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Hit Film : 70 के दशक की फिल्म आज भी लोगों के दिल पर करती है राज,  किरदार निभाते हुए अभिनेता हो गए थे परेशान,फिर ब्लॉकबस्टर रही फिल्म 

रमेश सिप्पी के निर्देशन और सलीम-जावेद की बेमिसाल लेखन से सजी फिल्म  शोले सिर्फ एक ब्लॉकबस्टर नहीं बनी,
 

15 अगस्त 1975 को भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक ऐसा अध्याय जुड़ा जिसने सब कुछ बदल दिया। रमेश सिप्पी के निर्देशन और सलीम-जावेद की बेमिसाल लेखन से सजी फिल्म शोले सिर्फ एक ब्लॉकबस्टर नहीं बनी, बल्कि यह एक ऐसा सांस्कृतिक प्रतीक बन गई। जिसके किरदारों ने दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज किया।

यह कहना गलत नहीं होगा कि  शोले की सफलता का श्रेय सिर्फ इसके नायक-नायिकाओं को नहीं, बल्कि फिल्म के हर एक चरित्र अभिनेता को जाता है। कई बार कहा जाता है ये हीरो है तो फिल्म कमाल होगी, ये सुपरस्टार है। मगर आप कोई भी बड़ी या अच्छी फिल्म देख लें चरित्र अभिनेता बिना हीरो अधूरा लगेगा।

शोले जैसी फिल्मों की खासियत है कि इसमें हर चरित्र पर ध्यान दिया गया है। रमेश सिप्पी और सलीम जावेद ने एक-एक चरित्र पर ध्यान दिया, जिसको जितना भी काम दिया, उसे यादगार बना दिया। कइयों को तो आज भी लोग इसीलिए जानते है की अरे ये तो शोले में था।

मेक मोहन शूटिंग के लिए 25 बार मुंबई से गए बेंगलूरु

मेक मोहन का रोल केवल टेकरी पर बैठ गब्बर की मदद करने वाले साम्भा का था। कुल जमा तीन डायलॉग। इतने से रोल के लिए 25 से ज्यादा बार मुंबई से बंगलौर (बेंगलूरु) जाना पड़ा। अपने रोल से नाराज थे, फिल्म इतनी बड़ी थी इसलिए छोड़ भी नहीं सकते। रिलीज के बाद शोले ब्लॉकबस्टर हो रही थी। मगर इन्होंने ध्यान नहीं दिया। ये जहां जाते लोग साम्भा-साम्भा कहकर इन्हें घेरने लगे।

सचिन का रोल भी रहा अहम

बाल कलाकार सचिन ने शोले से महीने भर पहले ही युवा के रोल मे गीत गाता चल से धूम मचाई थी।
इस फिल्म में उनका छोटा मगर महत्त्वपूर्ण अहमद का किरदार था। जिसे गब्बर मार देता है। इससे पहले उनकी उनकी पिता रहीम चाचा से नौक झोंक मजेदार है। सिप्पी फिल्म्स की ब्रह्मचारी में भी उन्होंने बाल कलाकार का रोल किया था।

ए के हंगल का किरदार

शोले में ए के हंगल का रहीम चाचा का रोल है। जब गब्बर उनके बेटे अहमद को मार देता है, तो वे आते हुए कहते है, इतना सन्नाटा क्यों है भाई' तब वीरू उन्हें उनके बेटे की लाश के पास ले जाते हैं, वे लाश को छूकर अहमद को पहचान कर रोते हैं। उनका संवाद जानते हो दुनिया का सबसे बड़ा बोझ क्या होता है, बाप के कंधों पर बेटे का जनाजा, मैं बूढा ये बोझ उठा सकता हूं तुम एक मुसीबत का बोझ नहीं उठा सकते।'

जगदीप का रोल बाद में जोड़ा गया

फिल्म बनने के बाद लगा की इसमें कुछ मजेदार सीन डाले जाएं तो उन्होंने सुरमा भोपाली के लिए जगदीप से संपर्क किया। जगदीप ने मना कर दिया। फिल्म बनने के बाद मेरा क्या काम फिर निर्माता ने उन्हें फिल्म ब्रह्मचारी के रोल के पैसे भी नहीं दिए आखिरकार छोटे से रोल के लिए उनकी पूरी फीस देने पर राजी हुए और उनका रोल ऐतिहासिक बन गया।

इसमें उनकी जय वीरू के साथ कव्वाली भी थी मगर फिल्म लम्बी होने के कारण वो फिल्मायी नहीं गई। विकास आनंद ने फिल्म में जेलर का किरदार निभाया जो ठाकुर को जय और वीरू के बारे में जानकारी देता है। अरविन्द जोशी ने ठाकुर बलदेव सिंह के बड़े बेटे क रोल निभाया जो एक्टर शर्मन जोशी के पिता थे।