गया।
मंत्री जतनलाल संचेती ने बताया, साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी ने अपने मंगल उद्बोधन में तीर्थंकरों के गुणों का वर्णन करते हुए कहा कि तीर्थंकर भगवान में अनंत ज्ञान, दर्शन, चारित्र ,आनंद समाया हुआ है। तीर्थंकरो द्वारा बताया गया मार्ग हमें मोक्ष मार्ग की ओर ले जाता है। महाविदेह क्षेत्र में आज भी तीर्थंकर होते हैं।
साध्वी श्री जी ने कहा कि इस अवसरपणी काल में गुरु ही हमें मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं और दुखों से मुक्ति का मार्ग दिखा रहे हैं। क्या अति सुख में धर्म याद आता है ? हमें दुख में ही धर्म एवं मंत्रों की और शक्तियों की याद आती है क्यों ? हमें प्रतिदिन जप स्वाध्याय करना चाहिए। जिससे हमारा आभामंडल इतना शुभ हो जाए की कोई विघ्न, बाधा हमारे निकट ही नहीं आ सके।
हर क्षण धर्म के साथ जीना चाहिए । धर्म के महत्व को समझे। धर्म तो हमारा व्यवहार है। हम प्रत्येक कार्य में धर्म के साथ जीवन जी सकते हैं। हम अपनी आत्मा के लिए धर्म करें , दिखावे के लिए नहीं। देवताओं का आयुष्य लंबा होता है अमर नहीं होते हैं। देवताओं का आयुष्य पूर्ण होने वाला हो उससे 6 माह पूर्व उनको पता चल जाता है।
साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भक्ति भावों पर निर्भर करती है। जैसा भाव, वैसा स्वभाव। हाथों के साथ हृदय जुड़ जाए तो भावना के साथ भक्ति से स्पंदन बढ़ जाता है और भक्ति शक्तिशाली हो जाती है। जप मैं निरंतरता होनी चाहिए। अगर जप में निरंतरता होती है तो वह सिद्धि बन जाता है और भौतिक संपन्नता बढ़ती है।
प्रतिदिन जप करने से एक आवरण बन जाता है कोई भी नकारात्मक शक्ति इस आवरण को भेद नहीं सकती है। जप के चार लाभ होते हैं- पहला ग्रहो का प्रभाव अनुकूल होता है। दूसरा सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। तीसरा ज्वार-वात- पित्त-कफ की बीमारी दूर होती है। चौथा दुख और दुर्भाग्य दूर होते हैं।
साध्वी श्री मध्यस्थ प्रभा जी ने कहा कि मनुष्य बाह्य विकास को देखकर आंतरिक विकास को भूल जाते हैं । जबकि मनुष्य को आंतरिक विकास पर ध्यान देना चाहिए। ज्ञान के साथ अच्छा व्यवहार होना जरूरी है। क्षण भर भी प्रमाद न करें। अणुव्रत दिवस के अवसर पर छोटे-छोटे संकल्प करें। जिससे जीवन को नया मोड़ दे सकते हो।