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Superhit Ragani : समाज की आंखें खोल रही रमेश कलावड़िया की सदाबाहर रागनी 'कर्मों कै अनुसार मनुष्य ने दुख सुख सहना चाहिए'

'कर्मों कै अनुसार मनुष्य ने दुख सुख सहना चाहिए' काफी हिट रागनियों में शामिल है। उनके हर कार्यक्रम में फैंस द्वारा इस रागनी की डिमांड की जाती है
 

हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम उत्तरप्रदेश में पुराने समय से रागनी कल्चर रहा है। रागनी जहां समाज में फैल बुराइयों के ऊपर सीधा कटाक्ष करती है, वहीं इन राज्यों में मनोरंजन के लिए हिंदी गानों से ज्यादा रागनियों को सुना जाता है। पंडित लखमीचंद की रागनी जीवन जीने के मानक के तौर पर जाना जाता है।

रागनी कलाकारों का दावा है कि पंडित लखमीचंद आजादी से पहले समाज में अब हो रहे परिर्वतन के बारे में रागनी के माध्यम से बता गए थे और उनके अनुरूप ही आज समाज लगातार परिवर्तन हो रहा है और अपने संस्कृति व संस्कार को छोड़कर आगे बढ़ रहा है। आधुनिक युग में जहां रागनी की जगह पर हरियाणवी गानों ने जगह ले ली है, लेकिन अब भी रागनी को सुनने वालों कमी नहीं है।

अब भी काफी पुराने गायक रागनी के माध्यम से समाज पर तेजी से फैल रही बुराईयों पर कटाक्ष करते है। ऐसे ही एक हरियाणवीं कलाकार रमेश कलावड़िया है। रमेश कलावड़िया आज भी रागनी की पुरानी परंपरा को बरकरार रख रहे है और वह कभी भी अपने स्टेज शो में आजकल प्रयोग की जा रही तड़क भड़क का प्रयोग नहीं करते है। 

उनकी एक ऐसी ही रागनी 'कर्मों कै अनुसार मनुष्य ने दुख सुख सहना चाहिए' काफी हिट रागनियों में शामिल है। उनके हर कार्यक्रम में फैंस द्वारा इस रागनी की डिमांड की जाती है। जहां पर रमेश कलावड़िया भी इस रागनी को बड़े ही चाव से गाते है और लोगों उनकी इस रागनी की जमकर तारिफ करते है।

अगर बात की जाए तो यूटयूब पर भी रमेश कलावाड़िया की इस रागनी को लोगों द्वारा जमकर सुना जाता है। रमेश कलावड़ियों द्वारा हर कार्यक्रम में जल्द से जल्द प्रसिद्धि पाने के लिए कलाकारों द्वारा प्रयोग किए जा रहे फ़ूहड़ और नंगा नाच पर जमकर कटाक्ष करते है। इस रागनी में भी रमेश कलावड़िया रागनी से पहले समाज की आंख खोलने वाला वक्तव्य दिया है।