पहले सदस्यता में, अब संगठन चुनाव में भाजपा की गुटबाजी चौड़े आई, खींचतान तो है
RNE Special.
भाजपा का इस समय संगठन पर्व चल रहा है। मंडल अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक के चुनाव होने हैं, मगर वो निर्धारित समय तक पूरे हो हो नहीं सके हैं। बारबार तिथि आगे बढ़ाई जा रही है। कई राज्यों में तो सदस्यता अभियान की तिथियां भी बढ़ानी पड़ी। ऑनलाइन से ऑफलाइन तक का तरीका अपनाना पड़ा। सक्रिय सदस्य बनने की अहर्ता को भी नरम किया गया।
राजस्थान में तो इस बार स्थिति बहुत विकट रही। सबसे पहले तो सदस्यता अभियान ही बिखरा रहा। निर्धारित तिथि तक लक्ष्य को आधा भी नहीं पाया जा सका। पार्टी नेतृत्त्व ने उस पर नाराजगी भी जताई। क्योंकि राज्य में विधानसभा का चुनाव भाजपा ने जीता था मगर सदस्यता का अभियान सफल नहीं हो रहा था। बाद में ऑफलाइन सदस्य बनाने की छूट मिली तब भी उसके बेहतर परिणाम नहीं मिले। सक्रिय सदस्य के लिए सदस्य बनाने की संख्या 100 से घटाई गई पर अपेक्षा के अनुरूप परिणाम प्राप्त नहीं हुए। तारीख बढ़ी, नतीजा अनुकूल नहीं रहा। दिल्ली से नेताओं का दौरा हुआ मगर प्रभाव कम ही पड़ा।
ये रही बड़ी वजह:
राज्य में भाजपा के सदस्यता अभियान के सफल न होने के कई कारण थे। उसमें बड़ा कारण गुटबाजी व आपसी टकराहट ही थी। नया प्रदेश अध्यक्ष बनने से जिलों का समीकरण बदल गया। अनेक अध्यक्षों व पदाधिकारियों को लगा कि अब उनको तो जाना होगा। इस कारण उनकी रुचि कम रही। दूसरे राज्य से लेकर जिलों तक दो गुटों की स्थिति साफ दिख रही थी, इस कारण सदस्य बनाने की रफ्तार सुस्त रही। असमंजस में नेताओं व कार्यकर्ताओं ने प्रयास नहीं किये।
इसके अलावा ऑनलाइन सदस्य बनाने में वक़्त लगता तो लोग तैयार नहीं हो रहे थे। इससे बड़ी वजह बनी पार्टी की सरकार। सरकार बन गई मगर कार्यकर्ताओं की भागीदारी शुरू नहीं हुई। वो तो खैर अब तक भी शुरू नहीं हो सकी है। इससे भी कार्यकर्ता हताश हो गया। जिसका प्रभाव सदस्यता अभियान पर पड़ा। अंत तक भी राज्य में सदस्यता का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका। बड़े नेताओं की टकराहट का असर भी सदस्यता पर पड़ा।
अब संगठन चुनाव में खींचतान:
अब संगठन चुनाव को लेकर खींचतान व गुटबाजी पूरी तरह से चौड़े आई हुई है। प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना तो दूर, अभी तक मंडल अध्यक्ष के चुनाव भी नहीं हो सके हैं। जबकि चुनावी कार्यक्रम के अनुसार अब तक तो राज्य के संगठन चुनाव पूरे हो जाने चाहिए थे।
कुछ मंडलों के अध्यक्ष राज्य में घोषित हुए तो उससे गुटबाजी चौड़े आ गई। साफ दिख गया कि विधायकों, सांसद व संगठन के बीच तालमेल है ही नहीं। जितने भी मंडल अध्यक्ष घोषित हुए उनके विरोधी गुट के लोग शिकायतें लेकर जयपुर पहुंच गये। पार्टी को कुछ का निर्वाचन रद्द करना पड़ा। कुछ पर रोक लगानी पड़ी। कुल मिलाकर आपसी टकराहट के कारण ये स्थिति बनी। एक राय बन ही नहीं पा रही। तभी तो आधे से अधिक मंडलों में तो अध्यक्ष घोषित ही नहीं हो पा रहे।
जिलाध्यक्षों तक तो होगा बवाल:
अभी तक जिलाध्यक्ष के निर्वाचन का काम आरम्भ ही नहीं हुआ है। उसके होते ही तो ये गुटबाजी सड़क पर आ जायेगी, क्योंकि हर जगह नेता अपने अपने पक्ष के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाना चाह रहे हैं।
लगता यही है कि दिल्ली नेतृत्त्व के दखल के बिना संगठन के चुनाव पूरे होना सम्भव नहीं लगता।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।