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प्रसिद्ध बांग्लादेशी लेखक प्रो. सफ़िक़ुन्नबी सामादी को प्रदान की प्रेमचंद महत्तर सदस्यता, दो देशों की संस्कृतियों को जोड़ने वाले लेखक का साहित्य अकादेमी में सम्मान

  • अनुवाद दुनिया को जोड़ने का जरिया है – सफ़िक़ुन्नबी सामादी
  • साहित्य हर सीमा के प्रतिबंध से स्वतंत्र होता है – माधव कौशिक

RNE Network, New Delhi.

साहित्य अकादेमी ने मंगलवार को एक गरिमामय समारोह में बांग्लादेश के प्रख्यात लेखक और अनुवादक प्रो. सफ़िक़ुन्नबी सामादी को अपनी प्रतिष्ठित प्रेमचंद महत्तर सदस्यता प्रदान की। यह सम्मान उन्हें साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक द्वारा अकादेमी के सभाकक्ष में आयोजित कार्यक्रम में प्रदान किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव द्वारा प्रशस्ति-पाठ से हुई, जिसमें सफ़िक़ुन्नबी सामादी के साहित्यिक योगदान की सराहना की गई।

अध्यक्षीय संबोधन में सीमाओं से परे साहित्य का महत्व

साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा, “साहित्य सीमाओं के बंधन से परे होता है और यह संवेदनशीलता का माध्यम बनकर लोगों को जोड़ता है। प्रो. सामादी का सम्मान इस बात का प्रतीक है कि साहित्य मानवता के बीच की संवेदनाओं को जोड़ने का कार्य करता है। हमें उन्हें ऐसा विश्व नागरिक मानना चाहिए जो दो देशों की सांस्कृतिक संवेदनाओं को जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।”

प्रो. सामादी का स्वीकृति भाषण: भाषाओं से जोड़ने की पहल

प्रो. सफ़िक़ुन्नबी सामादी ने अपने स्वीकृति भाषण में कहा, “मैं भारतीय उपमहाद्वीप को भाषाओं के माध्यम से जोड़ने का प्रयास करता हूँ। अनुवाद कार्य के जरिए मैं एक संस्कृति को दूसरी संस्कृति के करीब लाने का प्रयास करता हूँ। मेरा मानना है कि यह प्रयास एक कारवाँ का रूप लेगा और उपमहाद्वीप की सभी संस्कृतियाँ आपस में और करीब आएंगी।”

प्रो. सामादी का साहित्यिक और अकादमिक योगदान

27 अगस्त 1963 को बांग्लादेश के नारायणगंज के सोनारगाँव में जन्मे प्रो. सामादी ने रवींद्र भारती विश्वविद्यालय से डी-लिट् और पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। राजशाही विश्वविद्यालय के बांग्ला विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत सामादी ने 35 वर्षों से अधिक समय तक शिक्षण क्षेत्र में योगदान दिया है।

उन्होंने अब तक 4 मौलिक पुस्तकें, 18 अनुवादित पुस्तकें और 3 संपादित पुस्तकें प्रकाशित की हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘कथासाहित्ये वास्तवता: शरतचंद्र और प्रेमचंद’, ‘नजरूलेर गान: कवितार स्वाद’, और अनुवादित कृतियों में गुलजार की ‘त्रिवेणी’, प्रेमचंद की ‘साहित्य का उद्देश्य’, और अमृता प्रीतम की ‘चुनिंदा कहानियाँ’ शामिल हैं।

इस कार्यक्रम में हिंदी, बांग्ला, और अन्य भाषाओं के कई प्रसिद्ध लेखक एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादेमी के उपसचिव एन. सुरेशबाबु ने किया। प्रो. सफ़िक़ुन्नबी सामादी को दिया गया यह सम्मान साहित्यिक सीमाओं को तोड़ने और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने का प्रतीक बना।